मितन्नी राजवंश: सीरिया का वो राजवंश जो संस्कृत में ही लिखता और बोलता था

J P Gupta

संस्कृत(Sanskrit) एक वैदिक भाषा है. कुछ लोगों का मानना है कि ये दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है, जो लगभग 5000 साल पुरानी है. ऋग्वेद जिस भाषा में लिखा गया है वो इसका यानी संस्कृत का प्रथम स्वरूप है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि संस्कृत ऋग्वेद से भी पहले इस्तेमाल होती थी. इस भाषा का इस्तेमाल आज से लगभग 3500 साल पहले सीरिया का एक राजवंश किया करता था. आज हम उसी राजवंश के बारे में आपको बताएंगे.

मितन्नी राजवंश

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तकरीबन 3500 साल पहले पश्चिमी एशिया के सीरिया में एक बड़े साम्राज्य का शासन चलता था, जिसका नाम मितन्नी(Mitanni) था. इस राजवंश ने 1500 से 1300 ईसा पूर्व सीरिया के उत्तर और दक्षिण-पूर्व अनातोलिया में राज किया था. वर्तमान में ये हिस्सा इराक, तुर्की और सीरिया के रूप में जाना जाता है. 

मितन्नी राजवंश के लोग संस्कृत बोलते थे    

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बोगाजकोई सभ्यता से संबंधित कुछ पुरातत्व अवशेष वैज्ञानिकों को मिले हैं जो 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बताए जाते हैं. इनका अध्ययन करने पर ये पाया गया था कि मितन्नी राजवंश के लोग संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे. उनके कुछ शिलालेखों में इंद्र, आर्ततम, दशरथ जैसे नामों का भी उल्लेख मिलता है. ये लोग रथ बनाने और अश्व यानी घोड़ों को ट्रेंड करने में माहिर थे. 

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संधि में है इंद्र, वरुण जैसे देवों का नाम

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हित्तियों के हित्ती साम्राज्य से लगी मितन्नी साम्राज्य की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर विवाद होता रहता था. इसके चलते दोनों साम्राज्यों में काफ़ी युद्ध भी हुए. ये इलाका तब तक शांत हुआ जब तक दोनों साम्राज्यों के बीच एक संधि नहीं हो गई. 1400 ईसा पूर्व के मितन्नी के एक अभिलेख में हिती राजा Suppiluliuma और मितन्नी राजा Shattiwaza के बीच इस संधि का ज़िक्र मिलता है. इसमें उन्होंने साक्षी के रूप में इंद्र, मित्र, वरुण जैसे वैदिक देवताओं का नाम लिखा है. 

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इनके राजाओं के नाम भी संस्कृत में थे

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मितन्नी साम्राज्य के राजाओं के नाम भी संस्कृत भाषा से निकले कुछ शब्दों से मिलते-जुलते थे जैसे कीर्त्य, सत्वर्ण, वरतर्ण, बरात्तर्ण, आर्ततम, सत्वर्ण, अर्थसुमेढ़, तुष्यरथ या दशरथ, सत्वर्ण, मतिवाज, क्षत्रवर. वस्सुकन्नि मतलब वसुखनि इस राज्य की राजधानी थी जिसका अर्थ होता है मूल्यवान धातुओं की खान. इनकी भाषा में आर्य शब्द का भी उल्लेख मिलता है. अब सवाल ये उठता है कि आख़िर संस्कृत भाषा वहां पहुंची कैसे?

संस्कृत भाषा वहां कैसे पहुंची? 

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इतिहासकारों के मुताबिक, वैदिक संस्कृत प्रोटो इंडो यूरोपियन नाम की एक आदिम भाषा से निकली है. ये भाषा इराक और भारत में आगे चलकर विकसित हुई. इस भाषा को बोलने वाले लोग कुछ वहीं रहे और कुछ पूर्व(भारत) की तरफ आ गए. इन्होंने वैदिक संस्कृत में बोलना-लिखना जारी रखा. वो अपनी संस्कृति को बचाए रखने में सफ़ल रहे और पूरे महाद्वीप में इसे फैला दिया. इसलिए अधिकतर लोग संस्कृत भाषा बोलने लगे.

संस्कृत बोलने वाले सीरिया के इस साम्राज्य के बारे में पहले जानते थे आप?

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