सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमा हॉल में फ़िल्म से पहले और इसके दौरान राष्ट्रगान बजने पर खड़ा होने को लेकर एक अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि अगर राष्ट्रगान किसी फ़िल्म या फिर किसी डॉक्युमेंट्री का हिस्सा हो तो खड़े होने की ज़रूरत नहीं है.साथ ही साथ कोर्ट ने कहा कि फ़िल्म की शुरुआत के दौरान राष्ट्रगान पर खड़े हों.इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि राष्ट्रगान पर खड़े होने पर बहस की ज़रूरत है.

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सुप्रीम कोर्ट ने ये एक ऐतिहासिक टिप्पणी की है. साथ ही साथ ये भी कहा है कि हम नैतिकता के पहरेदार नहीं हैं. अदालत ने कहा है कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजने पर लोग खड़े होने के लिए बाध्य नहीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट के न्यामूर्ति दीपक मिश्र और आर. भानुमति की एक बेंच ने इसका निर्णय लिया. कोर्ट में सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी पेश हुए थे. उन्होंने केंद्र की तरफ़ से अदालत में कहा कि राष्ट्रगान पर खड़े होने को लेकर क़ानून नहीं है.

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ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने फ़िल्म सोसायटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुद्दे पर असमंजस को साफ़ किया और कहा कि अगर फ़िल्म के पहले राष्ट्रगान बजता है, तो लोगों को खड़ा होना ज़रूरी है लेकिन फ़िल्म के बीच में किसी सीन के दौरान यह बजता है, तो दर्शक इस पर खड़े होने के लिए बाध्य नहीं हैं. साथ ही यह भी ज़रूरी नहीं है कि वो राष्ट्रगान को दोहराएं भी.

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जानकारी के लिए बता दें कि दिसंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजने से पहले सभी दर्शकों को इसके सम्मान में खड़ा होने का आदेश दिया था.

इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि राष्ट्रीय गान बजते समय सिनेमाहॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा.

इस फ़ैसले के बाद कई लोगों ने इसका विरोध किया. चूंकि यह कोर्ट का आदेश था, तो इसका कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ. हालांकि, कई दिव्यांगो और शारीरिक रूप से कमज़ोर लोगों की सिनेमाघर में पिटाई भी की गई.