मेरे ख़्याल से बशीर बद्र ने न तो कभी कोई नज़्म कही और न कभी कोई ग़ज़ल कही. उन्होंने तो बस हक़ीक़त को शेर का अमलीजामा पहना कर दुनिया के सामने रखा, जिसे लोगों ने कभी ग़ज़ल कहा, तो कभी नज़्म. खुद बशीर साहब अपने शेरों के बारे में कहते हैं कि

‘हज़ारों शेर मेरे सो गए कागज़ की कब्रों में अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा, ज़िंदा नहीं रहता’

जब कोई शायर अपने शेरों से कुछ इस कदर मोहब्बत करने लगे, तो उसे सिर्फ़ शायरी के दायरे में बांधना कहां तक लाज़मी है? इसे आप भी बखूबी समझ सकते हैं. आज हम बशीर साहब के कुछ ऐसे ही शेर ले कर आए हैं, जिनमें ज़िन्दगी खुद आपके करीब आ कर आपसे बात करती हुई दिखाई देती है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Design By: shruti