दुर्गा पूजा के दौरान होने वाली सिंदूर खेला की परंपरा है 450 साल पुरानी, जानिए इसका रोचक इतिहास

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Sindur Khela 2022: नवरात्रि (Navratri 2022) का त्योहार देश भर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस दौरान 9 दिनों तक मां शक्ति की आराधना की जाती है और लोग 9 दिनों का उपवास रखते हैं. इसके बाद शारदीय नवरात्रि के समय पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजन का आयोजन किया जाता है. पश्चिम बंगाल में भी हर जगह भव्य पंडाल तैयार किए जाते हैं. 

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इसके बाद जिस दिन मां दुर्गा को प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उस दिन बंगाल में सिंदूर खेला (Sindur Khela) या सिंदूर उत्सव मनाया जाता है. इस दिन विजयदशमी भी आयोजित की जाती है. इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाती हैं. साथ ही मां दुर्गा को पान और मिठाई भी खिलाई जाती है. इसके बाद वो एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और जश्न मनाती हैं. मान्यता है कि जब मां दुर्गा मायके से विदा होती हैं, तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है. 

इसके साथ ही कई महिलाओं के चेहरे पर भी सिंदूर लगाया जाता है. इसके ज़रिए महिलाएं कामना करती हैं कि एक-दूसरे की शादीशुदा ज़िंदगी सुखद और सौभाग्यशाली रहे. आइए आपको बताते हैं कि सिंदूर खेला की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई.

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450 साल पहले शुरू हुई थी सिंदूर खेला की परंपरा

दशमी पर सिंदूर लगाने की परंपरा आज की नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी है. मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वो अपने मायके में 10 दिन रहती हैं. ये 10 दिन का त्योहार दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है. पहली बार ये रस्म पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में शुरू हुई थी. 

इन हिस्सों की महिलाओं ने 450 साल पहले मां दुर्गा, सरस्वती, कार्तिकेय, लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के बाद उनका श्रृंगार किया. उनके विसर्जन से पहले उन्होंने मीठे व्यंजनों का भोग लगाया. साथ में ख़ुद का भी सोलह श्रृंगार किया. इसके बाद उन्होंने जो सिंदूर मां को चढ़ाया था, उससे अपनी भी मांग भरी. मान्यता थी कि इससे मां दुर्गा उनके सुहाग की रक्षा करेंगी. 

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देवी बोरोन की निभाई जाती है प्रथा 

सिंदूर खेला जब हो जाता है, तब पूजा के बाद देवी बोरोन किया जाता है. यहां विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए लाइन में लगी होती हैं. इस बोरान थाली में देवी को मां को चढ़ाने के लिए कई चीज़ें होती हैं. इसमें सुपारी, पान का पत्ता, सिंदूर, अगरबत्ती, आलता, मिठाइयां आदि शामिल होती हैं. इस दौरान महिलाएं दोनों हाथों में पान का पत्ता और सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं. फिर मां को सिंदूर लगाने की बारी आती है. भीगी आंखों से शाखां और पोला (लाल और सफ़ेद चूड़ियां) पहनकर मां को विदाई दी जाती है. मां दुर्गा के साथ पोटली में कुछ खाने-पीने की चीज़ें भी रख दी जाती हैं, ताकि उन्हें देवलोक पहुंचने में कोई कठिनाई ना हो. 

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नवरात्रि के दौरान बंगाली समाज में इस परंपरा की ख़ास मान्यता है.  

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