“कबीरा तेरे देस में भांति-भांति के लोग”

बहुत सालों पहले कबीर ने ये पंक्तियां लिखी थीं. ये आज भी कहींं ना कहीं प्रासंगिक हैं. उस दौर से लेकर हालिया दौर तक ये जो “भांति-भांति के लोग” हैं ना इनकी प्रजाति में और बढ़ोत्तरी होती जा रही है.

दशहरा आ रहा है. हर साल आता है. हर साल जाता है. रावण को जलाने के लिए दशहरा मनाया जाता है. पर हम उसी पुराने वाले रावण को जलाते हैं, वही रावण जिसने सीता का अपहरण किया था. पर आज रावण बदल गये हैं, वैसे हर दौर में या फिर कहें कि हर साल रावण बदल जाते हैं. आज किसको जलाएं? आज रावण को जलाने से पहले रावण तय करना होगा. सवाल पहले आप से, फिर अपने आप से कर रहा हूं मैं. रावण के दस सिर थे ना, वो दस सिर आज भी मौजूद हैं. आज उनके रूप अलग-अलग हैं.

1. पहला सिर जातिवाद का है

गुजरात के उना में हाल ही में एक दलित आंदोलन हुआ था. सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आने के बाद ये आंदोलन हुआ था. इस वीडियो में चार दलित युवकों की कथित हिंदूवादी संगठन से जुड़े लोग सरेआम पिटाई कर रहे थे. इसके बाद इलाके के दलितों ने मृत पशुओं की लाशें उठाने से मना कर दिया. इससे पहले दादरी में अख़्लाक की हुई हत्या इस बात का सुबूत है कि जातिवाद से जुड़ा विचार आज भी लोगों के विचारों को सीमित करने का काम कर रहा है. दलितों को पिटते इस वीडियो ने रावण के पहले सिर का रूप दिखा दिया है. हालांकि, आज कई जागरुकता अभियान चलाये जा रहे हैं, पर इस सिर पर कोई तीर नहीं लगता नज़र आ रहा.

आज के रावण का सबसे पहला सिर जातिवाद ही है. सोचने पर तो लगता है कि यार सब खत्म हो गया, पर ऐसा नहीं है. न्यूज़ पेपर उठा कर देखिए कई सारे ऐसे सिर अपना सिर उठाकर खड़े होंगे. खासतौर पर चुनावों के समय में इसका विशेष ध्यान रखा जाता है. इसे समानता के तीर से ही मिटाया जा सकता है.

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2. आतंकवाद का है दूसरा सिर

आतंकवाद, देश के अंदर भी बहुत है और बाहर भी. हाल ही में उरी में हुए आतंकवादी हमले में 19 जवान शहीद हो गये, हालांकि जवाबी कारवाई भी हुई. पर आतंकवाद का ये सिर ज़ल्द ही कुचलना होगा, वरना ये रावण यूं ही आग उगलता जायेगा. आतंकवाद किसी देश तक सीमित नहीं है, बल्कि ये दुनिया के हर कोने को तबाह करता जा रहा है. मलाल इस बात का है कि आंतकवाद को खत्म करने के लिए भी आंतकवाद का ही सहारा लिया जा रहा है.

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3. तीसरा सिर है भक्तों का

अंधी भक्ती चाहे इंसान की हो या फिर भगवान की बहुत परेशान करती है, ये अंधी भक्ति इंसान को ग़ुलाम बना देती है. आज एक विचार को लेकर किसी का भी कत्ल करने वाले लोगों की संख्या बहुत बढ़ चुकी है. विचारों का हत्या से कोई लेना-देना नहीं होता. ये अंधीभक्ती है. इन भक्तों की कगार को जल्द ही विचारों से खत्म करना होगा. नहीं तो, फौरी विचारों की एक ऐसी फ़ेहरिस्त तैयार होगी, जिससे आलोचकों को बहुत नुकसान होगा.

4. ग़रीबी का सिर है चौथा

ग़रीबी का आलम देश में ये है कि लगातार लोग प्रवासी होते जा रहे हैं. देश के कोने-कोने में रोज़गार की तलाश के लिए दर-बदर भटकते लोग गरीब नहीं तो और क्या हैं? भरपेट खाना खाने के लिए कितनी मशक़्कत करनी पड़ती है, ये कोई उन हाथों से पूछे, जो अकसर रोटी के लिए बिलखते रहते हैं.

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5. अंधविश्वास के सिर को जलाना होगा

अंधविश्वास पर तो एक हालिया घटनाक्रम ही हिला सकता है. हैदराबाद की एक लड़की 68 दिनों के उपवास के बाद मर गई. लड़की की उम्र मात्र 13 साल थी. अंधविश्वास अपने आप नहीं आता, बल्कि आपको विरासत में मिलता है. गर उस बच्ची के घरवालों ने कुछ सवाल उठाये होते, तो शायद आज वो ज़िंदा होती. ऐसे अंधविश्वासों ने ना जाने कितने परिवारों को अपने विश्वास में लेने के बाद ज़ार-ज़ार कर दिया. इसका सामना तर्कशीलता के हथियार से करना होगा.

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6. “बकैती” का है छठा सिर

बकैती का मतलब सिर्फ़ बातों से नहीं होता. बकैती शुरू होती है, ऐसी बातों से जिनका कोई सिर-पैर नहीं होता. सोशल मीडिया पर बहुत बकैती होती है. गलत-गलत कमेंट्स लिखकर लोगों को परेशान किया जाता है. कहीं किसी लड़की को लिंग की तस्वीर भेजी जाती है, तो कहीं किसी को गालियों से नवाज़ा जाता है. इस बेबात और तर्कहीन बकैती को खत्म करना होगा.

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7. Ideological Logo लेकर घूमते विचारों को खत्म करना होगा

आज हर किसी को एक विचार से जोड़कर देखा जा रहा है. भले ही वो उस विचार के बारे में कुछ जानता ना हो, लेकिन दूसरे लोग उस पर वो विचार थोप देते हैं. इसी के चलते कई बार उस इंसान को काफ़ी दिक्कत का सामना भी करना पड़ता है. अपने विचारों को थोपना एक तरह से शोषण करने से भी ज़्यादा घातक है. जब आप अपने विचारों को किसी पर थोपते हैं, तो उसके सोचने समझने की शक्ति पहले ही क्षीण हो जाती है. जिसके चलते वो मात्र आपकी बात पर ही यक़ीन करता है.

8. बिना तथ्य के बातें तय करने वाला सिर आठवां है

कहा जाता है कि किसी भी मसले का हल तथ्य के आधार पर निकलना चाहिए. सत्य और तथ्य में बहुत फ़र्क है. तथ्य एक होते हैं, जबकि सत्य हरेक शख़्स का अलग-अलग हो सकता है. इन तथ्यों के आधार पर ही बात को एक मुक्कमल दिशा मिलती है. लेकिन आज तथ्यों को जाने बिना बहुत सारी कार्रवाई हो रही है. जैसे कि हाल ही में ओमपुरी के एक वायरल वीडियो के साथ हुआ. लोगों ने उसे पूरा देखा नहीं कि बात करने लगे. लोगों ने मात्र कयास के आधार पर बिना देखे हुए ही चीज़ें तय करना शुरु कर दिया. इसी के चलते एक तथ्यहीन प्रतिक्रिया आने लगी, जिसके बाद ओमपुरी पर दबाव बना और उन्हें लोगों से माफ़ी मांगनी पड़ी.

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9. सांप्रदायिक भेदभाव के सिर को काटना होगा

नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने हाल ही में एक ट्विट के माध्यम से बताया था कि उन्हें उनके गांव में हो रही रामलीला का हिस्सा बनने से रोका गया. इसके पीछे कथित हिंदूवादी संगठनों का हाथ बताया जा रहा है. इस तरह की घटनाएं सांप्रदायिक भेदभाव को बढ़ावा देती हैं. याद रहे कि नवाज़ मुजफ्फ़नगर ज़िले से आते हैं और ये ज़िला पहले भी सांप्रदायिक तनाव एवं हिंसा को झेल चुका है. इस तरह की घटनाएं भेदभाव की दीवार खड़ी करती हैं. जब इन दीवारों के पार दोनों समुदाय के लोग देख नहीं पाते, फिर शुरु होता है एक-दूसरे को बिना देखे सोचे-समझे बर्बरता का खेल.

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10. देशद्रोह और देशभक्ति साबित करने की लड़ाई

हर कोई कुछ ना कुछ साबित करना चाहता है. प्राइम टाइम बस खोल लीजिए, बहस चल रही है. इस बहस में कोई निष्कर्ष कभी नहीं निकला है. सरकारें रात को सो रही होती हैं. मीडिया और ये बहसवाज़ जाग रहे होते हैं. ये देशभक्ति साबित करने में ज़रा भी देर नहीं लगाते. इस देशभक्ति को साबित करने के लिए पहले कई लोगों को फिज़ूल में देशद्रोही बताना होता है. फिर जाकर कहीं देशभक्ति सिद्ध हो पाती है इनकी.

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इसके अलावा भी आज रावण के बहुत से सिर हैं. अगर हम किसी सिर का ज़िक्र करना भूल गये हों, तो उसके बारे में कमेंट बॉक्स में अपनी टिप्पणी दें. आपकी राय सिर-माथे पर.

Feature Image Source: Lonely