जानिये जयपुर के जयगढ़ क़िले में रखी ‘जयवाण तोप’ को विश्व की सबसे बड़ी तोप क्यों कहा जाता है?

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Historical City of India: देश के प्रमुख ऐतिहासिक शहरों में से एक जयपुर अपने राजसी ठाठ-बाट और कई मशहूर क़िलों के लिए भी जाना जाता है. इनमें ‘आमेर फ़ोर्ट’, ‘नाहरगढ़ फ़ोर्ट’ और ‘जयगढ़ फ़ोर्ट’ बेहद मशहूर हैं. इसके अलावा ‘हाथरोई फ़ोर्ट’, ‘आमागढ़ फ़ोर्ट’ और ‘मोती डूंगरी फ़ोर्ट’ भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं. इन क़िलों की भव्यता को निहारने हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक जयपुर आते हैं.

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World Biggest Cannon: आज बात अरावली की पहाड़ियों पर बने जयगढ़ क़िले (Jaigarh Fort) की होगी. सन 1726 में निर्मित इस क़िले में विश्व की सबसे बड़ी तोप जयवाण तोप (Jaivana Cannon) रखी हुई है. जयगढ़ दुर्ग को जीत का क़िला भी कहा जाता है. ‘पिंक सिटी’ जयपुर आने वाले सैलानियों के लिए ये तोप किसी अजूबे से कम नहीं है. इसको देखने के लिए लोग खिचे चले आते हैं. क्योंकि ये तोप अपने आप में अनोखाी धरोहर है.

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जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने 1720 में जयवाण तोप का निर्माण कराया था. इस तोप को निर्माण के बाद परीक्षण के तौर पर केवल एक बार चलाया गया था. 17वीं शताब्दी में जब मुगल कमज़ोर पडऩे लगे और मराठों की ताकत बढऩे लगी तो ऐसे में सवाई जयसिंह ने अपनी सुरक्षा की योजना बनाई. इस दौरान उन्होंने ‘पिंक सिटी’ के चारों ओर मजबूत परकोटा और भव्य दरवाज़ों का निर्माण कराया. मराठों के हमले से बचने के लिए जयगढ़ के शास्त्र कारखाने में ‘जयबाण तोप’ की ढलाई की गई.

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क्यों ख़ास है ये तोप? 

विश्व की सबसे बड़ी तोप ‘जयवाण तोप’ की बैरल की लंबाई 20.2 फ़ीट और वजन 50 टन है. इस तोप की नली का व्यास क़रीब 11 इंच है. पीतल, तांबा, लोहा व अन्य धातुओं से बनी तोप की मारक क्षमता क़रीब 22 मील है. इस तोप से 100 किलोग्राम गनपाउडर से बने 50 किलोग्राम वजन के गोले दागे जा सकते थे. ये शक्तिशाली तोप ‘जयगढ़ क़िले‘ के डूंगर दरवाज़े की बुर्ज पर स्थित है. ‘जयवाण तोप’ एक दोपहिया गाड़ी पर स्थित है. इन पहियों का व्यास 9.0 फ़ुट है.  

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कहा जाता है कि, ‘जयवाण तोप’ को परीक्षण के लिए जयगढ़ से सिर्फ़ एक बार चलाया गया था. परीक्षण के दौरान इसका गोला 35 किलोमीटर दूर चाकसू नामक क़स्बे में जाकर गिरा था. इस दौरान गोले का विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि जहां गोला गिरा वहां काफ़ी बड़ा गडढ़ा हो गया था जो बाद में बरसाती पानी भरने से तालाब बन गया.

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बता दें कि ‘जयवाण तोप’ को अधिक वजन के कारण कभी भी क़िले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही कभी युद्ध में इसका इस्तेमाल किया जा सका. हर साल विजय दशमी के दिन ‘जयवाण तोप’ की विशेष पूजा की जाती है. दुनिया में आज तक इससे बड़ी तोप कभी नहीं बनी.

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जयगढ क़िले में मौजूद कारखाने में और भी कई तोपों का निर्माण हुआ था. इस कारखाने में बनी अनेक छोटी-बड़ी क़रीब 2 दर्जन से अधिक तोपों को एक संग्रहालय बना कर प्रदर्षितभी किया गया है. इनकी बनावट एवं कारीगरी देखते ही बनती है.  

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