विशेष नोट: जो लोग ‘सआदत हसन मंटो’ को नहीं जानते वो या तो इसे ना पढ़ें गर पढ़ें तो पूरा पढ़ें. क्योंकि मंटो को अधूरा पढ़ने वाले को जहन्नुम में भी जगह नहीं मिलेगी.

आज बात घुमा-फिरा कर करने का मन नहीं है क्योंकि बात एक ऐसे शख़्स के बारे में होने जा रही है जिसे समाज ने लानतें दी, जिस पर दुनिया ने फतवे जड़े, मुकदमों के साथ-साथ बहुत सी ज़िल्लतें जिसके सीने में गोद दी गई. जो सपने देखने के लिए नहीं बल्कि हकीक़त से दूर जाने के लिए शराब पीता था. वो अपने लिए नहीं बल्कि एक ऐसे अंधेरे के लिए लिखता था जिसका वजूद रौशनी के आते ही खत्म हो जाता.

बंदे का नाम था सआदत हसन मंटो. आज ये नाम एक ऐसा नाम बन चुका है जो लिखने-पढ़ने वाले हरेक शख़्स के ज़ेहन में कहीं न कहीं टिका है. आज उसके दस्तावेज धड़ा-धड़ बिक रहे हैं, लेकिन एक समय वो भी था जब उसके लिखे को देखने से लोग कतराते थे. वो अपने द्वारा लिखे किरदारों को अपनी ज़ेब में रख कर सहलाता था.

आज इस लेख में ‘हम’ नहीं बल्कि आज सिर्फ़ ‘मैं’ बात करूंगा. मैं बात करुंगा मेरे लिए मंटो के होने की. ‘सआदत हसन मंटो’ के बारे में तमाम जानकारी आपको इंटरनेट पर मिल जायेंगी लेकिन मेरे लिए वो क्या है ये आप कहीं नहीं जान सकते. हम सब मंटो के किरदार है वो हमें नचाने में बहुत माहिर है. वो हमारी परछाई को कब कलम से अपनी बना ले, ये कोई नहीं जानता.

मेरे लिए क्या है मंटो?

मेरे लिए मंटो एक आईना है. एक ऐसा आईना जिसको जितना साफ़ करो उसमें से अपना चेहरा मिटता जाता है और उसके किरदार झांकते चले जाते हैं. मंटो ने अपनी तमाम कहानियों को बेचैनी के चूल्हे में पकाया है. वो चाहता है कि उसके किरदारों की रूह पाठक के सीने में चली जाए और उसे तड़पा दे.

अहा… मंटो, तू एक जादूगर है. एक ऐसा जादूगर जिसके अफ़साने ही उसका पिटारा हैं. जब वो पिटारा खुलता है, एक-एक बंदे पर तमाचा जड़ता चला जाता है. मंटो मेरे लिए तू बेबाक हस्ती है.

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क्यों है मंटो?

कभी-कभी सोचता हूं कि गर मैं भी उस दौर में पैदा हुआ होता जब मंटो लिख रहा था, तो क्या मैं उन कहानियों को पचा पाता? मैं भी शायद मंटो पर मुकदमा ठोक देता. दरअसल मंटो हालातों के सीने में इतनी गहराई से उतर जाता था जिससे उसके और हालातों के दरम्यां फ़र्क कर पाना मुश्किल हो जाता. क्यों का जवाब तो शायद आपको मिला ही नहीं. दुनिया में जब तक फ़रेब है तब तक बाल्टी में हक़ीकत का पानी लिए मंटो फ़रेबियों को भिगोता रहेगा सच्चाई के पानी से.

कहां रहता है ये मंटो?

कहा जाता है कि ‘बू’, ‘खोल दो’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘हतक’, ‘काली शलवार’ जैसी कहानियों की वजह से उसको दोज़ख़ (नरक) में जगह मिली होगी. पर पता नहीं पुर-सुकून की तलाश में कहां-कहां फिरता है वो. सुना है उसकी लूसिफर के साथ दोस्ती है, यमराज के साथ उसका याराना है, शैतान को अपने किस्से सुनाता है. शायद वो आज अपने सारे किरदारों के साथ दोज़ख़ में बैठा अफ़साने लिख रहा होगा. वहां उसके अफ़सानों पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं करेगा क्योंकि वो जानते हैं कि ये इस दुनिया की ही रिवायत है. उस दुनिया में सब एक हैं. कुछ रूहों का कहना है कि दोज़ख़ में एक पागलखाना है, मंटो वहां डॉक्टर बन गया है. अब वो अपने किस्सों से रूहों का ईलाज करता है. इस जहान के लोग उसके अफ़सानों से परेशान थे, वहां उसने खूब वाह-वाही बटोरी है.

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मेरी मुलाक़ात उससे कैसे हुई?

बचपन में मंटो का नाम बड़ा अच्छा लगा करता था. मोहल्ले में एक कॉमरेड रहता था. बेगम अख़्तर की ग़ज़लें सुनता था. रात-रात भर सोता नहीं था. उसका एक कमरा था और कई किताबें थी. रात को स्टील के गिलास में दारू पीता था. उसकी मेरे मामा के साथ बहुत अच्छी दोस्ती थी. जब दोनों मिल कर सिगार पीते थे तो मंटो की कहानियों पर बातें करते थे. मुझे सिगार का धुआं बड़ा अच्छा लगता था. मुझे मंटो वहां उसे धुएं में मिला था. कॉमरेड टोबा टेक सिंह का मुर्शिद था. वो मंटो से पहले टोबा टेक सिंह से मोहब्बत करता था. बोलता था कॉमरेड, ‘उप्पड़ दी गुप्पड़ दी लाल दी लालटेन हिंदुस्तान ते पाकिस्तान दी दुर फिटे मुंह.’ उस वक़्त मुझे कुछ समझ तो नहीं आता था, लेकिन होश आने पर पता चला कि मंटो तो वही धुआं था. किस्से कटोरी में पड़ी सिगार की राख थे लेकिन मंटो धुआं था, जो उड़ता रहा.

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क्यों बदला नहीं मंटो?

जब से लिखना-पढ़ना शुरू किया है, तब से मंटो की हरेक कहानी में मुझे एक चीख सुनाई देती है. एक ऐसी चीख जिसपे रोना नहीं आता. मुझे वो एकमात्र ऐसा अफ़सानानिगार लगता है जो दर्द की गलियों से गुज़रने के बाद भी आंसुओं का सहारा नहीं लेता. उसके किरदार जलेबी की तरह टेढ़े होते हैं. वो साधारण लोगों की ज़िंदगानी पर कहानियां नहीं लिख पाता. उसे कहानियों में कुत्ते पसंद हैं. उसे वैश्याएं पसंद हैं, लाश से संभोग करते लोग पसंद हैं. घेरलू महिलाओं के जीवन पर मंटो कलम नहीं चला सकता. वो रात-रात को लालटेन लेकर इन किरदारों की खोज में कहीं निकल जाता है. पहले वो कई दिनों तक बस उसे देखता है. फिर वो उसे अपनी जेब में रख लेता है. मंटो ‘एक जेबकतरा है’. ऐसा मैं नहीं कहता, उसने ख़ुद कहा था.

किरदारों के लिए एक कसाई है मंटो

मंटो ने ताउम्र अपने किरदारों को काटा है. काट-काट कर उसे वो जोड़ता नहीं था. वो कहता है कि मैं नंगी को नंगी रहने देता हूं. टोबाटेक सिंह में उसने सरहदों के ही नहीं बल्कि सीने के बंटवारे करवा दिए.

आज मंटो को वास्तविक माना जाता है लेकिन सोचिए गर वो आज होता तो समाज की रूह को ऐसे चिमटे मारता जिससे उसका भूत, भूत ही बन कर रह जाता है. हरेक इंसान के अंदर मंटो कहीं न कहीं दबा पड़ा है. या फिर उस शख़्स ने ख़ुद उसे अपने मन के नुक्कड़ से सामाजिक मिट्टी के बठ्ठल (तसला) उसपे पटक दिये हैं. मंटो नीचे दबा पड़ा है लेकिन एक दिन ज़रूर गर्दन बाहर निकालेगा वो.

आज मंटो समाज के लिए एक ऐसी काली रात है, जो अपने किरदारों को तारों की तरह अपने आंचल में जगह दे रहा है. उसके आंचल में छुपा हरेक तारा अपने आप में सदियों का फ़लसफ़ा लिए बैठा है. आज मैं अफ़साने लिखने की कोशिश करता हूं, लेकिन मंटो कमरे में आकर फिर से चीखने लगता है, क़मबख़्त रोने भी नहीं देता.

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