होली हो, शिवरात्रि या कावड़ यात्रा, भांग-गांजे के नशे में मदमस्त लोग आपको मिल ही जाएंगे. ऐसा भी नहीं है कि ये नशे हैं. भारत भूमि पर सदियों से लोग भांग और गांजे का नशा करते आ रहे हैं.
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लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एक ही पौधे से आने वाले भांग, गांजा और चरस में आख़िर अंतर क्या होता है. चलिए आपको बताते हैं:
भांग, गांजा और चरस में अंतर
भारत में जो Cannabis या Marijuana का पौधा उगता है उसका Scientific नाम Cannabis Indica है. आमतौर हम इसे भांग या गांजा का पौधा कहते हैं.
इस पौधे की सूखी हुई कलियों को संस्कृत में गांजा कहा जाता है. लोग अक्सर इन सूखी हुई कलियों को चिलम या सिगरेट में भरकर पीते हैं. गांजा पीते ही आदमी को Relaxed हो जाता है. गांजे को ही Weed, Pot, आदि नामों से जाना जाता है.
भांग के फूलों को अपने हाथ पर रगड़ने से जो काली परत (Resin) जम जाती है उसे ही चरस या हशीश कहते हैं. भारत, पाकिस्तान, नेपाल और लेबनान जैसे देशों में हशीश या चरस को हाथों से ही रगड़-रगड़ कर बनाया जाता है. इसके लिए लोग भांग के पौधे में लगे फूल को तोड़कर तलहटी में घंटों-घंटो रगड़ने हैं. रगड़ने की स्पीड जितनी कम होती है, चरस की गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होती है.
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जब किसी खाने या पीने वाली चीज़ में भांग के पौधे की पिसी हुई पत्तियों और तने को मिला दिया जाता है तो उसे भांग कहते हैं. जैसे कि होली में पीने जाने वाली ठंडाई में भांग की पत्तियों (या तने) को पीस का मिला दिया जाता है. इसके अलावा लोग भांग का पकौड़ा और भांग का हलवा भी बनाते हैं.
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तो देखा आपने पौधा एक नशे तीन. हालांकि, आपको बताते चलें कि कुछ बीमारियों के इलाज में भांग के पौधे का ख़ूब इस्तेमाल होता है. इससे कई तरह की दवाइयां भी बनाई जाती है.
कई देशों ने भांग पर से प्रतिबंध हटा लिया और अब वहां भांग-गांजा आदि का सेवन ग़ैरक़ानूनी नहीं है. क्या हमारे देश में भी इसपर से प्रतिबन्ध हटाया जाना चाहिए? कमेंट में अपनी राय हमें ज़रूर बताइयेगा.