बंगाल अकाल: 1944 में जब भूख के मारे लोग खा रहे थे घास और सांप, 30 लाख से अधिक लोगों की गई थी जान

Maahi

Bengal Famine of 1943: आज से 77 साल पहले बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा) ने अकाल का वो भयानक दौर देखा था, जिसमें क़रीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी. ये द्वितीय विश्वयुद्ध का दौर था. इस दौरान देश में अनाज का उत्पादन कम होने की वजह से अकाल के हालात पैदा हो गए थे.

swarajyamag

ये भी पढ़ें- क्या था ‘छप्पनिया अकाल’, जिसकी वजह से आज भी राजस्थान में 56 नंबर को माना जाता है अशुभ?

द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) की वजह से क़ीमतें आसमान छू रही थीं और जापानी आक्रमण को लेकर अनिश्चितता की वजह से शहरी इलाक़ों में जमाखोरी हो रही थी. इसके फलस्वरूप देहात में चीज़ें बेहद महंगी हो गईं और जब लोग मरने लगे तो भारी संख्या में शहरों की ओर इस उम्मीद में पलायन होने लगा कि वहां राहत दी जा रही होगी.

wikipedia

इतिहासकारों के मुताबिक़, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल ने जान बूझकर लाखों भारतीयों को भूखे मरने के लिए मजबूर कर दिया था. इस दौरान बर्मा (म्यांमार) पर जापान के कब्जे के चलते वहां से चावल का आयात रुक गया था और ब्रिटिश शासन ने युद्ध में लगे अपने सैनिकों व अन्य लोगों के लिए चावल की जमाखोरी करने शुरू कर दी, जिस कारण सूखे से जूझ रहे बंगाल में 30 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.  

harperbroadcast

सन 1943 में चावल की कमी होने के कारण क़ीमतें आसमान छू रही थी. जापान के आक्रमण के डर से बंगाल में नावों और बैलगाड़ियों को जब्त या नष्ट किए जाने के कारण आपूर्ति व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी थी. इस दौरान ब्रिटिश चर्चिल ने खाद्यान्न की आपात खेप भेजने की मांग भी ठुकरा दी थी. ऐसे में बंगाल के बाज़ारों में चावल मिलना बंद हो गया और गावों में तेज़ी से भूखमरी फ़ैलनी शुरू हो गई.

wikipedia

प्राकृतिक या मानवजनित त्रासदी! 

1943 का अकाल का प्राकृतिक त्रासदी नहीं थी, बल्कि मानवनिर्मित भी थी. ये सच है कि जनवरी 1943 में आए तूफ़ान ने बंगाल में चावल की फ़सल को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन इसके बावजूद अनाज का उत्पादन घटा नहीं था. इसके पीछे अंग्रेज़ सरकार की नीतियां ज़िम्मेदार थीं. बताया जाता है कि जब साल अकाल पड़ा उस साल बंगाल में अनाज की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी, लेकिन अंग्रेज़ों ने मुनाफ़े के लिए भारी मात्रा में अनाज ब्रिटेन भेजना शुरू कर दिया और इसी के चलते बंगाल में अनाज की कमी हुई. 

therednews

भारत के मशहूर अर्थशात्री अमर्त्य सेन का भी मानना है कि सन 1943 में अनाज के उत्पादन में कोई खास कमी नहीं आई थी, बल्कि 1941 की तुलना में उत्पादन पहले से अधिक था. इसके लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ज़िम्मेदार थे, जिन्होंने स्थिति से वाकिफ़ होने के बाद भी अमेरिका और कनाडा के इमरजेंसी फूड सप्लाई के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. अमेरिका और कनाडा ने प्रभावित राज्यों की मदद की पेशकश की थी. चर्चिल चाहते तो इस त्रासदी को रोका जा सकता था.

amarujala

ये भी पढ़ें- भारत में 1877-1946 के बीच पड़े अकाल की त्रासदी, बेबसी और बेचारगी को बयां कर रही हैं ये तस्वीरें

भूख के मारे लोग खा रहे थे घास और सांप  

अकाल के चलते हालात इतने बदत्तर हो गए थे कि लोग भूख के मारे घास और सांप तक खा रहे थे. कुछ लोग तो भूख से तड़पते अपने बच्चों को नदी में फेंक रहे थे. इस दौरान न जाने कितने लोगों ने ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी थी. महिलाओं ने परिवार को पालने के लिए मजबूरी में वेश्यावृत्ति करनी शुरू कर दी. लोग सड़े-गले खाने के लिए लड़ते दिखते थे तो ब्रिटिश अधिकारी और मध्यवर्ग भारतीय अपने क्लबों और घरों पर गुलछर्रे उड़ा रहे थे.  

youngisthan

इस दौरान बंगाल के ग्रामीण इलाक़ों में अनाज की भारी कमी के चलते लोग कोलकाता, ढाका जैसे बड़े शहरों में खाने और आश्रय की तलाश में पहुंचने लगे. लेकिन वहां न तो खाना था, न रहने की जगह. उन्हें रहने की जगह सिर्फ़ कूड़ेदानों के पास ही मिल रही थी, जहां लोगों को कुत्ते-बिल्लियों से संघर्ष करना पड़ता था ताकि कुछ खाने को मिल जाए. कलकत्ता (कोलकाता) और ढाका की सड़कों पर लोग भूख से दम तोड़ रहे थे. कुछ ही दिन में सड़कें कंकालों से भर गई थीं.

wikipedia

इस अकाल से वही लोग बचे जो रोजगार की तलाश में कोलकाता (कलकत्ता) चले आए थे. इस दौरान लोगों में सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने का भी दम नहीं बचा था. 1943 के पूरे साल भारत से ब्रिटेन और ब्रिटिश फौजों को खाद्य सामग्री भेजा जाना जारी रहा. आमतौर पर इस बात पर सहमति है कि 1943 का ‘बंगाल अकाल’ ग़लत नीतियों और लापरवाही का नतीजा था. 

wikipedia

ब्रिटिश इतिहासकारों के मुताबिक़, ‘बंगाल अकाल’ के दौरान 15 लाख लोग मारे गए थे, जबकि भारतीय इतिहासकारों के मुताबिक़, ये संख्या 60 लाख थी.

आपको ये भी पसंद आएगा
कहानी भारतीय सेना के एक ऐसे जवान की, जो युद्ध के दौरान हो गया था गायब, फिर भेड़ बनकर लौटा
Death Railway: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान का वो रेलवे ट्रैक जिसको बनाने के दौरान गयी थीं लाखों जानें
Lady Death: वो ख़तरनाक ‘महिला स्नाइपर’, जिसने हिटलर के 300 से ज़्यादा सैनिकों को उतारा मौत के घाट
कौन थे टाइगर श्रॉफ के नाना, जिन्होंने लड़ी थी World War 2 की लड़ाई, वायरल हुईं तस्वीरें
अगर अगले 10 मिनट में Nuclear War शुरू हुई, तो आपकी आख़िरी इच्छा क्या होगी?
द्वितीय विश्व युद्ध का वो भयावह किस्सा, जब कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल को रंग दिया गया था काला