क्रिकेट के अलावा कई और भी खेल होते हैं जिनका फ़ैसला टॉस से होता है. इतना ही नहीं कितनी बार हम आपस में भी टॉस करके फ़ैसला लेते हैं. इसी टॉस ने देश के बंटवारे के वक़्त भी अहम भूमिका निभाई थी, जिस क़िस्से के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं. दरअसल, 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो दो हिस्से हो गए और उस वजह से ज़मीन से लेकर सेना तक का बंटवारा हुआ, लेकिन एक बग्घी थी जिसका बंटवारा नहीं हो पा रहा था. तब भारत ने पकिस्तान से टॉस जीतकर उस बग्घी को हासिल किया था.
ये भी पढ़ें: रविन्द्र कौशिक: भारत का वो शातिर जासूस जो पाकिस्तान में घुसकर उनकी सेना में बन गया था मेजर
इसमें से एक ‘गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स’ रेजीमेंट भी थी. इस रेजीमेंट का बंटवारा 2:1 के अनुपात में हो गया, लेकिन रेजिमेंट की मशहूर बग्घी को लेकर दोनों पक्षों में मतभेद हो गया क्योंकि रेजिमेंट की इस ख़ास बग्घी को दोनों ही देश अपने पास रखना चाहते थे. तभी तत्कालीन ‘गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स’ के कमांडेंट और उनके डिप्टी ने एक सिक्के के ज़रिए विवाद को सुलझाने की कोशिश की.
ये भी पढ़ें: पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कैसा दिखाई देता है, ये जानना है तो वहां की ये 30 तस्वीरें ज़रूर देखना
फिर सिक्के को उछालकर टॉस के ज़रिए ये फ़ैसला किया गया कि जिसमें राष्ट्रपति सवारी करेंगे वो बग्घी किसके पास रहेगी. इसके बाद गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स ने दोनों पक्षों के सामने सिक्का उछाला, जिसमें भारत टॉस जीत गया. तभी से राष्ट्रपति की शान मानी जाने वाली बग्घी भारत को मिल गई.
आपको बता दें कि साल 1950 में पहली बार गणतंत्र दिवस के मौक़े पर देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद इसी बग्घी से गणतंत्र दिवस समारोह तक गए थे. इसके अलावा वो इसी बग्घी में बैठकर शहर का दौरा भी करते थे.
साल 1984 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखते हुए इस बग्घी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दया गया था और राष्ट्रपति बुलेट प्रूफ़ गाड़ियों में आने लगे थे. मगर 30 साल बाद भारत के 13वें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने बग्घी की प्रथा को फिर से शुरू किया तब से प्रथा जारी है.