खाने में थोड़ा सा ‘नमक’ कम ज़्यादा हो जाये, तो पूरा स्वाद बदल जाता है. इसलिये खाना बनाते समय ‘नमक’ का विशेष ध्यान रखा जाता है. ‘नमक’ इंसान की वो ज़रूरत है, जिसके बिना उसके जीवन का स्वाद अधूरा है. एक वक़्त ऐसा भी था जब भारतीयों को ‘नमक’ के लिये भारी-भरकम टैक्स (Tax) देना पड़ता था. आम जनता को इसी परेशानी से निजात दिलाने के लिये गांधीजी (Gandhi Ji) ने अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का निर्णय लिया था.
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ये एक ब्रिटिश राजनीतियों के ख़िलाफ़ एक अहिंसात्मक विद्रोह था. अहिंसात्मक मार्च में गांधी जी और उनके सहयोगियों को साबरमती आश्रम से पैदल चल कर दांडी तक पहुंचना था. दांडी पहुंचने के बाद गांधीजी और उनके समर्थकों ने ख़ुद का ‘नमक’ तैयार करने की योजना बनाई थी.
जब महात्मा गांधी ने हिलाई ब्रिटिश साम्राज्य की नींव
देखते ही देखते ‘नमक’ क़ानून तोड़ते हुए गांधी जी की ये तस्वीर पूरे हिंदुस्तान में फ़ैल गई. ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारी क़ानून के खिलाफ़ चारो तरफ़ विद्रोह की आग थी. गांधीजी को समर्थन देने के लिये जगह-जगह ‘नमक सत्याग्रह’ हो रहे थे.
महाराष्ट्र का मशहूर सत्याग्रह
कमलादेवी की हिम्मत देखने के बाद हज़ारों की तादाद में महिलाएं उनके साथ ‘नमक क़ानून’ तोड़ने में जुट गई. आखिरकार वो पल आया जब कमलादेवी और उनके साथ आई अन्य महिलाओं ने ‘नमक’ बना कर इतिहास रचा. अच्छी बात ये थी कि उनके द्वारा बनाया गया पहला ‘नमक’ का पैकेट 501 रुपये में बिका था.
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इस दौरान ब्रिटिश पुलिस ने गांधीजी समेत कई सर्मथकों को गिरफ़्तार भी किया, लेकिन आंदोलन जारी रहा. अंत में ‘नमक कानून’ पर एक समझौत किया गया, जिसे ‘गांधी-इरविन पैक्ट’ के नाम से जाना जाता है. और इस तरह भारतीयों को एक बड़ी मुसीबत से मुक्ति मिल गई.