Indian Army: भारतीय सेना के इतिहास में कुमाऊं रेजिमेंट (Kumaon Regiment) का गौरवशाली इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. ये भारतीय सेना की एक इंफ़ेंट्री रिजिमेंट है. देश को पहला परमवीर चक्र दिलाने, 3 थलसेना अध्यक्ष देने सहित तमाम उपलब्धियां ‘कुमाऊं रेजिमेंट’ के नाम हैं. अब तक हुए सभी युद्धों और ऑपरेशनों में इस रेजिमेंट के जवानों ने अपने साहस, शौर्य व पराक्रम से सफ़लता की नई इबारत लिखी है. वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात ‘कुमाऊं रेजीमेंट’ की 21 बटालियन देश की सीमाओं की रक्षा में तैनात हैं.
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भारतीय सेना की सबसे प्रतिष्ठित रेजिमेट्स में से एक कुमाऊं रेजिमेंट (Kumaon Regiment) ने जनरल एस.एम. श्रीनगेश, जनरल के.एस. थिम्मैया और जनरल टी.एस रैना के रूप में देश को 3 थलसेना अध्यक्ष देकर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया है.
कब हुई थी कुमाऊं रेजिमेंट की स्थपना?
‘कुमाऊं रेजिमेंट’ का इतिहास बेहद पुराना है. इसकी स्थापना सन 1788 में हुई थी. कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय उत्तराखंड के रानीखेत में स्थित है. इस रेजीमेंट की शुरुआत सन 1788 में हैदराबाद में नवाब सलावत खां की रेजिमेंट के रूप में हुई थी. इसके बाद सन 1794 में इसे ‘रेमंट कोर’ फिर बाद में ‘निजाम कांटीजेंट’ नाम दिया गया था. इस दौरान में ‘बरार इंफैंट्री’, ‘निजाम आर्मी’ और ‘रसेल ब्रिगेड’ को मिलाकर ‘हैदराबाद कांटीजैंट’ बनाई गई थी. सन 1903 में इसका भारतीय सेना में विलय हो गया. सन 1922 में इसका पुनर्गठन कर इसे ‘हैदराबाद रेजिमेंट’ नाम दिया. 27 अक्टूबर 1945 को इसे ‘द कुमाऊं रेजिमेंट’ नाम दिया गया और उत्तराखंड के रानीखेत में ‘कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर’ की स्थापना हुई.
‘कुमाऊं रेजिमेंट’ का गौरवशाली इतिहास
‘कुमाऊं रेजिमेंट’ का स्वतंत्रता पूर्व की शौर्य गाथा का इतिहास भी गौर्वान्वित रहा है. इस रेजिमेंट ने मराठा युद्ध (1803), पिंडारी युद्ध (1817), भीलों के विरुद्ध युद्ध (1841), अरब युद्ध (1853), रोहिल्ला युद्ध (1854), भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम झांसी (1857) इत्यादि युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. प्रथम विश्व युद्ध में इस रेजिमेंट ने फ्रांस, टर्की, फ़िलिस्तीन, पूर्वी अफ़्रीका व अफ़ग़ानिस्तान में अपने युद्ध कौशल का परिचय दिया था. इसके अलावा द्वितीय विश्व युद्ध में भी इस रेजिमेंट की पल्टनों ने मलाया, बर्मा व उत्तरी अफ़्रीका समेत कई अन्य देशों में पराक्रम का लोहा मनवाया था.
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सोमनाथ शर्मा थे ‘प्रथम परमवीर चक्र’ विजेता
सन 1947 में ‘4 कुमाऊं रेजिमेंट’ की ‘डेल्टा कंपनी’ ने कश्मीर के बडगाम में मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) के नेतृत्व में वीरता के झंडे गाड़े. इस ऑपरेशन में अदम्य साहस का परिचय देते हुए मेजर सोमनाथ ने पाकिस्तानी कबायली हमले का मुंहतोड़ जवाब देते हुए दुश्मनों को मार भगाया था. मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था. ये पुरस्कार पाने वाले वो देश के पहले सैनिक थे.
मेजर शैतान सिंह ने चीन को सिखाया सबक
‘कुमाऊं रेजिमेंट’ को 1947 के ‘भारत-पाकिस्तान युद्ध’ के लिए ही नहीं, बल्कि 1962 के ‘भारत-चीन युद्ध’ के लिये भी विशेष रूप से जाना जाता है.1962 में लद्दाख व नेफ़ा क्षेत्र में मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में ’13 कुमाऊं रेजिमेंट’ की ‘चार्ली कंपनी’ ने चीनी सेना के हौंसले पस्त कर दिए थे. शैतान सिंह को उनके इस पराक्रम व वीरता के लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किता गया था. सन 1965 व 1971 के युद्धों समेत वर्तमान तक भारतीय सेना के हर बड़े ऑपरेशनों में ‘कुमाऊं रेजिमेंट’ सबसे आगे रहती है.
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‘नागा रेजिमेंट’ की नींव रखने का श्रेय
सन 1970 में रानीखेत में ‘नागा रेजिमेंट’ को खड़ा करना ‘कुमाऊं रेजिमेंट’ की बड़ी उपलब्धि थी. इससे इस रेजिमेंट‘ ने नागालैंड वासियों का दिल जीतने का काम किया था. इसके बाद ‘कुमाऊं रेजिमेंट’ ने 11 फ़रवरी, 1985 को रानीखेत में ही ‘नागा रेजिमेंट’ की दूसरी बटालियन भी खड़ी की थी.
कितनी विशाल है ‘कुमाऊं रेजिमेंट’?
वर्तमान में ‘कुमाऊं रेजिमेंट’ की कुल 21 बटालियनें हैं. इसके अलावा 3 टेरिटोरियल आर्मी व 3 राष्ट्रीय राइफ़ल बटालियन भी हैं. कुमाऊं रेजिमेंट के साथ पैराशूट रेजिमेंट, 4 मैकेनाइज्ड इंफैंट्री, 9 हॉर्स नेवलशिप, INS खंजर युद्धपोत भी हैं.
वीरता को बयां करते हैं ढेरों पदक
भारतीय सेना की ‘कुमाऊं रेजिमेंट’ को अब तक वीरता के लिए 2 परमवीर चक्र, 10 महावीर चक्र, 78 वीर चक्र, 4 अशोक चक्र, 6 कीर्ति चक्र, 23 शौर्य चक्र, 1 युद्ध सेवा मेडल, 2 उत्तम युद्ध सेवा मेडल, 8 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 36 विशिष्ट सेवा मेडल, 127 सेना मेडल, 1 अर्जुन पुरस्कार मिल चुके हैं. इसके अलावा इस रेजिमेंट को 220 से अधिक मेंशन इन डिस्पेचेस और 734 से अधिक अन्य सम्मान भी मिल चुके हैं, जिनमें दो पद्मभूषण भी शामिल हैं. ‘कुमाऊं रेजिमेंट’ की बटालियनों ने 17 से अधिक बार ‘यूनिट साइटेशन’ भी हासिल किए हैं.
जय हिंद!
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