जानिए क्या है फ़िल्म ‘कांतारा’ में दिखाई गई ‘भूत कोला’ परंपरा, जिसमें होती है आत्माओं की पूजा

Nripendra

Kantara Bhoota Kola Ritual in Hindi: भारत भूमि इसलिए भी अनोखी और रहस्यमयी मानी जाती है क्योंकि यहां वर्षों पुराने रीति रिवाज़ों और परंपराओं का चलन है. इनमें कुछ धार्मिक परंपराएं ऐसी हैं जिन्हें हम जानते, समझते हैं, जबकि कई ऐसी हैं जिनके बारे में हमें नहीं पता, क्योंकि ये एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रहती हैं. अगर आप बारीकी से भारत की क्षेत्र विशेष परंपराओं के बारे में जानने की कोशिश करें, तो आपको कई अनोखे रीति रिवाज़ों के बारे में पता चलेगा जिसमें आत्माओं से संपर्क स्थापित किया जाता है और कुल देवी-देवताओं को खुश करने के लिए विभिन्न प्रकार के कर्मकांड किए जाते हैं, जिसमें नृत्य भी शामिल होता है. 

फ़िल्म कांतारा में एक ऐसी ही वर्षों पुरानी परंपरा के बारे में बताया गया है, जिसका नाम है ‘भूत कोला’ (Bhoota Kola Festival in Hindi). अगर आपने फ़िल्म देखी है, तो आपको पता लगेगा कि जंगल और जंगल वासियों की रक्षा दैव्य द्वारा की जाती है और दैव्य को ख़ुश रखने के लिए गांव के लोग पूजा पाठ पूरे रीति रिवाज़ के साथ करते हैं. 

आइये, इस ख़ास लेख में विस्तार से जानते हैं कि आख़िर क्या है फ़िल्म कांतारा में दिखाई गई भूत कोला (Kantara Bhoota Kola Ritual in Hindi) परंपरा. 

क्या है भूत कोला परंपरा? 

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Kantara Bhoota Kola dance in Hindi: भूत कोला कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़, उत्तर कन्नड़, उडुपी और केरल के कुछ ज़िलों में तुलु बोलने वाले लोगों का एक वार्षिक लोक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें स्थानीय आत्माओं या देवताओं की पूजा की जाती है. 

भूत कोला को दैव्य कोला भी कहा जाता है. ये एक नॉन वैदिक परंपरा है, जिसमें रक्षा करने वाले पूर्वजों की पूजा की जाती है. 

Deccanherald की मानें, तो तुलू में भूत कोला में ‘भूत’ का मतलब आत्मा और ‘कोला’ का मतलब प्ले यानी नाटक होता है. 

गांव के लोगों की रक्षा करती है आत्मा 

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Kantara Bhoota Kola dance in Hindi: मान्यता है कि आत्मा, जिसकी पूजा की जाती है वो गांव वालों की रक्षा करती है और उनके विवादों को सुलझाने का काम करती है. वहीं, ये माना जाता है कि आत्मा का क्रोधित होना यानी कुछ विनाश ज़रूर होगा. इसलिए गांव वाले आत्मा को ख़ुश रखने के लिए उनकी पूजा करते हैं और चढ़ावा भी देते हैं. 

किन आत्माओं की होती है पूजा? 

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पंजुरली, बोब्बर्या, पीलीपूता, कालकुडा, कालबुर्ती, पीलीचामुंडी व कोटि चेन्नाया कुछ लोकप्रिय देवता (भूत) हैं, जिन्हें भूत कोला में पूजा जाता है. भूत कोला को ‘यक्षगान’ से भी प्रभावित माना जाता है, जो तटीय कर्नाटक में एक लोकप्रिय और व्यापक रूप से किया जाने वाला लोक नृत्य है. भूत कोला के कुछ अनुष्ठानों में गर्म कोयले के बिस्तर पर चलना भी शामिल है. 

कौन करता है भूत कोला? 

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History of Bhoota Kola in Hindi: जैसा कि आपने फ़िल्म में देखा होगा कि एक ख़ास शख़्स के ज़रिये भूत कोला किया जाता है. जो एक अलग वेशभूषा धारण करता है और भूत कोला के रीति रिवाज़ों को आगे बढ़ाता है. 

Deccanherald के अनुसार, कोला समाज के नीचे वर्ग से जुड़ा एक प्रोफ़ेशनल व्यक्ति ही करता है. व्यक्ति प्राकृतिक रंगों से अपने शरीर को रंगता है और ख़ास पारंपरिक वस्त्र और आभूषण धारण करता है. 

इसके बाद उस ख़ास शख़्स के अंदर कुछ देर के लिए कथित रूप से दैव्य (जिस आत्म की पूजा की जा रही है) आते हैं और गांव वालों की समस्या का समाधान और आने वाली विपत्ति के बारे में लोगों को आगाह करते हैं.

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History of Bhoota Kola in Hindi: दैव्य की कही गई बातें सर्वोपरी होती हैं और गांव वालों को माननी पड़ती है. वहीं, अगर कोई दैव्य की बातों को मानने से इंकार करता है, तो कथित रूप से उसके साथ कुछ अनर्थ हो जाता है. 

माना जाता है कि ये परंपरा 500-600 साल पुरानी है, हालांकि, इस तथ्य को साबित करने के लिए कोई ठोस सुबूत उपलब्ध नहीं है. 

इसके अलावा, कोला एक परिवार द्वारा ही सीमित होती यानी वो ही परिवार कोला का आयोजन करता है बाकी लोग वहां उपस्थित होते हैं. कोला को ‘नेमा’ भी कहा जाता है यानी आनुष्ठान, जो सूर्यास्त से सूर्योदय तक चलता है. 

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