‘सांप-सीढ़ी’ सिर्फ़ एक मज़ेदार खेल नहीं, बल्कि इसका इतिहास भी काफ़ी दिलचस्प है

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बचपन में आप सभी ने सांप-सीढ़ी (Snakes And Ladders) का खेल तो खेला ही होगा. इस दौरान शुरुआत में ही 26 नंबर आने की ख़ुशी और 99 नंबर का डर हमारी हालत ख़राब कर देता था. कभी-कभी तो ऐसा भी होता था जब दो-तीन अंको के बाद ही हम गेम जीत जाते थे, लेकिन जब किस्मत ख़राब होती थी तो हर जगह नाग देवता कुंडली मार लेते थे. ख़ासकर गर्मियों की छुट्टी में जब सारे कजिन एक साथ मिलते थे और देर रात तक सांप-सीढ़ी और लूडो खेलते थे. सांप-सीढ़ी का खेल आज भी हमारी बचपन की सबसे ख़ूबसूरत यादों में से एक है.

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आज के ‘डिजिटल युग’ में ‘सांप-सीढ़ी और लूडो’ भी पूरी तरह से डिजिटल हो चुके हैं, लेकिन अब वो पहले जैसी बात नहीं रही. ‘डिजिटल युग’ में सब कुछ पहले से ही तय होता है. पहले तो ‘सांप-सीढ़ी और लूडो’ खेलते वक़्त हम चीटिंग भी कर लेते थे लेकिन अब ऐसा संभव नहीं है. आज के 3डी और एनीमेशन गेम्स के बावजूद हमें जब भी मौका मिलता है हम ‘सांप-सीढ़ी और लूडो’ ज़रूर खेलते हैं.

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चलिए अब सांप-सीढ़ी के खेल का रोचक इतिहास भी जान लीजिए जो भारत से उत्पन्न होकर दुनिया भर तक पहुंचा-

सांप-सीढ़ी के अलग-अलग नाम  

सांप-सीढ़ी खेल की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी. इसके बाद ये धीरे-धीरे दुनियाभर में मशहूर हो गया. अलग-अलग समय में इसके कई सारे नाम भी पड़े. जब इसकी शुरुआत हुई थी उस दौरान इसे ‘मोक्षपट’ या ‘मोक्षपटामु’ नाम से जाना जाता था. कई जगहों पर इसे ‘लीला’ नाम से भी जाना जाता था. इस नाम के पीछे की वजह थी मनुष्य का धरती पर तब तक जन्म लेते रहना, जब तक वो अपने बुरे कर्मों को छोड़ नहीं देता. सदियों पहले इसे ‘ज्ञान चौपड़’ के नाम से भी जाना जाता था. इसका अर्थ है ‘ज्ञान का खेल’. 

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सांप-सीढ़ी की उत्पत्ति कब और किसने की थी इतिहास के पन्नों में इसकी सही-सही जानकारी तो नहीं मौजूद, लेकिन कुछ इतिहासकार कहना है कि, ये खेल दूसरी सदी से ही खेला जा रहा है. ये इस बात का संकेत है कि ‘सांप-सीढ़ी’ विश्व के सबसे प्राचीन खेलों में से एक है, जबकि अन्य इतिहासकारों के मुताबिक़, सांप-सीढ़ी का आविष्कार 13वीं शताब्दी में संत ज्ञानदेव ने किया था. इस खेल को आविष्कार करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य बच्चों को नैतिक मूल्य सिखाना था. 

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अच्छाई और बुराई का संदेश देता था ‘ये’ खेल 

प्राचीन काल वाले ‘सांप-सीढ़ी’ बोर्ड की बात करें तो इसमें चौखाने बने होते थे. इस दौरान सभी चौखाने अलग-अलग होते थे. प्रत्येक चौखाना ‘गुण’ या ‘अवगुण’ को दर्शाता था. सीढ़ी वाला चौखाना ‘गुण’ कहलाता है जो आगे बढ़ते रहने का संदेश देता है. वहीं जिस चौखाने में सांप का फन होता है वो इंसान में मौजूद बुराइयों को दर्शाता है, जिसकी वजह से इंसान हमेशा नीचे गिरता है. जबकि 100 नंबर पर पहुंचना मोक्ष की प्राप्ति कहलाता था.

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जीवन में आगे बढ़ने के लिए करता है प्रेरित  

ये खेल अच्छे और बुरे कर्मों में फर्क करना भी सिखाता है. सांप-सीढ़ी में मौजूद सीढ़ियां दया, विश्वास और विनम्रता को भी दर्शाती हैं. वहीं दूसरी ओर सांप बुरी किस्मत, गुस्सा और हत्या आदि को दर्शाता है. इस खेल ये भी सिखाता है कि किसी भी व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म करने होते हैं. जबकि बुरे कर्म करने वाले लोगों के जीवन में हमेशा सांप रुपी बुराई अंधकार की ओर ही ले जाती है. इस खेल के दौरान जब हम आगे पहुंचकर भी नीचे की ओर लुढ़क जाते हैं तो ये भी जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.  

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19वीं शताब्दी में पहुंचा ब्रिटेन

19वीं शताब्दी के दौरान जब अंग्रेज़ों ने भारत पर शासन की शुरुआत की तब ‘सांप-सीढ़ी’ का ये खेल ब्रिटेन भी जा पहुंचा था. अंग्रेज जब इसे अपने साथ ब्रिटेन लेकर गए तो उन्होंने अपने हिसाब से इसमें कुछ बदलाव भी किये. अंग्रेज़ों ने कुछ मामूली बदलावों के बाद ये नए नाम ‘स्नेक एंड लैडरर्स’ से मशहूर हुआ. इस दौरान अंग्रेज़ों ने इसके पीछे के नैतिक और धार्मिक रूप से जुड़े हुए विचारों को हटा दिया था. अब इस खेल में सांप और सीढ़ियों की संख्या भी बराबर हो चुकी थी, जितने सांप उतनी ही सीढियां. लेकिन पहले ऐसा नहीं था.  

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ब्रिटेन के बाद ‘सांप-सीढ़ी’ का ये खेल अमेरिका जा पहुंचा. सन 1943 में ये अमेरिका में काफ़ी मशहूर हुआ. इस दौरान मिल्टन ब्रेडले ने अमेरिकियों को इस सांप-सीढ़ी के खेल से परिचय करवाया. इस दौरान अमेरिका में ये खेल ‘शूट एंड लैडरर्स’ के नाम से मशहूर हो गया.   

‘सांप-सीढ़ी’ का एक और रूपांतर है जो आंध्रप्रदेश में ‘वैकुंतापाली और परमापदा सोपनम’ के नाम से जाना जाता है. इसमें सांप ‘मृत्यु’ को और सीढिया ‘जीवन’ को दर्शाते हैं. इस खेल में 132 स्क्वायर होते हैं, जिनमे अलग-अलग प्रकार की तस्वीरें होती हैं.

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