अगर आपके पास अच्छी शिक्षा है, पैसा है, पावर है, बावजूद इसके आप एक अच्छे इंसान नहीं हैं तो आपके पास कुछ भी नहीं है. अच्छी शिक्षा और धन-दौलत के साथ अच्छा इंसान होना भी ज़रूरी है. हम जिस समाज में रहते हैं उसके प्रति हमारी ये जिम्मेदारी भी बनती है कि अपनी छोटी-छोटी कोशिशों के ज़रिये उसमें बदलाव लाएं. ज़रूरतमंदों की मदद करें और बच्चों को अच्छे संस्कार दें.

‘Humans of Bombay’ के ज़रिये ऐसे ही एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर ने भी अपनी एक छोटी सी, लेकिन आंख खोल देने वाली स्टोरी शेयर की है.

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‘मैं हमेशा की तरह अपनी ड्यूटी पर था. इस दौरान मैंने देखा कि एक बुज़ुर्ग शख़्स, जिनकी उम्र करीब 80 वर्ष रही होगी, वो घर जाने के लिए ऑटो का इंतज़ार कर रहे हैं. इस दौरान उन्होंने कई ऑटो वालों से घर छोड़ने को कहा लेकिन हर कोई उन्हें मना करता रहा. मैं सड़क की दूसरी ओर से ये सब देख रहा था. वो ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे और थके हुए भी थे. सड़क पर खड़े वो परेशान और लाचार से दिख रहे थे’.

‘ये सब मुझसे देखा नहीं गया तो मैं तुरंत अपना ऑटो लेकर सड़क के दूसरी ओर उनके पास जा पहुंचा. जब मैंने उनसे पूछा कि कहां जाना है, तो उन्होंने बताया कि उनका घर पास में ही है. यहां एक ग्रॉसरी स्टोर में सामान लेने आये थे. घर तक पैदल नहीं चल सकता इसलिए सोचा ऑटो ले लूं, लेकिन घर पास होने के चलते कोई भी ऑटोवाला वहां जाना ही नहीं चाहता. ये जानकर मैं हैरान था कि आख़िर लोग इंसानियत से इतनी दूर क्यों होते जा रहे हैं?’

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‘इसके बाद मैंने उन्हें अपने ऑटो में बैठा लिया. ये देखकर वो बेहद ख़ुश लग रहे थे. उनकी आंखों में सुकून था जो मुझे भी अच्छा लगा. जब मैंने उन्हें उनके घर छोड़ा तो वो मुझसे चाय पीकर जाने की ज़िद करने लगे, मैं भी उन्हें मना नहीं कर पाया. मैं जिस तरह के प्रोफ़ेशन में हूं, उसमें हमें कई तरह के लोग मिलते हैं. कुछ अच्छे तो कुछ बेहद घमंडी लेकिन इतना अच्छा व्यवहार मेरे साथ पहली बार हो रहा था. उनके घर गया तो पता चला कि वो अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते हैं. उनका एक बेटा है जो अमेरिका में रहता है’.

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‘हमने चाय पी और ढेर सारी बातें की. वो बेहद-पढ़े लिखे शख़्स थे. उन्होंने मुझसे कहा कि ज़िंदगी में हमेशा ऐसे ही रहना. अपनी इस दयालुता को ऐसे ही बनाये रखना. ज़िंदगी बहुत छोटी है इसलिए हमेशा अच्छा इंसान बनने की कोशिश करो. उस दिन मुझे अहसास हुआ कि अगर आप अच्छे हैं, तो सब अच्छे हैं. ये इंसान की सोच पर निर्भर करता है कि आप दूसरे के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं. इस दौरान मुझे पैसे और दयालुता के बीच फ़र्क भी मालूम पड़ा.’

वो हमारी पहली और आख़िरी मुलाकात थी. उसके बाद मैं उनसे कभी मिल नहीं पाया.

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इस ऑटोवाली की ये सच्ची कहानी हमें ये सीख देती है कि चाहे हम कितने भी बड़े इंसान क्यों न बन जाएं, लेकिन हमारे संस्कार, दयालुता और ज़रूरतमंदों की मदद करना, ही हमें एक अच्छा इंसान बनाते हैं.  

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