उत्तर और दक्षिण भारतीय मंदिरों की बनावट एक-दूसरे से इतनी अलग क्यों है, कभी सोचा है?

Abhay Sinha

Difference Between North and South Indian Hindu Temples: भारत में आपको हर जगह मंदिर मिलेंगे. वजह ये है कि मंदिर न सिर्फ़ धर्म का, बल्कि हमारी संस्कृति, सामाजिक रिश्तों और कला का भी केंद्र होते थे. कुछ मंदिर छोटे हैं, तो कुछ बेहद विशाल. उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक आपको ये मंदिर दिख जाएंगे. आपने गौर किया होगा कि जिस तरह के मंदिर उत्तर भारत में हैं, वैसे दक्षिण भारत में देखने को नहीं मिलते. दोनों जगह के मंदिरों की बनावट में काफ़ी अंतर होता है. आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों है?

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Difference Between North and South Indian Hindu Temples-

भारत में मंदिर निर्माण की अलग-अलग शैली हैं

हिन्दू स्थापत्य कला तीन मुख्य शैली हैं. इनके नाम हैं नागर शैली (Nagara), द्रविड़ शैली (Dravida) और बेसर शैली (Vesara). स्थापत्य कला की ये तीन शैली ही देशभर में पाए जाने वाले मंदिरों की बनावट में अंतर का कारण हैं. उत्तर भारत के मंदिर नागर शैली में बनाए जाते हैं और दक्षिण भारत के मंदिर द्रविड़ शैली में, जबकि नागर और द्रविड़ शैलियों के मिले-जुले रूप को बेसर शैली कहते हैं. 

क्या है नागर और द्रविड़ शैलियों की ख़ासियत?

नागर शैली

मंदिर स्थापत्य की इस शैली का विकास हिमालय से लेकर विंघ्य क्षेत्र तक हुआ. ये मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं. इसकी मुख्य भूमि आयताकार होती है, मगर मंदिर का पूर्ण आकार तिकोना होता है. मंदिर के सबसे ऊपर शिखर होता है, जिसे रेखा शिखर भी कहते हैं. ये उत्तर भारतीय मंदिरों की सबसे महत्वपूर्ण पहचान है. मंदिर में दो भवन भी होते हैं, एक गर्भगृह और दूसरा मंडप. गर्भगृह ऊंचा होता है और मंडप छोटा. गर्भगृह के ऊपर एक घंटाकार संरचना होती है जिससे मंदिर की ऊंचाई बढ़ जाती है. नागर शैली के मंदिरों में चार कक्ष होते हैं, गर्भगृह, जगमोहन, नाट्यमंदिर और भोगमंदिर. बता दें, खजुराहो (मध्य प्रदेश) के मंदिर नागर शैली में ही बने हैं. इसके अलावा, पुरी का जगन्नाथ मंदिर और मोढेरा सूर्य मंदिर (गुजरात) भी नागर शैली के ही उदाहरण हैं.

खजुराहो

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जगन्नाथ मंदिर

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मोढेरा सूर्य मंदिर

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Difference Between North and South Indian Hindu Temples-

द्रविड़ शैली

कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं. इस शैली में मंदिर का आधार भाग वर्गाकार होता है और शिखर पिरामिडनुमा. इसमें क्षैतिज विभाजन लिए अनेक मंज़िलें होती हैं. शिखर के शीर्ष भाग पर आमलक व कलश की जगह स्तूपिका होते हैं. इस शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता ये है कि ये काफी ऊंचे तथा विशाल प्रांगण से घिरे होते हैं. प्रांगण में छोटे-बड़े अनेक मंदिर, कक्ष तथा जलकुण्ड होते हैं. प्रागंण का मुख्य प्रवेश द्वार गोपुरम कहलाता है और मंदिर की संरचना अष्टकोणीय होती है.

 द्रविड़ शैली का सबसे अच्छा उदाहरण तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर है. 

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द्रविड़ शैली के अंतर्गत ही आगे नायक शैली का विकास हुआ, जिसके उदाहरण हैं- मीनाक्षी मंदिर (मदुरै) और रामेश्वरम् मंदिर आदि हैं.

मीनाक्षी मंदिर

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रामेश्वरम् मंदिर 

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इन दोनों शैली के चलते भारत के मंदिरों में विविधता देखने को मिलती है. 

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