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पिछले 700 सालों से कर्नाटक के तटीय इलाक़ों में हर साल आयोजित होने वाली ‘भैंसा दौड़’ को कंबाला रेस के नाम से भी जाना जाता है. मुख्य रूप से इस दौड़ का अयोजन धान की दूसरी फ़सल काटने के बाद किया जाता है. इस फ़ेस्टिवल के उद्घाटन समारोह के के दौरान बड़ी मात्रा में किसान अपने भैंसों के साथ जुटते हैं. इस दौरान भैंसों को सजाया जाता है और तेज़ दौड़ने के लिए तैयार किया जाता है.
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ये दौड़ परंपरागत रूप से स्थानीय तुलुवा ज़मींदारों और दक्षिण कर्नाटक और उडुपी के तटीय ज़िलों व केरल के कासरगोड द्वारा आयोजित की जाती है. ये पर्व ‘भगवान शिव’ के अवतार कहे जाने वाले ‘भगवान मंजूनाथ’ को समर्पित माना जाता है. कहा जाता है कि इस खेल के ज़रिए अच्छी फ़सल के लिए भगवान को ख़ुश किया जाता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार ये शाही परिवार का खेल हुआ करता था.
1- ‘कंबाला’ दौड़ की शुरुआत सबसे पहले सन 1969-70 में ‘बाजागोली’ दौड़ के तौर पर हुई थी.
2- श्रीनिवास गौड़ा 142.50 मीटर की रेस 13.62 सेकेंड में दौड़े थे. जबकि 100 मीटर की रेस 9.55 सेकेंड में तय की, उसेन बोल्ट के वर्ल्ड रिकॉर्ड से .03 सेकेंड तेज़.
3- कंबाला धावक निशांत शेट्टी के बारे में भी ख़बर थी कि वो श्रीनिवास गौड़ा से भी तेज़ दौड़े थे.
4- ‘कंबाला रेस’ का आयोजन दो समानांतर ‘रेसिंग ट्रैक्स’ पर होता है. रेस के दौरान ट्रैक पर पानी-कीचड़ फ़ैला दिया जाता है.
5- कंबाला रेसिंग ट्रैक 120 से 160 मीटर लंबे होते हैं और 8 से 12 मीटर तक चौड़े होते हैं.
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6- कंबाला रेस के दौरान 2 भैंसों को बांधा जाता है और उन्हें प्लेयर्स (जॉकी) द्वारा हांका जाता है.
7- कीचड़ से सने ट्रैक पर होने वाली ‘कंबाला रेस’ पर नज़र रखने के लिए कई अंपायर भी होते हैं.
8- ‘कंबाला रेस’ में खिलाड़ियों के पास अंपायर के अलावा विडियो रेफ़रल की सुविधा भी रहती है.
9- क्रिकेट मैचों की तरह कई बार ‘कंबाला दौड़’ के दौरान फ्लड लाइट्स का इस्तेमाल भी किया जाता है.
10- इस दौरान आयोजक विजेता का फैसला करने के लिए लेजर बीम नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं.
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11- पहले विजेताओं को नारियल दिए जाते थे, लेकिन अब गोल्ड मेडल, ट्रॉफ़ी व अन्य क़ीमती सामान देकर सम्मानित किया जाता है.
12- ‘कंबाला रेस’ का आयोजन कई दिनों तक चलते है और क्षेत्रीय स्तर पर ग्रैंड फिनाले का आयोजन होता है.
13- इस रेस के दौरान कई बार हादसे भी हो जाते हैं. इसलिए हर वक़्त ऐंबुलेंस की सुविधा भी मौजूद रहती है.
14- ‘कंबाला रेस’ आमतौर पर नवंबर में शुरू होती है और मार्च तक इसका आयोजन चलता है.
15- इसे ‘लव-कुश कंबाला’ नाम से भी जाना जाता था. इस दौड़ से हर साल 5,000 से अधिक लोग सीधे तौर पर जुड़े होते हैं.
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