भोपाल का वो क़िला जिसके राजा ने दुश्मनों से अपनी रानी की रक्षा करने के लिए काट दिया था उसका सिर

Kratika Nigam

हमारे भारत का इतिहास क़िले, युद्ध और राजाओं के पराक्रम से भरा पड़ा है. कहानी क़िले की हो या किसी राजा के युद्ध की पराक्रमी होने के साथ-साथ रोचक भी हैं. ये सभी भारत की आन, बान और शान हैं. इनमें से कुछ क़िले ऐसे भी हैं जो रहस्यमयी हैं जिनके बारे में जानने का मन करता है. एक ऐसा ही क़िला भोपाल में है, जिसका नाम रायसेन का क़िला और इसे सन् 1200 ईस्वी में इसे बलुआ पत्थर से बनाया गया था, जो पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. इसके बारे में एक हैरान करने वाली बात है कि यहां शासन कर रहे राजा ने ख़ुद अपनी रानी का सिर काट दिया था.

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प्राचीन वास्तुकला से बना ये क़िला कई शताब्दियों के बीतने के बाद भी पूरी शान के साथ खड़ा हुआ है. इसके चारों ओर  बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं, जिनमें नौ द्वार और 13 बुर्ज हैं. इस क़िले में कई राजाओं ने शासन किया है जिनमें से एक शेरशाह सूरी भी था. इस क़िले को जीतने में शेरशाह सूरी के पसीने छूट गए थे. इसके अलावा चार महीने की घेराबंदी के बाद भी सूरी इस क़िले को जीत नहीं पाया था.

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1543 ईस्वी में शेरशाह सूरी ने तांबे के सिक्कों को गलवाकर तोपें बनवाईं थी, जिसकी वजह से उसे क़िले पर जीत हासिल हुई, लेकिन कहा जाता है कि ये जीत उसने धोखे से हासिल की थी. क्योंकि उस समय राजा पूरनमल क़िले पर शासन कर रहे थे तो उन्हें जासे ही पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है तो उन्होंने अपनी रानी रत्नावली को दुश्मनों से बचाने के लिए उनका सिर ख़ुद ही काट दिया था. 

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इससे जुड़ी एक और रहस्यमयी कहानी है कि राजा राजसेन के पास पारस पत्थर था, जिससे लोहे को भी सोना बनाया जा सकता था. इस पत्थर के लिए कई युद्ध हुए और जब राजा युद्ध हार गए थे तो उन्होंने पत्थर को क़िले के ही एक तालाब में फेंक दिया था. कहा जाता है कि कई राजाओं ने क़िले में खुदाई कराकर उस पत्थर को ढूंढने की कोशिश की लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला.

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इतना ही नहीं कुछ लोग तो पत्थर की तलाश में रात में यहां तांत्रिक को लेकर आते हैं, लेकिन उन्हें भी कुछ नहीं मिलता. कहते हैं कि जो भी पत्थर को ढूंढ़ने आता है वो अपना मानसिक संतुलन खो देता है. क्योंकि पारस पत्थर की रक्षा एक जिन्न करता है. हालांकि, पुरातत्व विभाग की ओर से इसकी पुष्टि नहीं की गई है.

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