भारतीय ग़ुलामों के साथ हुई क्रूरता की वो कहानी जो समय के पन्नों में दफ़न हो गयी

Dhirendra Kumar

चेन से बंधे, बाज़ार में मवेशियों की तरह बिकते ग़ुलामों के बारे में सोचने पर आपके दिमाग़ में सबसे पहले कौन सी तस्वीर उभरती है? अमूमन ये तस्वीर अफ़्रीकी देशों से लाए गए काले लोगों की होती है, जिन्हें अमेरिका या यूरोप में ख़रीदा बेचा जाता था.

mediadiversity

लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा ही कुछ भारत में भी होता था. कई सदियों तक हिन्द महासागर में ग़ुलामों का व्यापार होता रहा. हिंदुस्तानियों को ब्रिटिश, फ़्रेंच, पुर्तगाली और डच पशुओं की तरह जहाज़ पर चढ़ाते और सुदूर अंजान द्वीपों पर या फ़िरंगी घरों में ले जाते थे, जहां उनकी एक ही पहचान होती थी – ग़ुलाम 

मैं साफ़ कर देना चाहता हूं यहां हम सिर्फ़ उन गिरमिटिया मज़दूरों की बात नहीं कर रहे हैं जिनको बेहद कम पैसे और सुविधाओं पर उपनिवेशों में काम करने के लिए ले जाया जाता था. 

Striking Women

मध्यकालीन युग में भारत में ग़ुलामी की कहानी दक्षिण भारत से शुरू होती है. दक्षिण भारत में ही सबसे पहले यूरोप से आये व्यापारियों से डेरा डालना शुरू किया था. ये बात 16वीं शताब्दी की है जब यूरोप के अलग-अलग देश दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जाकर अपने उपनिवेश स्थापित कर रहें थे. अफ़्रीका से जहाज़ों में भर-भर को लोगों को मवेशियों की तरह पश्चिमी देशों में लाया जा रहा था और मंडियों में उनकी बिक्री होती थी.    

Daily Hunt

ग़ुलामों के व्यापर में बहुत फ़ायदा था तो भारत में आए पुर्तगाली, ब्रिटिश, फ्रेंच और डच उपनिवेशक भी इसमें कूद पड़े. दक्षिण भारत में लोग सबसे पहले इसके शिकार बने. 1680 के दशक में Elihu Yale ब्रिटिश East India Company की तरफ़ से मद्रास प्रेसीडेंसी का President बनकर आया. उसने ग़ुलामों के व्यापर को व्यापक रूप से शुरू किया और इस व्यापर का गढ़ बना हिन्द महासागर. लेखक प्रवीण झा लिखते हैं कि Yale ने ऐसा नियम बनाया कि कहीं दूर जाने वाले जहाज़ में कम से कम 10 ग़ुलाम होने ही चाहिए. Elihu Yale ने इससे काफ़ी पैसा कमाया. इसी ने आगे चलकर Yale यूनिवर्सिटी के काफ़ी धन दान किया था.  

Wikipedia

ग़ुलाम व्यापर में क्या डच, क्या फ्रेंच, क्या पुर्तगाली और क्या ब्रिटिश, सब के सब गले तक डूबे हुए थे. दक्षिण भारतीयों क ग़ुलाम बनाया जाता था, जिसमें औरत, मर्द और अपरहण करके लाये गए बच्चे भी शामिल शामिल थे. इनको समुद्री जहाज़ में चढ़ाकर दूर द्वीपों पर काम करने के ले जाया जाता था या फ़िरंगी लोगों को बेचा जाता था. जहाज़ पर विरोध करने वाले या बीमार पड़ने को समुद्र में फ़ेंक दिया जाता था. The Guardian में छपे एक लेख के मुताबिक़ समुद्र यात्रा की दौरान महिला ग़ुलामों के साथ बलात्कार भी किया जाता था. इसमें जहाज़ के अफ़सर से लेकर नाविक, सब शामिल होते थे. और जो महिला इस यात्रा के दौरान मर जाती थी, उन्हें समुद्र में फेंक दिया जाता था. आगे इन ग़ुलामों को बेचा जाता या सीधे ज़िंदगी भर के लिए काम थमा दिया जाता था.          

Wikipedia

एक अनुमान के अनुसार 1830 के दशक में ब्रिटिश East India Company द्वारा शासित क्षेत्रों में 11 लाख से ज़्यादा ग़ुलाम थे. 1600s से शुरू होने वाली ये ग़ुलामी का 1800s में आकर ख़त्म होने के कगार पर पहुंची. 27 अप्रैल 1848 को फ्रांस ने फ्रांसीसी भारत में ग़ुलामी पर प्रतिबंध लगाया. पुर्तगाल ने धीरे-धीरे ग़ुलामी पर प्रतिबंध लगाया और 1876 में जाकर पूरी तरह से ये काम बंद किया. ब्रिटिश ने 1861 में ग़ुलामी को अपराध बना कर इस पर प्रतिबन्ध लगाया. हालांकि भारत में गिरमिटिया मज़दूरी जारी रही और कुछ मामलों में ये ग़ुलामी का नाम थोड़ा बदलने जैसा ही था.   

Quartz

ये भी पढ़ें: कहानी उस हिन्दुस्तानी की जिसकी वजह से पूरी दुनिया का शैम्पू से परिचय हुआ था

आपको ये भी पसंद आएगा
बदलने जा रहा है ‘इंडियन एयरफ़ोर्स’ का नाम! क्या होगा नया नाम? जानिए इसके पीछे की असल वजह
जानते हो ‘महाभारत’ में पांडवों ने कौरवों से जो 5 गांव मांगे थे, वो आज कहां हैं व किस नाम से जाने जाते हैं
Ganesh Chaturthi 2023: भारत में गणपति बप्पा का इकलौता मंदिर, जहां उनके इंसानी रूप की होती है पूजा
ये हैं पाकिस्तान के 5 कृष्ण मंदिर, जहां धूमधाम से मनाई जाती है जन्माष्टमी, लगती है भक्तों की भीड़
क्या आप इस ‘चुटकी गर्ल’ को जानते हैं? जानिए कैसे माउथ फ़्रेशनर की पहचान बनी ये मॉडल
लेह हादसा: शादी के जोड़े में पत्नी ने दी शहीद पति को विदाई, मां बोलीं- ‘पोतों को भी सेना में भेजूंगी’