साल 1965. भारत-पाकिस्तान का वो भयंकर युद्ध. उस युद्ध को भला हम भारतीय कैसे भूल सकते हैं. आज़ादी के बाद इस युद्ध ने दोनों देशों की दिशा और दशा बदल कर रख दी. वैसे तो सभी ये मानते हैं कि इस युद्ध के विवाद की मुख्य वजह कश्मीर था. लेकिन बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि 1965 के भारत-पाक युद्ध की नींव कच्छ के अनजान और बियाबान इलाके में हुई सीमित मुठभेड़ से रखी गई थी. यह पूरा इलाका एक तरह का रेगिस्तान था, जहां कुछ चरवाहों से लेकर पुलिस वाले भी कभी-कभार भूले-भटके चले जाया करते थे.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 1965 के भारत-पाक के बीच हुए युद्ध की मुख्य वजह कोई और नहीं, बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ एक सड़क थी.

तो चलिए जानते हैं उस अनसुनी कहानी को…

दरअसल. भारत-पाक बंटवारे के बाद कच्छ से पाकिस्तान बहुत फायदे में था. उस इलाके में न सिर्फ़ पाकिस्तान की 8वीं बटालियन का मुख्यालय था, बल्कि यहां से 26 किलोमीटर की दूरी पर रेलवे स्टेशन बादीन था और वहां से कराची की दूरी भी मात्र 113 मील थी.

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जब भारतीय सुरक्षा बलों को पता चला कि पाकिस्तान ने डींग और सुराई को आपस में जोड़ने के लिए 18 मील लंबी एक कच्ची सड़क बना ली है, तो वहीं से झगड़े की शुरूआत हो गई. भारत ने स्थानीय और कूटनीतिक स्तर पर विरोध करना इसलिए शुरू कर दिया कि कहीं-कहीं पर यह सड़क भारतीय सीमा में डेढ़ मील अंदर तक जाती थी.

जहां पाक के लिए कच्छ के इलाके सुगम थे, वहीं भारत की ओर से कच्छ के रण में पहुंचने के सभी रास्ते बहुत दुर्गम थे. यहां से सबसे नज़दीक 31वीं ब्रिगेड अहमदाबाद में थी, जो वहां के सबसे नज़दीक रेलवे स्टेशन भुज से 180 किलोमीटर दूरी पर था. हालांकि, भुज रण का एक छोटा शहर था, लेकिन विवादित भारत-पाकिस्तान सीमा से 110 मील दूर था.

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भारत के इस विरोध के बाद पाकिस्तान ने बिना बात किये अक्रामक रुख अख़्तियार किया. उसने इसके जवाब में 51वीं ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर अज़हर को इस इलाके में और अधिक अक्रामक गश्त लगाने के आदेश दिए. दूसरी तरफ उधर मार्च आते-आते भारत ने कंजरकोट के करीब आधा किलोमीटर दक्षिण में सरदार चौकी बना ली.

लेकिन पाक को यह नागवार गुजरा और पाक कमांडर जनरल टिक्का खां ने ब्रिगेडियर अज़हर को भारतीय ‘सरदार चौकी’ को तहस-नहस कर उड़ा देने के आदेश दे दिये.

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इस तरह से युद्ध का सिलसिला शुरू हुआ…

साल 1965, 9 अप्रैल की सुबह 2 बजे पाकिस्तान की तरफ से चौकी पर पहला हमला हुआ. पाक सेना को सरदार चौकी, जंगल और शालीमार नाम की दो और भारतीय चौकियों पर कब्ज़ा करने का हुक्म दिया गया था.

हालांकि, शालीमार चौकी पर तैनात भारतीय स्पेशल रिज़र्व पुलिस के जवान पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला नहीं कर पाये, लेकिन सरदार चौकी पर तैनात जवानों ने कड़ा प्रतिरोध जताया. पूरे 14 घंटे तक चले आक्रमण के बाद पाक ब्रिगेडियर अज़हर ने गोलीबारी रुकवाई.

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इस दौरान सरदार चौकी के जवान लगभग दो मील पीछे विजियोकोट चौकी पर चले आए. लेकिन सबसे खास बात ये है कि पाकिस्तानी भी वहीं वापस हो गये, जहां से सुबह में उन्होंने आक्रमण किया था और पाकिस्तानी को पता भी नहीं चल पाया कि भारतीय जवान दो मील पीछे हट गये हैं.

अब होना क्या था? भारतीय सैनिकों को पता चला कि सरदार चौकी पूरी तरह से खाली है, वहां पर कोई भी पाक जवान नहीं है. भारतीय जवानों ने शाम होते-होते बिना लड़े दोबारा सरदार चौकी पर अपना नियंत्रण कर लिया.

गौरतलब है कि बीसी चक्रवर्ती ने अपनी किताब हिस्ट्री ऑफ़ इंडो-पाक वार, 1965 में लिखा है, ‘पाकिस्तान की 51वीं ब्रिगेड के कमांडर ने उतने ही अनाड़ीपन से ऑपरेशन को हैंडल किया, जितना भारत की 31वीं इंफ़ैंट्री ब्रिगेड के ब्रिगेडियर पहलजानी ने.’
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अब दोनों देशों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी थी. बिगुल बज चुका था. रण पूरी तरह से तैयार था. बस दोनों तरफ से लड़ाकुओं के आने का इंतज़ार था. भारत ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मेजर जनरल डुन को मुंबई से कच्छ के लिए रवाना किया. उधर पाकिस्तान ने भी 8वीं इंफैंटी डिवीजन को कराची से पाक शहर हैदराबाद बुला लिया.

उस वक़्त ब्रिगेड कमांडर की भूमिका निभा रहे लेफ़्टिनेंट कर्नल सुंदरजी ने पूरे क्षेत्र का जायजा लेने के बाद यह सलाह दी कि भारत को कंजरकोट पर हमला कर देना चाहिए. लेकिन सरकार ने उनकी बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया.

इसके बाद 24 अप्रैल को ब्रिगेडियर इफ़्तिकार जुनजुआ (जो बाद में पाकिस्तान के थल सेनाध्यक्ष बने) के नेतृत्व में पाकिस्तानी सैनिकों ने पूरी दो टैंक रेजिमेंटों और तोपख़ाने का इस्तेमाल कर सेरा बेत पर कब्ज़ा कर लिया और अंतत: भारतीय सैनिकों को पीछे हटना पड़ा. अगले दो दिनों में भारतीय सैनिकों को बियर बेत की चौकी भी खाली करनी पड़ी.

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पाकिस्तान ने देश-विदेश के पत्रकारों को बुलाकर भारतीय जवानों के छोड़े हुए हथियार और गोला-बारूद दिखाए और अपनी कामयाबी का झूठा ढिंढोरा पीटा. पाकिस्तान इस कामयाबी को पूरी दुनिया को गर्व से दिखा रहा था.

लेकिन बाद में ब्रिटेन के हस्तक्षेप के बाद दोनों सेनाएं अपने पुराने मोर्चे पर वापस चली गईं. अगर ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान इस युद्ध में भारत पर भारी पड़ा तो इसकी मुख्य वजह ये थी कि भारत को पाक के साथ युद्ध का कभी एहसास ही नहीं था. इसलिए कुछ जानकारों का ऐसा मानना है कि यह युद्ध भारत के लिए इसलिए भी अहम था क्योंकि कम-से-कम भारत को पाकिस्तानी सेना को आजमाने का मौका तो मिला.

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