चंडीगढ़ का वो गुरुद्वारा जहां न रखी है गोलक और न लगता है लंगर, फिर भी कोई भूखा नहीं लौटता

Akanksha Tiwari

सिख धर्म में इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है. सदियों से सिख समुदाय निस्वार्थ भाव से लोगों की मदद करता आ रहा है. अगर आप भूख से तड़प रहे हैं, तो कहीं आपको खाना मिले न मिले, लेकिन गुरुद्वारे के लंगर से आप भूखे नहीं जा पायेंगे. यहीं नहीं, हिंदुस्तान में एक गुरुद्वारा ऐसा भी है जहां कोई लंगर नहीं बनता, लेकिन फिर भी वहां से कोई इंसान भूखा नहीं जाता.   

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गुरुद्वारे में न गोलक है और न बनता है लंगर

हिंदुस्तान का ये अनोखा गुरुद्वारा चंडीगढ़ में है. नानकसर गुरुघर की सबसे ख़ास बात है कि यहां किसी तरह की गोलक नहीं रखी हुई है. न ही लंगर बनता है, फिर भी मजाल है जो यहां से कोई भूखे पेट वापस लौट जाये. कहा जाता है कि चंडीगढ़ सेक्टर 28 स्थित इस गुरुदारा साहिब की कमेटी भी नहीं बनी हुई है. इसके बावजूद लंगर का सिलसिला जारी है.  

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दरअसल, गुरुद्वारे आने वाली संगत अपने घर से लंगर लेकर निकलती है. जिसमें देसी घी के पराठे, दाल, सब्जी, फल और मिठाई होते हैं. लंगर से बचे हुए भोजन को सेक्टर 16 और 32 स्थित हॉस्पिटल के PGI में भिजवा दिया जाता है. इससे वहां के लोग भी लंगर का प्रसाद ग्रहण कर लेते हैं. जानकारी के मुताबिक, गुरुद्वारे में सेवा के लिये संगत का नबंर लगता है. लोग 2-3 महीने इंतज़ार करते हैं कि कब उनका नबंर आये और वो लंगर में प्रसाद बांटे.  

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गुरुद्वारे में तीन वक़्त का लंगर लगता है. इसके साथ ही गुरुद्वारे में हर समय अखंड पाठ भी चलता है. कहा जाता है कि यहां हर महीने अमावस्या के दिन दीवान भी सजता है.  

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सिख धर्म की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि ये मुसीबत में सबसे पहले लोगों की मदद को आगे आते हैं. इसी सेवाभाव की वजह से सिख धर्म को इंसानियत का दूसरा पर्याय माना जाता है.  

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