ताजमहल नहीं, ‘रहीम का मक़बरा’ है प्यार की पहली निशानी, जिसे कवि रहीम ने पत्नी की याद में बनवाया था

Maahi

रहीम… ये नाम सुनते ही स्कूल के दिनों की सुनहरी यादें ताज़ा हो जाती हैं. भारत के प्रसिद्ध कवि रहीम द्वारा लिखे गए प्यार और लालसा के वो दोहे आज भी हमें याद हैं. अब्दुल रहीम ख़ान-ए-खानन सम्राट अकबर के दरबार के नौ रत्नों में से एक थे. रहीम के बारे में हमने स्कूल की किताबों में काफ़ी कुछ पढ़ा था, लेकिन आज हम आपको रहीम की एक ऐसी याद से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद ही आपको मालूम हो.

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ऐसा माना जाता है कि 1598 में रहीम ने निज़ामुद्दीन में हुमायूं के मक़बरे के पास अपनी प्रिय पत्नी मह बानो के लिए एक मक़बरा बनवाया था, जिसे आज ‘रहीम का मक़बरा’ के नाम से जाता है. उस दौर में इस मक़बरे को प्यार के वास्तुशिल्प प्रतीक के रूप में भी पहचान मिली थी. इतिहासकारों का मानना है कि शाहजहां ने इसी से प्रेरित होकर सन 1632 में अपनी पत्नी की याद में ताजमहल बनवाया था.

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कुछ इतिहासकारों का ये भी मानना है कि सन 1627 में रहीम की मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर को इस मक़बरे में रखा गया था. ये उनका अंतिम विश्राम स्थल बन गया. इसीलिए इसका नाम ‘रहीम का मक़बरा’ पड़ा. 

दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाक़े में ‘रहीम का मक़बरा’ के आस पास ‘हुमायूं का मक़बरा’, ‘ईसा ख़ान का मक़बरा’, ‘बू हलीमा का मक़बरा’, ‘अफ़सरवाला मक़बरा’, ‘अरब सराय’, ‘नीला गुंबद’, ‘चंबा निज़ामुद्दीन औलिया’ और ‘नाई का मक़बरा समेत कई अन्य महत्वपूर्ण स्मारक स्थित हैं.   

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16 दिसंबर 2020 को ‘रहीम मक़बरे’ को एक प्रेस रिव्यू के लिए फिर से खोला गया था. क़रीब 6 साल तक चले इसके पुनर्निर्माण कार्य के बाद अब इसे पर्यटकों के लिए पूरी तरह से खोल दिया गया है. केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने 17 दिसंबर को रहीम की 464वीं जयंती के मौक़े पर इसकी घोषणा की. 

बता दें कि इस ऐतिहासिक मक़बरे के पुनर्निर्माण कार्य का एक बड़ा हिस्सा ‘आगा ख़ान ट्रस्ट फ़ॉर कल्चर’ द्वारा किया गया था. इस दौरान ASI के सहयोग से ‘इंटरग्लोब फ़ाउंडेशन’ द्वारा इसके लिए फ़ंड दिया गया था.

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पुनर्निर्माण के बाद ये ऐतिहासिक स्मारक कैसी दिखती हैं इन तस्वीरों में आप ख़ुद ही देख लीजिए. 

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शाहजहां ने नहीं, बल्कि प्रसिद्ध कवि रहीम ने बनवाया था पत्नी की याद में सबसे पहले मक़बरा.

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