बहुचरा माता: आख़िर क्यों किन्नरों के बीच मशहूर हैं ये देवी, हर शुभ काम से पहले लेते हैं आशीर्वाद

Abhay Sinha

Shree Bahuchar Mata Worshipped By Transgender Community: भारत में बड़ी संख्या में मंदिर हैं और ज़्यादातर की अनोखी मान्यता है. गुजरात के मेहसाणा जिले में भी एक अनोखा मंदिर है, जो किन्नरों के बीच काफ़ी मशहूर है. बेचराजी कस्बे में स्थित इस मंदिर में ‘बहुचरा माता’ प्रतिष्ठापित हैं. इन्हें ‘मुर्गे वाली देवी’ भी कहा जाता है.

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आइए जानते हैं कि आख़िर क्यों किन्नर बहुचरा माता को पूजते हैं और देश भर से इनके दर्शन करने पहुंचते हैं-

Shree Bahuchar Mata Worshipped By Transgender Community

देवी को क्यों कहते हैं ‘बहुचरा माता’ और ‘मुर्गे वाली देवी’?

कहते हैं कि बहुत से राक्षसों का एकसाथ संहार करने के कारण इनका नाम ‘बहुचरा’ पड़ा. वहीं, ‘मुर्गे वाली देवी’ नाम के पीछे स्थानीय लोग अलाउद्दीन खिलजी के ज़माने की कहानी बताते हैं. दरअसल, मंदिर में बड़ी तादाद में मुर्गे घूमते हैं. कहा जाता है कि अलाउद्दीन जब पाटण जीतकर यहां पहुंचा तो उसके मन में मंदिर लूटने की इच्छा जागी.

जिसके बाद वो अपने सैनिकों को लेकर मंदिर पर चढ़ाई करने ही वाला था कि सैनिकों को पूरे प्रांगण में बहुत से मुर्गे नज़र आए. सैनिकों को भूख लगी थी तो वो मुर्गे पकाकर खा गए. सिर्फ़ एक मुर्गी ही बचा. जब सुबह उसने बांग देनी शुरू की तो उसके साथ-साथ सैनिकों के पेट से भी बांग की आवाज़ें आने लगीं. फिर अचानक ही सैनिक मरने लगे. बताते हैं कि ये सब देख कर खिलजी और बाकी सैनिक वहां से भाग निकले. इस तरह से मंदिर सुरक्षित रह गया. तब से इसे मुर्गे वाली माता का मंदिर भी कहते हैं.

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देवी को अर्धनारीश्वर के रूप में पूजते हैं किन्नर

इसे लेकर एक प्रचलित कहानी है, जो किन्नर समुदाय के द्वारा सुनाई जाती है. कहा जाता है कि गुजरात में एक राजा था, जिसके कोई भी संतान नहीं थी. बहुचर माता की पूजा के बाद उसे संतान तो मिली, लेकिन वो नपुंसक थी.

एक दिन बहुचरा माता उसके सपने में आईं और उसे गुप्‍तांग समर्पित करके मुक्ति के मार्ग में आगे बढ़ने को कहा. राजकुमार ने ऐसा ही किया और देवी का उपासक बन गया.

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उसके बाद से किन्नर समुदाय के लोग इन्हीं देवी को मानने लगे. मान्यता है कि अगर कोई किन्नर बहुचर माता की पूजा करता है तो अगले जन्म में किन्नर पूरे शरीर के साथ जन्म लेंगे. किन्नर कोई भी शुभ काम मुर्गे वाली माता की पूजा-अर्चना के बगैर नहीं करते. कहते हैं कि उनके आशीर्वाद से ही किन्ररों की सारी दुआएं लगती हैं, सभी काम बनते हैं. यही वजह है कि अपने हर अनुष्ठान से पहले वे बहुचरा माता की पूजा ज़रूर करते हैं.

बता दें, किन्नरों के अलावा यहां निःसंतान लोग भी मन्नत मांगने आते हैं. मन्नत पूरी होने के बाद वे शिशु के बाल यहां छोड़ जाते हैं. मंदिर में मुर्गों के दान का भी प्रचलन है.

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