जहां तीन तलाक़ की बहस पर इस्लाम को पिछड़ा साबित करने के प्रयास किये जा रहे हैं, उसी इस्लाम में भारत की धरती पर 700 साल पहले वो हुआ, जो इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ.

उस दौर में दिल्ली की सल्तनत पर एक ऐसी महिला शख्सियत ने राज किया था, जिसे दीवाने-आम सुल्ताना नहीं, बल्कि सुल्तान कह कर बुलाता था. इस महान शख्सियत का नाम था, सुल्तान-ए-दिल्ली जलालत-उद-दीन-रज़िया उर्फ़ रज़िया सुल्तान.

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यह सबको पता चल चुका है कि मानव सभ्यता के शुरुआती दौर में समाज में महिलाओं के हाथ में सत्ता हुआ करती थी, लेकिन जैसे-जैसे समाज में सत्ता की भूमिका बढ़ने लगी, पितृसत्तात्मक प्रवृति का चलन बढ़ता गया. समय के थपेड़ों के बीच महिलाओं की सत्ता में भूमिका के ऊपर जो हमारे देश में धूल जम चुकी थी, उसे हटाने का काम किया रजिया ने.

रज़िया के सत्ता में आने की दिलचस्प कहानी

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रज़िया के पिता इल्तुतमिश, कुतुबुद्दीन ऐबक के गुलाम थे. कुतुबुद्दीन की मौत के बाद इल्तुतमिश ने अपनी सल्तनत कायम की. उसने अपने नाम के सल्तनत में सिक्के भी चलवाए. इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया को एक लड़के की तरह ही पाला था. पांच भाई-बहनों में से एक रजिया को औरतों से ज़्यादा मर्दों वाले खेलों में मजा आता था.

इल्तुतमिश ने यह सुन भी रखा था कि ईरान में महिलाओं को भी शासक बनाया जाता है. इल्तुतमिश के सामने अमीरों की एक पूरी जमात खड़ी थी, जो नहीं चाहती थी कि रज़िया सत्ता में आये. यहां तक की उसकी सौतेली मां भी अपने बेटे रुकनुद्दीन को सुल्तान बनाने की फ़िराक में थी.

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इन्हीं सब झमेलों की बीच 1236 में इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई. रज़िया को सुल्तान बनाने के पक्ष में कोई आगे नहीं आया. इसी बीच मौके का लाभ उठा कर रज़िया की सौतेली मां शाह तुर्कान ने अपने बेटे रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया.

धीरे-धीरे समय के साथ रुकनुद्दीन शराब और शबाब में खोता गया और जनता में उसके लिए असंतोष बढ़ता गया. एक दिन मौका पा कर रज़िया जुम्मे की नमाज़ के दौरान जामा मस्जिद पहुंच गई, जहां नमाज़ पढ़ने आए हज़ारों लोगों की भीड़ से उसने सत्ता पाने के लिए समर्थन मांगा. ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी सुल्तान को जनता ने समर्थन देकर चुना था. इसके बाद रज़िया ने अपने विश्वासपात्र याकूत के साथ मिल कर रुकनुद्दीन को मौत के घाट उतार दिया.

10 नवम्बर 1236 को रज़िया दिल्ली की गद्दी पर अधिकारिक रूप से सवार हो गई.

रज़िया का मर्दाना अंदाज़

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रज़िया ने अपने आप को कभी सुल्ताना कहलवाना पसन्द नहीं किया, क्योंकि उसे इसके अन्दर मर्दों के रहम की बू आती थी. वह दरबार में भी बिना नकाब के ही आती थी. रज़िया ने अमीरों और उलेमाओं को किनारे कर अपने हिसाब से शासन को चलाया. इस दौरान उसने कभी भी इस्लाम की मूल भावना का अपमान नहीं होने दिया.

गैर इस्लामों के लिए भी उसने बहुत सारे काम करवाए. किसी भी मुसलमान शासक के लिए सबसे बड़ी बात होती उसके शासन को खलीफ़ा द्वारा रजामंदी मिली हुई है या नहीं. 1237 में रज़िया की ये ख्वाहिश भी पूरी हो गई. खलीफा ने रज़िया को एक सुल्तान के रूप में मान्यता देकर उसे वैधता प्रदान कर दी.

रज़िया की अनोखी प्रेम कहानी

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रज़िया जितनी दबंग थी, उतनी ही सुन्दर भी थी. सारे अमीर उससे शादी करने के सपने देखा करते थे, लेकिन रज़िया ने यहां भी अपनी बगावती फितरत को कायम रखा. रुढ़िवादी समाज के बीच उसने अपने प्यार के लिए एक विदेशी हब्शी को चुना. याकूत नामक यह हब्शी उसके पिता के विश्वासपात्रों में से एक था.

रज़िया के प्यार को ना पा सकने वाले आशिक ने ही किया था रज़िया को युद्ध में पराजित

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अल्तूनिया नाम का एक प्रांतीय शासक रज़िया को काफ़ी पसन्द करता था. इस बात को पूरे दिल्ली सल्तनत को पता था, लेकिन जब रज़िया के सम्बन्ध याकूत से जुड़े होने की खबरे उसने सुनी, तो उसने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी. दोनों सेनाओं का हरियाणा के कैथल के पास मुकाबला हुआ. याकूत इस जंग में बहादुरी से लड़ते हुए मारा गया. आख़िरकार अंत में रज़िया को कैद कर लिया गया.

लेकिन सालों से प्यार का इज़हार करते आये, अल्तूनिया ने रज़िया के साथ किसी बंदी जैसा बर्ताव नहीं किया. वो उसकी अच्छे से देखभाल करने लगा. आगे चल कर रज़िया ने अल्तूनिया से शादी कर ली.

दिल्ली का तख्तापलट और रज़िया की मौत

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जब रज़िया और अल्तूनिया अपने आपसी झमेलों से बाहर निकल रहे थे, उस समय मौका पाकर दिल्ली के सारे अमीर-ओ-उल्माओं ने बहराम शाह को दिल्ली की गद्दी पर काबिज कर दिया. अब तो आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो गई. इस जंग में अल्तूनिया और रज़िया दोनों मारे गये. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि रज़िया की मौत एक जाट ने की थी, जब रज़िया मैदान से भाग कर उसके घर में जा छुपी थी.

रज़िया की शख्सियत हमें कई सवालों के जवाब दे जाती है. रज़िया हमें बताती है कि आपके पास ताकत और माद्दा है, तो आप चाहे मर्द हो या औरत, कोई आपको अपने उसूलों पर ज़िन्दगी जीने से नहीं रोक सकता.

रजिया उन सभी सवालों का जवाब भी देती हैं, जो कहते हैं कि इस्लाम में नारी को अधिकार देने में पाबंदियां लगाई गई है. इनके साथ ही रजिया एक औरत की ज़िन्दगी में प्यार की जीवन भर चलने वाली तलाश की कहानी भी बयां कर जाती है. हम कह सकते हैं, भारत की यह यह सुल्तान, सच्चे मायनों में सुल्तान कहलाने के लायक थी.