साल 1920-22 का दौर भारतीय इतिहास में बेहद ख़ास जगह रखता है. ये वो दौर था, जब पहली बार भारतीयों को एहसास हुआ, कि अगर वो अंग्रेज़ों को सहयोग करना बंद कर दें, तो वो ज़्यादा वक़्त तक भारत पर हुकूमत नहीं कर सकते हैं.
भारतीयों में ये एहसास पैदा किया था महात्मा गांधी ने, जिन्होंने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़कर अंग्रेज़ी सत्ता की चूलें हिला दी थीं. पहली बार लोगों ने एक जन आंदोलन में हिस्सा लिया था. लेकिन 4 फ़रवरी 1922 को चौरी-चौरा की एक घटना ने पूरा आंदोलन ख़त्म कर दिया.
क्या है चौरी-चौरा की घटना?
दरअसल, महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, अंग्रेज़ी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाने की अपील की थी. इसका सीधा सा मतलब था कि जब हम अंग्रेज़ों को सहयोग ही नहीं करेंगे, तो फिर वो हम पर शासन भी नहीं कर पाएंगे. इसी सोच के साथ ये आंदोलन आगे बढ़ा था. चूंकि, ये देशव्यापी आंदोलन था, इसलिए बढ़ी संख्या में लोगों ने इसमें शिकरत की.
देशभर में लोग जगह-जगह रैलियां, शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करते. अंग्रेज़ी सामान को जलाते थे. ये सब उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में भी चल रहा था. लेकिन इस बीच पता चला कि चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को मारा है, जिसके बाद गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हो गई.
यहां पुलिस को बल प्रयोग करना भारी पड़ गया. गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी. इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी. इस घटना के दौरान तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी.
इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. महात्मा गांधी के इस फ़ैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज़ हो गया था. हालांकि, गांधीजी ने अपने लेख ‘चौरी चौरा का अपराध’ में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएं होतीं.
साथ ही, गांधी जी ने भी साफ़ कर दिया था कि महज़ साध्य ही नही, बल्कि साधन भी पवित्र होना चाहिए. यानि लक्ष्य हासिल करने के लिए सही तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए. यही वजह है कि उन्होंने इस घटना के लिए एक तरफ जहां पुलिस वालों को लोगों को उकसाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया. वहीं, दूसरी तरफ़ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने को कहा, क्योंकि उन्होंने अपराध किया था. लेकिन बावजूद इन सबके महात्मा गांधी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और साल 1922 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया
19 लोगों को सुनाई गई मौत की सज़ा
चौरी-चौरा की घटना के लिए ब्रिटिश प्रशासन ने 200 से ज़्यादा प्रदर्शनकारियों को आरोपी बनाया था. इसमें छह लोगों की मौत पुलिस कस्टडी में ही हो गई थी.
आठ महीने की लंबी सुनवाई के बाद 172 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी. इस फ़ैसले का काफ़ी विरोध हुआ, जिसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फ़ैसले को संशोधित किया और 19 को मौत की सजा, 110 को आजीवन कारावास और शेष को लंबी जेल की सजा सुनाई गई.
बता दें, भारत सरकार ने शहीदों की याद में गोरखपुर के चौरी चौरा में एक शहीद स्मारक भी बनवाया. इस पर शहीदों के नाम भी लिखे हुए हैं.