नेपाल की आन, बान और शान है ‘ढाका टोपी’, जानिए इसका ये अनोखा नाम कैसे पड़ा

Maahi

भारत (India) की तरह ही दुनिया के अन्य देश भी अपनी एक अलग सांस्कृतिक पहचान रखते हैं. नेपाल (Nepal) भी अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए दुनियाभर में मशहूर है. दुनिया का दूसरा हिंदू राष्ट्र होने के चलते नेपाल की संस्कृति भारत से काफ़ी मिलती जुलती है. नेपाल अपने खान-पान के साथ-साथ अपनी पारम्परिक वेशभूषा के लिए भी प्रसिद्ध है. ख़ासकर नेपाली ड्रेस के दीवाने आपको भारत में भी मिल जायेंगे. लेकिन इस ड्रेस पर चार चांद लगाने का काम यहां की ढाका टोपी (Dhaka Topi) करती है. आज हम आपको नेपाल की आन, बान और शान ‘ढाका टोपी’ का दिलचस्प इतिहास बताने जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें: Nepal Old Pics: 14 पुरानी और दुर्लभ तस्वीरों में देखिए पहले कैसा था हमारा पड़ोसी मुल्क़ नेपाल

नेपाल (Nepal) में ढाका टोपी’ या ‘नेपाली टोपी काफ़ी मशहूर है. ये नेपाल की ‘राष्ट्रीय पोशाक’ का हिस्सा है, जो पुरुषों द्वारा शादी समारोहों से लेकर बड़े उत्सवों के दौरान शान से पहनी जाती है. अब आप सोच रहे होंगे आख़िर इस ‘नेपाली टोपी’ को ढाका टोपी (Dhaka Topi) ही क्यों कहा जाता है? तो चलिए बताते हैं.

facebook

क्यों कहा जाता है इसे ‘ढाका टोपी’?

दरअसल, नेपाल के राष्ट्रीय प्रतीक ढाका टोपी (Dhaka Topi) को एक ख़ास किस्म के सूती कपड़े से बनाया जाता है. इस महीन सूती कपड़े को विशेष रूप से बांग्लादेश की राजधानी ‘ढाका’ से आयात किया जाता है. ढाका के कपड़े से बने हेडगियर की वजह से इस नेपाली टोपी को ‘ढाका टोपी’ के नाम से भी जाना जाता है. आज ये टोपी नेपाली राष्ट्रीयता का प्रतीक बन चुकी है. नेपाल में ही नहीं, बल्कि भारत के कई राज्यों में भी ‘ढाका टोपी’ पहनी जाती है.

Facebook

क्या है ‘ढाका टोपी’ का इतिहास?

ये टोपी पहली बार नेपाल के राजा महेंद्र के शासनकाल के दौरान लोकप्रिय हुई थी. राजा महेंद्र ने 1955 और 1972 के बीच नेपाल पर शासन किया था और उन्होंने ही नेपाली पासपोर्ट और दस्तावेजों पर आधिकारिक तस्वीरों के लिए ‘ढाका टोपी’ पहनना अनिवार्य किया था. पिछले कई दशकों से नेपाली सरकारी अधिकारियों द्वारा ‘ढाका टोपी’ को ‘राष्ट्रीय पोशाक’ के रूप में पहनी जा रही है. राजा महेंद्र के समय में ये टोपी काठमांडू के ‘सिंह दरबार’ (लायन हॉल) के पास किराए पर उपलब्ध होती थीं. इस दौरान टोपी पर ‘कुकरी क्रॉस’ का बैज लगाने के बाद ही अधिकारियों को पैलेस के अंदर जाने दिया जाता था.

gettyimages

अब सिर्फ़ ख़ास समारोह में ही पहनी जाती है

नेपाल में आज भी ‘दशईं’ और ‘तिहाड़’ त्योहारों के दौरान ‘ढाका टोपी’ उपहार के रूप में दी जाती है. इस टोपी ने ‘नेपाली फ़ैशन’ को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया. ये आज भी नेपाली समाज और नेपाल की पहचान का एक अभिन्न अंग बना हुआ है. नेपाल में कई पुरुष और महिलाएं आज भी नियमित रूप से ‘ढाका कपड़े’ से बने अन्य परिधान भी पहनते हैं. लेकिन 21वीं सदी के नेपाली युवा ये टोपी किसी शादी समारोह और सांस्कृतिक कार्यक्रम के अलावा शायद ही कहीं पहनते होंगे.

kathmandupost

नेपाल में आज भी कई जातीय समूहों की शादियों और अंत्येष्टि जैसे अनुष्ठानों में ढाका कपड़ा (Dhaka Cloth) एक अहम भूमिका निभाता है. केवल ‘ढाका टोपी’ ही नहीं, बल्कि ढाका कपड़े से बने ‘शॉल और ब्लाउज’ भी नेपाल में ख़ास माने जाते हैं. लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि आज नेपाल में सीमित बुनकर ही रह गये हैं, जो हथकरघा विधि से एक ख़ास तरह के रेशम से ‘ढाका टोपी’ बनाते हैं. नेपाल में ‘ढाका टोपी’ की लगातार बढ़ती मांग के बावजूद ये लोग इसे पूरा करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं.

kathmandupost

नेपाल (Nepal) के प्रमुख सांस्कृतिक कार्यकर्ता और सांस्कृतिक विशेषज्ञ तेजेश्वर बाबू गोंगह के मुताबिक़, ‘ये गोल टोपी 3 से 4 इंच की ऊंचाई के साथ, नेपाल के पहाड़ों और हिमालय को इंगित करती है. ये टोपी उन बर्फ़ीले पहाड़ों का प्रतिनिधित्व भी करती है जब बर्फ़ पिघलने से पहाड़ के निचले क्षेत्रों में हरियाली के साथ ही रंग बिरंगे फूल खिल उठते हैं.

kathmandupost

ये भी पढ़ें: भारतीय इतिहास की कई सुनहरी यादों की गवाह रही दशकों पुरानी ये 15 तस्वीरें शानदार हैं

नेपाल (Nepal) के पारंपरिक फ़ैशन को जीवित रखने के लिए नेपाली लोगों द्वारा हर साल 1 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय नेपाली धोती और टोपी दिवस (International Nepali Dhoti and Topi Day) मनाया जाता है. इस दौरान मधेसी और थारू जाति के लोग ‘नेपाली धोती’ पहनते हैं, जबकि बाकी लोग उस दिन ‘ढाका टोपी’ और ‘भदगौनले टोपी’ पहनते हैं.

आपको ये भी पसंद आएगा
कोलकाता में मौजूद British Era के Pice Hotels, जहां आज भी मिलता है 3 रुपये में भरपेट भोजन
जब नहीं थीं बर्फ़ की मशीनें, उस ज़माने में ड्रिंक्स में कैसे Ice Cubes मिलाते थे राजा-महाराजा?
कहानी युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस की, जो बेख़ौफ़ हाथ में गीता लिए चढ़ गया फांसी की वेदी पर
बाबा रामदेव से पहले इस योग गुरु का था भारत की सत्ता में बोलबाला, इंदिरा गांधी भी थी इनकी अनुयायी
क्या है रायसीना हिल्स का इतिहास, जानिए कैसे लोगों को बेघर कर बनाया गया था वायसराय हाउस
मिलिए दुनिया के सबसे अमीर भारतीय बिज़नेसमैन से, जो मुगलों और अंग्रेज़ों को देता था लोन