हेमू कालाणी: 19 साल की उम्र में शहीद होने वाला वो क्रांतिकारी जिसे ‘सिंध का भगत सिंह’ भी कहते हैं

J P Gupta

देश के लिए शहीद होने वाले भगत सिंह के बारे में हर कोई जानता है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी से मिलवाएंगे जिसे सिंध का भगत सिंह कहा जाता था. अंग्रेज़ों में उनका ख़ौफ ऐसा था कि 19 साल की उम्र में ही उनको फ़ांसी की सज़ा सुना दी थी.

देश की आज़ादी के लिए शहीद होने वाले इस नौजवान का नाम था हेमू कालाणी. इनका जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के सक्कर शहर में हुआ था. वो बचपन में उन्होंने अपने परिवार वालों से महान क्रांतिकारियों के क़िस्से सुने थे. इसके कारण उनमें देशभक्ति का भाव भर गया था.

पिता को छुड़ाने अकेले चल पड़े थे

sindhishaan

हेमू कालाणी पढ़ने-लिखने में तो तेज़ थे ही खेलकूद में भी आगे थे. वो अपने दोस्तों के साथ देशभक्ति के गीत गाकर आस-पास के लोगों के अंदर आज़ादी के लिए जोश भरने का काम किया करते थे. बचपन में एक बार उनके पिता को अंग्रेज़ी सैनिकों ने गिरफ़्तार कर लिया था. कारण पता नहीं था, जब उनकी मां ने कलानी को सब कुछ बताया तो वो पिता की बंदूक लेकर उन्हें छुड़ाने चल पड़े थे. हेमू कालाणी को बंदूक लेकर थाने की तरफ जाते देख उनके शिक्षक ने रोका था और समझाया था कि ऐसे काम नहीं चलेगा.

ये भी पढ़ें: खुदीराम बोस: वो युवा क्रांतिकारी जिसने देश की आज़ादी के लिए हंसते-हंसते मौत को गले लगा लिया

फ़ांसी का फंदा गले में डाल शहीदों को करते थे याद 

newscast

उनके समझाने पर वो एक ‘स्वराज्य सेना मंडल’ नाम के एक संगठन से जुड़ गए. उनका संगठन अंग्रेज़ी कपड़ों को बॉयकॉट करने के लिए लोगों को प्रेरित करता था. वो बुलंद आवाज़ में इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाते थे, जिससे लोगों में जोश भर जाता था. हेमू कालाणी गले में फ़ांसी का फंदा डालकर क्रांतिकारियों को याद करते थे. उनका मानना था कि इससे उनके अंदर देश के लिए मर मिटने का जज़्बा पैदा होता है.

ये भी पढ़ें: आज़ादी की लड़ाई लड़ी, देश के लिए जान न्यौछावर की, लेकिन इन 8 क्रांतिकारियों को आज कोई नहीं जानता

भारत छोड़ो आंदोलन में लिया हिस्सा

newscast

अंग्रेज़ों की नाक में दम कर रखा था उन्होंने.कभी वो अपने संगठन के साथ मिलकर उन पर छापामार हमला करते तो कभी किसी क्रांतिकारी की गिरफ़्तारी का विरोध करते. 1942 में जब महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू किया तब वो उसमें पूरे जोश के साथ कूद पड़े. अपने दोस्तों के साथ मिलकर वो अंग्रेज़ों की हर रणनीति को नाकामयाब करने की कोशिश करते. पूरे सिंध में हेमू कालाणी प्रसिद्ध हो गए थे.

अंग्रेज़ों से डर कर नहीं भागे

mintageworld

अक्टूबर 1942 में उन्हें पता चला कि अंग्रेज़ों की एक ट्रेन बहुत सारे हथियार लेकर आ रही है. उन्होंने अपने नगर में उस ट्रेन को पटरियां खोलकर गिराने का प्लान बनाया. वो दोस्तों के साथ पटरी पर चले गए. यहां उन्होंने पटरियों को जोड़ने वाली प्लेट्स को खोलना शुरू कर दिया. इसकी भनक अंग्रेज़ों को लग गई. वो तुरंत सैनिकों को लेकर मौक़े पर पहुंच गए. अंग्रेज़ों को आता देख उन्होंने साथियों को भागने को कहा और ख़ुद वहीं खड़े रहे. ब्रिटिश सैनिकों ने हेमू कालाणी को गिरफ़्तार कर लिया. उन पर कई फ़र्जी मुकदमे चलाए.

संसद भवन में लगी है मूर्ति

wordpress

जेल के अंदर साथियों के नाम उगलवाने के लिए उनको बहुत सारी यातनाएं दीं गई. मगर हेमू कालाणी ने कभी मुंह नहीं खोला. आखिरकार 21 जनवरी 1943 को 19 साल की उम्र में उनको फ़ांसी दे दी. उनकी अंतिम यात्रा में सैंकड़ों की भीड़ उमड़ पड़ी थी. बाद में आज़ाद हिंद फ़ौज के सेनानियों ने उनकी मां को हेमू कालाणी की वीरता के लिए स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया था. 1983 में भारत सरकार ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया था और 2003 में देश के संसद भवन में उनकी मूर्ति स्थापित की गई थी. 

देश के लिए क़ुर्बानी देने वाले युवा क्रांतिकारी हेमू कालाणी का सदैव ये देश आभारी रहेगा. 

आपको ये भी पसंद आएगा
बदलने जा रहा है ‘इंडियन एयरफ़ोर्स’ का नाम! क्या होगा नया नाम? जानिए इसके पीछे की असल वजह
जानते हो ‘महाभारत’ में पांडवों ने कौरवों से जो 5 गांव मांगे थे, वो आज कहां हैं व किस नाम से जाने जाते हैं
Ganesh Chaturthi 2023: भारत में गणपति बप्पा का इकलौता मंदिर, जहां उनके इंसानी रूप की होती है पूजा
ये हैं पाकिस्तान के 5 कृष्ण मंदिर, जहां धूमधाम से मनाई जाती है जन्माष्टमी, लगती है भक्तों की भीड़
क्या आप इस ‘चुटकी गर्ल’ को जानते हैं? जानिए कैसे माउथ फ़्रेशनर की पहचान बनी ये मॉडल
लेह हादसा: शादी के जोड़े में पत्नी ने दी शहीद पति को विदाई, मां बोलीं- ‘पोतों को भी सेना में भेजूंगी’