Kabir Das Ke Dohe: संत कबीर के वो 25+ दोहे जो आज भी उतने ही कारगर हैं, जितने सालों पहले थे

Sachin Adgaonkar

“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब.

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब.” 
 
संत कबीर दास जी का ये दोहा (Kabir Ke Dohe) आप सब ने कभी न कभी सुना ही होगा. इसका अर्थ है, कोई भी कार्य कल पर मत टालो, उसे आज और अभी पूरा कर लो, क्योंकि कल क्या होगा किसी को नहीं पता.

आपको बता दें, कबीर दास जी 15वीं सदी के महान संत और रहस्यवादी कवि थे. उनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को काफ़ी प्रभावित किया और लोगों को सकारात्मक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया. इसके साथ ही Sant Kabir Das जी ने समाज में फैले कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा और जाति भेद जैसी सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की.  

wikipedia

संत Kabir Ke Dohe सालों से लोगों को अंधरे में मशाल दिखाने का काम करते आए हैं. उनकी रचनाओं को पढ़कर उनका अनुकरण करने वाला कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को सफ़ल बना सकता है


इस आर्टिकल में आपको संत कबीर दास जी के कुछ दोहे और उनके अर्थ बताते हैं, जो आज भी उतने ही कारगर हैं, जितने सालों पहले थे.

Kabir Ke Dohe

संत कबीर के दोहे और अर्थ – Sant Kabir Dohe And Meaning In Hindi 

1. ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग 

प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत

अर्थ- अब तक जो समय गुज़ारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की दोस्ती या संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया. प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान हैं और भक्ति करने वाले इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता हैं. 

2.

अर्थ- दूसरों की कमियों पर सब हंसते हैं, पर अपनी कमियों पर कोई ध्यान ही नहीं देता, जिनका कोई अंत ही नहीं है. इसलिए दूसरों की कमियां गिनने से अच्छा है कि अपनी ख़ामियों को दूर करें.

3. तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार

सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार

अर्थ- तीर्थ करने से एक पुण्य मिलता है और संतों की संगति से पुण्य मिलते हैं, लेकिन सच्चे गुरु को पा लेने से जीवन में अनेक पुण्य मिल जाते हैं.

4.

अर्थ- किसी भी कार्य का परिणाम आने में समय लगता है. इसलिए जल्दी या हड़बड़ाहट करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला.

5. प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए 

राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए 

अर्थ- प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और ना ही कहीं बाजार में बिकता है, जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना क्रोध, काम, इच्छा, भय त्यागना होगा. 

ये भी पढ़ें: अल्बर्ट आइंस्टीन के वो 30 कोट्स, जिनमें जीवन जीने की कला से लेकर सफ़लता के राज़ हैं 

6. 

अर्थ- किसी भी चीज़ की अति अच्छी नहीं होती है. जैसे ना ज़्यादा धूप अच्छी होती है, ना ज़्यादा बारिश. ना ज़्यादा बोलना और ना ज़्यादा चुप रहना.

7. जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही

ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही 

अर्थ- जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है. ऐसा घर मरघट के समान है जहां दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं.

8. 

अर्थ-  ‘चिंता ‘ नाम के चोर को कोई पकड़ नहीं पाता. इसकी दवा किसी के पास नहीं है, इसलिए चिंता करना छोड़ देना चाहिए.

9. नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए 

मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए 

अर्थ- आप कितना भी नहा-धो लीजिए, पर यदि मन साफ़ नहीं हुआ, नहाने-धोने का क्या फ़ायदा. जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है, लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में बदबू आती हैं.

10. 

अर्थ- किताबें पढ़ने से नहीं, बल्कि प्रेम का सही अर्थ समझने और उसे बांटने से लोग विद्वान कहलाते हैं.

11. प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय 

लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय 

अर्थ- जिसे ईश्वर प्रेम और भक्ति का प्रेम पाना है उसे अपने शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा को त्यागना होगा. लालची इंसान अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा तो त्याग़ नहीं सकता, लेकिन प्रेम पाने की उम्मीद ज़रूर रखता है.

12.

अर्थ- किसी को भी छोटा या कमज़ोर समझने की भूल कर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि कभी-कभी छोटा सा तिनका भी आंख से आंसू निकालकर, दर्द देने का काम कर जाता है.

13. कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर 

जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर

अर्थ- जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है वही सज्जन पुरुष है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फ़ायदा.

14. 

अर्थ- जो लोग हमारी भलाई के लिए हमारी कमियों के बारे में बताते हैं, उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि ये हमारे सभी दोषों को दूर करने में मदद करते हैं.

14.  कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी 

एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पांव पसारी 

अर्थ- तू क्यों हमेशा सोया रहता है, जाग कर ईश्वर की भक्ति कर, नहीं तो एक दिन तू लम्बे पैर पसार कर हमेशा के लिए सो जाएगा.

Kabir Ke Dohe

15.

अर्थ- आज के समय में दुनिया को ‘सूप’ जैसे लोगों की ज़रूरत है, जो अन्न को रख कर कूड़ा-कचरा बाहर फेंक देता है. ऐसे लोग जो बुराई को दूर करते हैं और अच्छाई को रख लेते हैं.

16. नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय 

कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय 

अर्थ- चंद्रमा भी उतना शीतल नहीं है और हिम बर्फ भी उतनी शीतल नहीं होती, जितना शीतल सज्जन पुरुष है. सज्जन पुरुष मन से शीतल और सभी से स्नेह करने वाले होते है.

17.

अर्थ- इस धरती पर सभी कष्टों की जड़ ‘लोभ ‘ है, जिसने लोभ-लालच करना छोड़ दिया, वही असली शहनशाह और सुखी इंसान है.

18. पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय 

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय 

Kabir Ke Dohe का अर्थ- लोग बड़ी से बड़ी पढ़ाई करते हैं, लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता. जो इंसान प्रेम का ढ़ाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान होता है.

19.

अर्थ- जब तक किसी के गुणों को परखने वाला सही आदमी नहीं मिल जाता, तब तक उसे कोई कुछ नहीं समझता, लेकिन एक बार जब किसी के गुण की पहचान हो जाती है, तो उसके गुणों की क़ीमत बढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें: वक़्त के साथ चलना कितना ज़रूरी है, यही बात समझा रही हैं महान लोगों द्वारा बोली गई ये 11 बातें

20. साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये 

मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए

अर्थ- हे प्रभु मुझे ज़्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके. मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाएं.

21.

अर्थ- मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा, लेकिन जब मैंने ख़ुद अपने मन में झांक कर देखा, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है.

22. ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार 

हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार 

Kabir Ke Dohe का अर्थ- ये संसार तो माटी का है, आपको ज्ञान पाने की कोशिश करनी चाहिए, नहीं तो मृत्यु के बाद जीवन और फिर जीवन के बाद मृत्यु यही क्रम चलता रहेगा.

23.

अर्थ- साधु से उनकी जाति मत पूछो, बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करो और उनसे ज्ञान लो. मोल करना है तो तलवार का करो, म्यान को पड़ी रहने दो.

ये भी पढ़ें: वक़्त चाहे जैसा भी हो, ये 30 मोटीवेशनल कोट्स हर हाल में आपको जीत की ओर लेकर जाएंगे

24. कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार 

साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार 

कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता. वहीं एक सज्जन विचार और बोल अमृत के समान होता है.

25.

अर्थ- ये जो शरीर है, वो ज़हर से भरा हुआ है और ‘गुरु’ अमृत की खान हैं. अगर अपना शीश सर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले, तो ये बहुत सस्ता सौदा है.

26. आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर 

इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर 

अर्थ- जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन ज़रूर जाना है. फिर चाहे वो राजा हो या फ़क़ीर. अंत समय यमदूत सबको एक ही ज़ंजीर में बांध कर ले जाएंगे.

27.

अर्थ- अगर आपका मन शीतल है, तो दुनिया में कोई आपका दुश्मन नहीं बन सकता.

28. कागा का को धन हरे, कोयल का को देय 

मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय 

अर्थ- कौआ किसी का धन नहीं चुराता, फिर भी कौआ लोगों को पसंद नहीं होता. वहीं कोयल किसी को धन नहीं देती, लेकिन सबको अच्छी लगती है. ये फ़र्क़ है बोली का, कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है.

29.

अर्थ- ख़जूर का पेड़ बेशक़ बहुत बड़ा होता है, लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और जो फल लगते हैं वो भी काफ़ी ऊंचाई पर लगते हैं. इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे, तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फ़ायदा नहीं है.

30. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय 

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय 

अर्थ- कबीर दास जी मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! दुनिया का हर काम धीरे-धीरे ही होता है. इसलिए सब्र करो. जैसे माली चाहे कितने भी पानी से बगीचे को सींच ले, लेकिन वसंत ऋतू आने पर ही फूल खिलते हैं.

संत कबीर के ये 30 दोहे (Best Kabir Ke Dohe) आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए हम ऐसी आशा करते हैं.

आपको ये भी पसंद आएगा
बदलने जा रहा है ‘इंडियन एयरफ़ोर्स’ का नाम! क्या होगा नया नाम? जानिए इसके पीछे की असल वजह
जानते हो ‘महाभारत’ में पांडवों ने कौरवों से जो 5 गांव मांगे थे, वो आज कहां हैं व किस नाम से जाने जाते हैं
Ganesh Chaturthi 2023: भारत में गणपति बप्पा का इकलौता मंदिर, जहां उनके इंसानी रूप की होती है पूजा
ये हैं पाकिस्तान के 5 कृष्ण मंदिर, जहां धूमधाम से मनाई जाती है जन्माष्टमी, लगती है भक्तों की भीड़
क्या आप इस ‘चुटकी गर्ल’ को जानते हैं? जानिए कैसे माउथ फ़्रेशनर की पहचान बनी ये मॉडल
लेह हादसा: शादी के जोड़े में पत्नी ने दी शहीद पति को विदाई, मां बोलीं- ‘पोतों को भी सेना में भेजूंगी’