साल 1980, भारतीय बैडमिंटन स्टार प्रकाश पादुकोण ने ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतकर देश को गौरवांवित किया था. प्रकाश पादुकोण उस दौर में बैडमिंटन चैंपियन बने जब देश में क्रिकेट और हॉकी के अलावा कोई अन्य खेल इतना लोकप्रिय नहीं हुआ करता था. इस उपलब्धि के बाद कुछ साल तक लोगों ने बैडमिंटन की तरफ़ दिलचस्पी दिखाई. लेकिन प्रकाश पादुकोण के सन्यास के साथ ही बैडमिंटन की थोड़ी बहुत लोकप्रियता भी धीरे-धीरे ख़त्म सी हो चली थी. इस दौरान कई खिलाड़ियों ने किस्मत आज़मायी लेकिन प्रकाश पादुकोण जैसा कोई नहीं बन पाया.

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फिर 90 के दशक में एक खिलाड़ी आया नाम था पुलेला गोपीचंद. गोपीचंद ने प्रकाश पादुकोण को अपना रोल मॉडल मानते हुए बैडमिंटन खेलना शुरू किया. इस दौरान गोपीचंद ने कई साल तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रौशन किया. साल 1999, बैडमिंटन में उनकी शानदार उपलब्धि के लिए उनको अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. जबकि साल 2001 में ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतकर गोपीचंद एक बार फिर भारतीय बैडमिंटन को नयी ऊंचाईयों पर ले गए. उन्हें साल 2009 में दोर्णाचार्य अवॉर्ड और साल 2014 में उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है.

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पुलेला गोपीचंद वर्तमान में भारतीय बैडमिंटन कोच हैं. कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने आज भारतीय बैडमिंटन को शिखर पर पहुंचा दिया है. गोपीचंद की कोचिंग से निकले साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, श्रीकांथ किदांबी, पी कश्यप, गुरुसाई दत्त और तरुण कोना जैसे कई वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी आज दुनिया भर में सफ़लता के झंडे गाड़ रहे हैं. 

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जबकि एक समय में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी रह चुकी साइना नेहवाल ने साल 2012, लंदन ओलिंपिक में इतिहास रचते हुए बैडमिंटन में भारत के लिए पहला पदक जीता था. इसके बाद साल 2016, रियो ओलिंपिक में पीवी सिंधु देश के लिए सिल्‍वर मेडल जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनने में कामयाब रहीं. जबकि उनके एक और शिष्य श्रीकांथ किदांबी इस समय दुनिया में नंबर वन रैंक हासिल कर चुके हैं.

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हैदराबाद में स्थित पुलेला गोपीचंद अकादमी आज हज़ारों बच्चों के सपनों को उड़ान देने का काम कर रही है. जो बच्चे बैडमिंटन खिलाड़ी बनकर अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं, गोपीचंद कोच के तौर पर उन्हें वर्ल्ड क्लास प्लेयर्स बनाने में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. चाहे इंसान कितना भी मेहनती क्यों न हो लेकिन उसको मार्गदर्शन के लिए हमेशा एक गुरु की ज़रुरत होती है. साइना नेहवाल, पीवी सिंधु और श्रीकांथ किदांबी आज क़ामयाब इसलिए हैं क्योंकि उन्हें गोपीचंद जैसे कोच मिले. अपने दौर में गोपीचंद का करियर चोटों की वजह से बहुत प्रभावित रहा. लेकिन वो अपने शिष्यों को शीर्ष पर पहुंचने के लिए फ़िट रहने की सलाह देते हैं.

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भारत के सबसे बेहतरीन बैडमिंटन खिलाड़ी रहे पुलेला गोपीचंद ने एक इंटरव्यू के दौरान था कहा कि ‘आज भारतीय बैडमिंटन का भविष्य उज्ज्वल है. कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग ने हमें इस जगह पहुंचाया है. आने वाले 2-3 साल में देश को सिंगल और डबल्स में कई ऐसे विश्वस्तरीय खिलाड़ी मिलने वाले हैं, जो बड़ी प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने के लिए तैयार होंगे. आज दुनिया के टॉप टेन बैडमिंटन खिलाड़ियों में 3-4 भारतीय का नाम लिया जाना, किसी सपने का पूरा होने जैसा है. हमारे खिलाड़ियों को सबसे कड़ी टक्कर चीन के खिलाड़ियों से मिलती है. इस चीनी दीवार को पार कर पाना बेहद कठिन है, लेकिन नामुमकिन नहीं. चीनी प्लेयर्स टेक्निकली बहुत स्ट्रांग होते हैं. लेकिन सिंधु ने हमेशा ही चीनी खिलाड़ियों को टक्कर दी है.’

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लोग आज गोपीचंद को एक सफ़ल कोच के तौर पर देखते हैं, लेकिन इसके पीछे उनके स्ट्रगल के बारे में शायद ही कोई जनता होगा. बैडमिंटन से संन्यास लेने के बाद गोपीचंद ने अकेडमी खोलने का प्रयास किया. आंध्र प्रदेश सरकार ने गोपीचंद को अकेडमी बनाने के लिए ज़मीन तो दी थी, लेकिन प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए गोपीचंद के पास पैसे नहीं थे. जिसके लिए उन्होंने अपना घर तक गिरवी रख दिया था. फिर जैसे-तैसे अकेडमी का सपना पूरा हुआ. इसके बाद कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने ख़ुद को एक अच्छे कोच के तौर पर साबित किया.

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गोपीचंद को खिलाड़ी बनने के लिए भी काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था. उनके पास बैडमिंटन रैकेट ख़रीदने तक के पैसे भी नहीं थे. पहला बैडमिंटन रैकेट ख़रीदने के लिए उनकी मां को ज़ेवर भी बेचने पड़े थे. बार-बार घायल होने की वजह से भी गोपीचंद का अच्छा बैडमिंटन खिलाड़ी बनने का सपना कई बार टूटा. लेकिन उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी हार नहीं मानी. वो मेहनत और निष्ठा से हर समस्या को दरकिनार करते हुए आगे बढ़े. गोपीचंद अपने करियर में कई पदक जीत चुके हैं.

एक इंटरव्यू के दौरान गोपीचंद की पत्नी लक्ष्मी ने बताया था कि गोपीचंद कभी-कभी देर रात अपनी टेनिस अकादमी पहुंच जाते थे, यह देखने के लिए कि उनके शिष्य सही सलामत है या नहीं. गोपीचंद ने जब अपनी टेनिस अकादमी शुरू की थी, तब उनका मुख्य मक़सद ओलंपिक में अपने शिष्यों को पदक जिताना था.

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ये गोपीचंद का मार्गदर्शन ही है, जिसने पिछले 7- 8 साल में भारतीय बैडमिंटन की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी है. गोल्ड कोस्ट में खेले जा रहे 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में भी भारतीय बैडमिंटन टीम का जीत का सिलसिला जारी है. बैडमिंटन टीम अब तक 1 गोल्ड जीत चुकी है.