विश्वास और मज़बूत इरादा. ये दो चीज़ें हैं, जिनके भरोसे इंसान कुछ भी कर सकता है. फिर भले ही लोग उनके काम को अपने-अपने नज़रिये से सही-ग़लत के खांचे में बिठाएं, मगर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. आज हम जिस शख़्स की कहानी आपको बताने जा रहे हैं, वो इस बात की जीती-जागती मिसाल है.
अमर भारती (Amar Bharati), कुछ लोगों के लिए साधु, तो किसी के लिए अजीब शख़्स और किसी के लिए एक रहस्यमयी संन्यासी. एक ऐसा इंसान जिसने अपने विश्वास और मज़बूत इरादे से इस दुनिया को हैरान कर दिया. क़रीब 48 सालों से ये शख़्स अपना एक हाथ हवा में रोके खड़ा है. मगर उन्होंने ऐसा क्यों किया और किसके लिए आज हम आपको बताएंंगे.
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एक आसाधारण साधु बनने से पहले एक साधारण इंसान थे
अमर भारती को आज जो देखते हैं, उन्हें लगता है कि वो हमेशा से ही ऐसे थे. मगर ऐसा है नहीं. वो एक बैंक में नौकरी करते थे. उनका अपना परिवार था. पत्नी और तीन बच्चे. ज़िंदगी में सबकुछ ठीक ही था. मगर फिर एक दिन अचानक ही उन्होंने अपने परिवार,नौकरी, दोस्त-रिश्तेदारों को छोड़कर धार्मिक राह पर चलने का फ़ैसला ले लिया. उन्होंने अपने आगे का पूरा जीवन भगवान शिव को समर्पित कर दिया.
मगर, इसके बाद भी अमर भारती के मन वो काम करने की इच्छा रहती थी, जिसे एक साधु के लिए करना मना था. ऐसे में शिव के प्रति अपने धार्मिक विश्वास को और मज़बूत करने के लिए उन्होंने अपने हाथ को हवा में ऊपर उठाने और जीवनभर उसे पकड़े रहने का फ़ैसला किया.
शुरुआत में बेइंतिहा दर्द से गुज़रे अमर भारती
एक आम इंसान के लिए 5 मिनट भी इस तरह अपने हाथ को हवा में रोके रखना मुमकिन नहीं है. वहीं, अमर भारती ने साल 1973 में अपने हाथ को हवा में रोका था. उस वक़्त से लेकर आज तक उन्होंने अपना हाथ नीचे नहीं किया. मगर शुरुआत में ये आसान नहीं था. उन्हें काफ़ी दर्द होता था. मगर उनके इरादे के आगे सारा दर्द कमज़ोर पड़ गया.
दो साल तक उन्हें अपने हाथ में तकलीफ़ लगी. मगर उसके बाद धीरे-धीरे हाथ इस कदर सुन्न पड़ गया कि उसमें से तकलीफ़ का एहसास भी ग़ायब हो गया. उनका हाथ कुछ भी फ़ील नहीं करता था. आज 48 साल हो गए हैं और उनका हाथ हमेशा के लिए हवा में ही ठहर गया है. जिसे अब वो चाहकर भी नीचे नहीं कर सकते.
फ़ैसले के पीछे सिर्फ़ शिव की भक्ति नहीं, बल्कि कुछ और भी मकसद था
आपको जानकर हैरानी होगी कि अमर भारती के इस मज़बूत इरादे के पीछे तो शिव की भक्ति थी ही, मगर उनका मकसद इसके अलावा भी कुछ और था. दरअसल, उन्होंने ये फ़ैसला समाज कल्याण की भावना से जागृत होकर लिया था. इसमें शिव के प्रति सम्मान तो था, मगर साथ ही, विश्व शांति और युद्ध के ख़िलाफ़ भावना भी थी.
एक इंटरव्यू में ख़ुद अमर भारती ने कहा-
‘हम आपस में लड़ते क्यों हैं, हमारे बीच इतनी नफ़रत और दुश्मनी क्यों है? मैं चाहता हूं कि सभी भारतीय शांति से रहें. मैं चाहता हूंं कि पूरी दुनिया शांति से रहे.’
-अमर भारती
बता दें, आज पूरी दुनिया अमर भारती को पहचानती है. कुछ लोगों ने उनकी तरह बनने की कोशिश भी की, मगर नाकाम रहे. अमर भारती आज भी अपना हाथ पहले की तरह हवा में रोके हैं.