हमारा सामना कई बार ऐसी शख़्सियतों से होता है, जिन्होंने समाज के सभी बंधनों को तोड़कर अपने सपनों को हक़ीक़त में बदला है.

ऐसी ही एक जाबांज़ महिला थी शांति तिग्गा.

कौन थी शांति?

35 साल की विधवा, दो बच्चों की मां. ऐसी महिला के बारे में सुनते ही लोगों के मन में एक ही शब्द आता है, ‘बेचारी’.

शांति कोई आम महिला नहीं थी. शांति भारतीय सेना की पहली ‘महिला जवान’ है.

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पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी ज़िले की रहने वाली शांति की शादी बहुत कम उम्र में हो गई थी. किसी भी ग्रामीण महिला की तरह उन्होंने सालों तक ‘हाउस वाइफ़’ वाली नौकरी की.

पति की अचानक मृत्यु के बाद शांति की ज़िन्दगी बदल गई. 2005 में पति की रेलवे वाली नौकरी शांति को मिल गई. बच्चों को पालने के लिए शांति ने नौकरी कर ली.

रेलवे की नौकरी से भारत की पहली महिला जवान बनने तक का सफ़र

रेलवे में नौकरी के दौरान ही शांति को Territorial Army के बारे में पता चला. शांति के कुछ रिश्तेदार सेना में थे और शांति ने भी Territorial Army की परिक्षा देने का निर्णय ले लिया. अपनी शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए शांति ने दिन-रात एक कर दिया.

ट्रेनिंग सेशन में सभी पुरुषों को पछाड़ा

Territorial Army की ट्रेनिंग सेशन में शांति ने सभी पुरुष प्रतिद्वंदियों को पछाड़ दिया. 50 मीटर की दौड़ 12 सेकेंड में पूरी की और 1.5 किलोमीटर की दौड़ पूरी करने में अन्य प्रतिभागियों से 5 सेकेंड से कम का वक़्त लिया.

शांति की शारीरिक चुस्ती और फ़ुर्ती की बहुत तारीफ़ हुई और उन्होंने भारतीय सेना में एक नया अध्याय शुरू किया. भारतीय सेना में महिलाओं की नियुक्ति ऑफ़िसर रैंक से ही होती है और शांति ने इस प्रथा को तोड़ा.

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शांति ने इस विषय में कहा,

उस वक़्त मुझे नहीं पता था कि मुझ से पहले, किसी भी महिला ने ऑफ़िसर रैंक से नीचे की पोस्ट Join नहीं की थी.

Recruitment Training Camp में भी जीता सबका दिल

सफ़लता की मिसाल शांति ने RTC (Recruitment Training Camp) में Firing Instructor को भी प्रभावित कर दिया. अपने Gun Handling Skills से शांति ने Marksman की पद्वी हासिल की.

शांति को उनके इस अद्वितीय प्रदर्शन के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सम्मानित किया था.

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अति दुखद अंत

इतिहास रचने के 2 साल बाद ही शांति की ज़िन्दगी में एक दुखद मोड़ आया. 9 मई 2013 को अज्ञात लोगों ने उनका अपहरण कर लिया. अगली सुबह वो बेहोशी की हालत में रेलवे ट्रैक्स के किनारे एक पोल से बंधी मिली.

शांति ने बताया कि अपहरणकर्ताओं ने उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था.

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उन्हें तुरंत कड़ी सुरक्षा के अंदर अस्पताल में भर्ती करवाया गया और अपहरण की जांच शुरू कर दी गई.

13 मई, 2013 को जब वो बाथरूम से काफ़ी देर तक बाहर नहीं आईं, तो उनके बेटे ने सबको आगाह किया. पुलिस और रेलवे अधिकारियों ने दरवाज़ा तोड़ा और शांति का मृत शरीर लटकता हुआ पाया गया.

लगे थे पैसे लेने के इल्ज़ाम

इससे पहले शांति पर नौकरी दिलवाने के बहाने लोगों से पैसे लेने के इल्ज़ाम लगे थे. इस इल्ज़ाम को बुनियाद बनाकर ये मान लिया गया कि शांति ने आत्महत्या कर ली. जांच में भी कुछ पता नहीं चला और शांति की कहानी दफ़्तर की फ़ाइलों में बंद होकर रह गई.

एक मिसाल, एक दृढ़ निश्चयी महिला का ऐसा अंत दुखद है. शांति के परिवार वाले आज भी यही मानते हैं कि उनकी हत्या हुई थी. और सच क्या है, कोई नहीं कह सकता.