सावन का महीना आते ही एक ओर बारिश की झम-झम होती है, तो वहीं दूसरी तरफ बम-बम के नारों से सारा वातावरण शिवमय हो जाता है. हिन्दू धर्म में शिव मुक्ति का प्रतीक हैं. शिव इकलौते ऐसे भगवान हैं, जो स्वर्ग से दूर हिमालय की सर्द चट्टानों पर अपना घर बनाये हुए हैं. इसे भोले बाबा का भोलापन ही कहिये, जो इतनी कम सुख-सुविधाओं के साथ भी ध्यान में मगन रहते हैं और भक्तों की छोटी-छोटी प्रार्थना सुनते हैं. हाथ में त्रिशूल, गले में नाग, सिर पर गंगा और शेर की खाल पहने शिव की हर एक चीज़ से कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है, पर क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर शेर की खाल से कौन-सी कहानी सम्बन्धित है?

आज हम आपको भगवान शिव द्वारा पहने जाने वाली शेर की खाल का रहस्य बताने जा रहे हैं, जो शिव के प्रति आपकी भक्ति को और भी ज़्यादा मजबूत करेगा.

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शिव पुराण के मुताबिक एक बार शिव घने जंगलों में नंगे घूम रहे थे. घूमते-घूमते वो जंगल में बसे एक गांव में पहुंच गए, जहां उन्हें नंगा देखकर गांव की औरतें उनकी तरफ आकर्षित होने लगीं. इस बात से अनजान शिव लगातार नंगे ही घूम रहे थे. शिव की इस हरकत पर गांव में रहने वाले साधु-संत क्रोधित हुए और उन्होंने शिव को सबक सिखाने का निश्चय किया.

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उन लोगों ने शिव के रास्ते में गड्ढा किया और उसमें एक शेर को शिव को मारने के लिए छोड़ दिया, पर शिव ने लोगों की चाल को नाकाम करते हुए शेर को चन्द मिनटों में मार दिया और शेर की खाल को पहन लिया. शेर की खाल को इस तरह पहनना बुराई पर अच्छाई का प्रतीक बना और शिव के साथ जुड़ गया.

इसके बाद गांव वालों को समझ में आ गया कि यह कोई आम इंसान नहीं बल्कि साक्षात भगवान शिव हैं.

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