कहते हैं वो इतनी ख़ूबसूरत थीं कि उन्हें देखकर बड़े-बड़े सुपरस्टार्स अपने डायलॉग्स भूल जाते थे. महजबीं बानो उर्फ़ मीना कुमारी, बॉलीवुड की Tragedy Queen…
अभिनय और अदाकारी मीना कुमारी को विरासत में मिली थी. पिता अली बक्श पारसी रंगमंच के कलाकार थे और मां प्रभावती देवी(इकबाल बानो) नृत्यांगना और अदाकार थीं.
1939 में बाल कलाकार के रूप में मीना फ़िल्मों से जुड़ी और ये सिलसिला आख़िरी दम तक चला.
1951 में फ़िल्म ‘तमाशा’ के सेट पर वे 34 वर्षीय निर्देशक, कमाल अमरोही से मिलीं. 1 वर्ष बाद, 14 फरवरी, 1952 को 19 वर्षीय मीना ने पहले से शादीशुदा कमाल अमरोही से विवाह कर लिया.
फ़िल्म ‘बैजू बावरा’ (1952) ने मीना के फ़िल्मी करियर को नया मोड़ दिया. इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का सम्मान दिया.
फ़िल्म ‘परिणीता’ भारतीय स्त्रियों के बीच ख़ासी मशहूर हुई. इस फ़िल्म में हिन्दुस्तान की स्त्रियों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को दिखाने की कोशिश की गई थी.
‘पाकीज़ा’, मीना की ज़िन्दगी की बेहतरीन फ़िल्म है, ये आज भी उतनी ही मशहूर है. इस फ़िल्म को बनने में 14 वर्ष लगे थे. 18 जनवरी 1958 में इस फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई थी और ये 4 फरवरी 1972 को रिलीज़ हुई.
फ़िल्म रिलीज़ होने के कुछ हफ़्तों बाद ही लंबी बीमारी से जूझ रही मीना की तबियत बिगड़ने लगी. और 31 मार्च 1972 को विश्व की सबसे ख़ूबसूरत अदाकाराओं में से एक, मीना ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
वो सिर्फ़ एक बेहतरीन अदाकारा ही नहीं, एक बेहतरीन शायरा भी थीं. उनके लिखे हुए शेर की किताब उनके देहांत के बाद सामने आई. अफ़सोस दुनिया को उनके जाने के बाद उनके इस हुनर का पता लगा.
वो नहीं हैं, पर उनकी ख़ूबसूरती, अदाकारी और Legacy आज भी हैं और रहेगी.