शंगचुल महादेव: भारत का वो अनोखा मंदिर, जहां समाज से ठुकराए प्रेमी जोड़ों को मिलती है शरण

Abhay Sinha

भारतीय मंदिर सिर्फ़ एक पूजा-स्थल भर नहीं होते. बल्कि ये कई परंपराओं और कहानियों का घर भी होते हैं. देशभर में आपको हर मंदिर से जुड़ी कुछ न कुछ रोचक कहानी ज़रूर मिल जाएंगी. शंगचुल महादेव मंदिर (Shangchul Mahadev Temple) भी इसका अपवाद नहीं है. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के शांगढ़ गांव में बने इस मंदिर में घर से भागे प्रेमी जोड़ों को आश्रय मिलता है. 

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प्रेमी जोड़ों की रक्षा करते हैं भगवान

शंगचुल महादेव मंदिर कुल्लू क्षेत्र की सैंज घाटी में स्थित है. यहां महाभारत काल की कई ऐतिहासिक धरोहरे हैं. जिसका हिस्सा ये हरा-भरा मैदान और मंदिर भी है. मंदिर का क्षेत्रफल लगभग 128 बीघा है. ये वुडकट स्टाइल में बना है. आसपास यहां चारो ओर चीड़ के घने पेड़ नज़र आते हैं. साथ ही, ये जगह ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का एक हिस्सा है.

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इस मंदिर के बारे में दिलचस्प बात ये है कि यहां प्रेमी जोड़ों को आश्रय मिलता है. मतलब अगर कोई कपल अपने घर से भागकर शादी कर यहां आता है, तो भगवान उसकी रक्षा करते हैं. यहां जाति-धर्म वगैरह नहीं देखा जाता है. जो भी भगवान की शरण में पहुंचता है, उसकी रक्षा की जाती है. उसके खाने-पीने का भी इंतज़ाम किया जाता है. 

बस एक बार यहां प्रेमी जोड़ा पहुंच जाए, फिर सारी ज़िम्मेदारी गांव वाले उठाते हैं. यहां पुलिस भी दखलअंदाज़ी नहीं कर सकती है. यहां तक कहते हैं कि वन विभाग और पुलिस विभाग के जो कर्मचारी यहां तैनात हैं, वो भी मैदान से गुज़रते वक़्त अपनी टोपी और बक्सा उतार देते हैं. 

सभी को मानने पड़ते हैं नियम

यहां कुछ नियम हैं, जिनका पालन सभी को करना पड़ता है. मसलन, कोई भी शख़्स यहां शराब, सिगरेट का सेवन नहीं कर सकता है. कोई भी चमड़े का सामान नहीं ले जा सकता. यहां घोड़ों की एंट्री पर भी मनाही है. तेज़ आवाज़ मे बात नहीं की जा सकती, फिर लड़ाई-झगड़ा तो बहुत दूर की बात है. 

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साथ ही, जब तक समाज और समुदाय के रीति-रिवाजों को तोड़कर शादी करने वाले प्रेमियों के मामले का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक उन्हें यहां से कोई नहीं हटा सकता. मंदिर के पुजारी, ब्राह्मण उनको सुरक्षा प्रदान करते हैं.

महाभारत काल में पांडवों ने ली थी शरण

पौराणिक कथा के अनुसार, यहां पांडवों ने शरण ली थी. कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांड़व यहां रूके थे. इसी दौरान कौरव उनका पीछा करते हुए यहां तक पहुंच गए. तब शंगचुल महादेव ने कौरवों को रोका और कहा कि ये मेरा क्षेत्र है और जो भी मेरी शरण में आएगा उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता. महादेव के डर से कौरव वापस लौट गए.

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तब से लेकर आज तक, जब भी कोई समाज का ठुकराया हुआ शख्स या प्रेमी जोड़ा यहां शरण लेने के लिए पहुंचता है, तो उसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं. उनका ही फ़ैसला मान्य होता है. बता दें, कुल्लू घाटी में स्थित ये मंदिर हमेशा खुला रहता है. बताते हैं कि लकड़ी के बने इस तीन स्तरीय मंदिर में साल 1998 में आग भी लग गई थी. उस वक़्त काफ़ी नुक़सान हुआ था. मगर भक्तों ने क्षतिग्रस्त स्थान पर मंदिर का पुनर्निर्माण किया.

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