ये हैं द्वापर युग की वो 5 ख़ास जगहें, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने बिताये थे जीवन के अहम पल

Akanksha Tiwari

Janmashtami 2021: पौराणिक ग्रंथों और कहानियों में हमने भगवान श्रीकृष्ण के बारे में बहुत कुछ जाना-समझा है. हांलाकि, नटखट गोपाल के बारे में जितना पढ़ो उतना ही कम लगता है. एक कहानी जानने के बाद उनके बारे में और बहुत कुछ जानने की उत्सुकता बढ़ जाती है. इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए आज हम द्वापर युग के उन स्थानों की बात करेंगे, जहां नंद गोपाल ने अपने जीवन के ख़ास पल व्यतीत किये थे.  

चलिये जानते हैं द्वापर युग के वो महत्वपूर्ण स्थान कौन से हैं: 

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1. नंदराय मंदिर 

मान्यता है कि कंस के डर के कारण वासुदेव जी अपने पुत्र को इसी स्थान पर नंदराय और मां यशोदा के पास छोड़ गये थे. द्वापर युग में यहीं नंदराय जी का निवास स्थान हुआ करता था. भगवान कृष्ण का बचपन भी इस जगह गुज़रा था. हांलाकि, अब इस स्थान पर एक मंदिर बन चुका है. यहां एक सरोवर भी है. कहते हैं कि मां यशोदा इसी सरोवर में कृष्ण जी को नहलाती थीं.

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2. श्रीकृष्ण जन्मभूमि 

हम सब जानते हैं मथुरा भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है. कंस के इसी कारागार में कान्हा ने जन्म लिया था. फिलहाल अब यहां कोई कारागार नहीं है, लेकिन अंदर का दृश्य बिल्कुल कारागार जैसा ही है. जिसे देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि द्वापर युग में भगवान ने यहीं जन्म लिया था. हॉल के अंदर एक चबूतरा भी है. माना जाता है कि कन्हैया ने धरती पर पहला क़दम इसी जगह पर रखा था.

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3. द्वारकाधीश मंदिर 

द्वारकाधीश मंदिर गुजरात में हैं. मथुरा से निकलने के बाद कान्हा जी ने गुजरात के द्वारकाधीश में ही अपना संसार बसाया था. इस मंदिर को कृष्णजी का राजमहल भी कहा जाता है. मंदिर का झंडा देख कर ऐसा लगता है कि ये आसमान छू रहा है, जो कि भगवान कृष्ण की विशालता को भी दिखाता है.  

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4. ज्योतिसर तीर्थ 

महाभारत का भीषण युद्ध कुरुक्षेत्र में ही हुआ था. कुरुक्षेत्र में ही भगवान ने पीपल के पेड़ के नीचे गीता का उपदेश भी दिया था. आज यही जगह ज्योतिसर और गीता उपदेश के नाम से मशहूर है. रोचक बात ये है कि आज भी यहां पीपल का पेड़ मौजूद है. 

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5. भद्रकाली मंदिर 

कुरुक्षेत्र स्थित भद्रकाली मंदिर एक शक्तिपीठ है. कहते हैं बलराम और श्रीकृष्ण का मुंडन इसी स्थान पर हुआ था. मंदिर में आज भी कृष्ण के पद्चिन्हों को साफ़ देखा जा सकता है. श्रृद्धालु इन पद्चिन्हों की पूजा भी करते हैं. 

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अगर अब तक आप इन स्थानों पर नहीं गये हैं, तो अब यहां जाकर द्वापर युग को जी सकते हैं.  

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