जानिए प्राचीनकाल में किस तरह युद्ध लड़ा जाता था और उसमें कैसे क़ायदे-क़ानून का पालन किया जाता था?

J P Gupta

भारत(India) का इतिहास हज़ारों साल पुराना है. इसका इतिहास बहुत से युद्ध और लड़ाइयों से भरा हुआ है. कोई युद्ध(War) कुछ घंटो तक चला तो कोई कई महीनों तक. उस दौर में हथियार इतने बेहतरीन नहीं थे जितने आज हैं मगर भारतीय योद्धा अपने दुश्मनों से जमकर लोहा लेते थे.

पर कभी सोचा है प्राचीन काल में भारतीय लोग कैसे युद्ध किया करते थे और वॉर के क्या-क्या नियम हुआ करते थे? नहीं, तो चलिए आज आपको इसकी भी जानकारी दिए देते हैं.

चतुरंग बल

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प्राचीन काल में राजाओं की सेना में रथ, हाथी, घुड़सवार और पैदल सैनिकों के 4 विशेष प्रकार के विभाग थे. इन्हें ‘चतुरंग बल’ के नाम से जाना जाता था. मिस्र के रथों के मुक़ाबले भारतीय रथ बहुत ही भारी और मजबूत हुआ करते थे. इन्हें 4-8 घोड़ों के द्वारा खींचा जाता था. इनमें सारथी और धनुर्धर के बैठने का पर्याप्त स्पेस होता था.   

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रथ के अलावा युद्ध में हाथियों का भी इस्तेमाल किया जाता था. इन्हें प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल(ब्रिटिश काल) तक में प्रयोग किया गया था. हाथियों को बख्तरबंद पोशाक यानी कवच पहनाए जाते थे. उन पर एक चौकी रखी जाती थी जिन में सैनिक और महावत के बैठने की जगह होती थी. उनके दांतों में खंजर और सूंड में तलवारें लगाई जाती थी, इस हाथी को अपनी ओर आता देख ही दुश्मन सेना के पसीने छूटने लगते थे.  

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योद्धा जो हथियार इस्तेमाल करते थे उन्हें शस्त्र कहा जाता था. धनुष-बाण लोगों का पसंदीदा शस्त्र था, तलवार, कुल्हाड़ी, भाले का प्रयोग हाथ से लड़ने के लिए किया जाता था. हनुमान जी का पसंदीदा शस्त्र गदा भी योद्धा इस्तेमाल करते थे. इसके अलावा कुछ सैनिक चक्र का प्रयोग करते थे. इसे दूर से ही दुश्मनों पर चलाया जाता था. इसका ज़िक्र कई पौराणिक कथाओं में मिलता है.   

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इन सब के अलावा पौराणिक कथाओं में बहुत-से दूसरे घातक हथियारों का भी वर्णन मिलता है. हालांकि, इनके ऐतिहासिक साक्ष्य तो नहीं मिलते, मगर महाभारत-रामायण आदि में इनके बारे में लिखा है. युद्ध के दौरान किसी मंत्र का उच्चारण कर या फिर किसी देवता का आह्वाहन कर इन्हें दुश्मनों पर फेंका जाता था. ये दुश्मन सेना को ख़ूब क्षति पहुंचाते थे.

ब्रह्मास्त्र

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‘ब्रह्मास्त्र’ ऐसा ही एक शस्त्र है, जिसे ब्रह्मा जी द्वारा बनाया गया सबसे घातक अस्त्र कहा जाता है. कहते हैं इसका प्रयोग जहां किया जाता वहां सालों तक जीवन नहीं पनपता था. इसके अलावा ‘अग्निस्त्र’ भी था जिसे इस्तेमाल करते ही आग की बारिश होने लगती थी.

युद्ध के नियम  

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रामायण और महाभारत में जो युद्ध लड़े गए उनके कुछ नियम-कायदे भी थे. इन्हें युद्ध में अनावश्यक लोगों की मृत्यु से बचाने के लिए बनाया गया था. जैसे: 

-लड़ाई सूर्योदय के समय शुरू होती थी और सूर्यास्त को बंद.

-योद्धाओं का एक समूह किसी अकेले सैनिक पर हमला नहीं कर सकता था. 
-सैनिक उन लोगों को नहीं मार सकते थे जो निहत्थे होते थे, जिन्होंने आत्मसमर्पण किया हो, बेहोश हों. 
-सभी योद्धा अपने बराबर के योद्धा से लड़ते थे, जैसे घुड़सवार- घुड़सवार से ही लड़ता था और रथ वाले योद्धा रथ पर सवार योद्धा से.  

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इस तरह नियमों के तहत होने वाले युद्ध को धर्मयुद्ध कहते थे. मगर रामायण और महाभारत के बाद योद्धाओं ने इन नियमों का पालन करना बंद कर दिया और लोग धोखे से दुश्मन को मारने लगे थे. 

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