भारत का वो शातिर मुजरिम जो फांसी के फंदे पर लटकने के बाद भी 2 घंटे तक रहा ज़िंदा

Maahi

रंगा और बिल्ला के नाम से तो आप सभी वाक़िफ़ ही होंगे. अरे भाई फ़िल्मों में कई बार ये नाम सुने होंगे. दरअसल, ये कोई काल्पनिक नाम नहीं हैं, बल्कि 70 के दशक में ये दोनों भारत के कुख्यात अपराधियों में से एक हुआ करते थे. इनका नाम एक साथ इसलिए लिया जाता है क्योंकि ये दोनों जो भी ज़ुर्म करते साथ मिलकर ही करते थे.

aajtak

ये भी पढ़ें- कहानी भारत के सबसे शातिर चोर की, जो फ़र्ज़ी तरीक़े से बन गया जज और 2 महीने तक सुनाए फ़ैसले

60 के दशक में छोटी मोटी चोरियों के ज़रिए अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले रंगा (कुलजीत सिंह) और बिल्ला (जसबीर सिंह) 70 के दशक तक कुख्यात अपराधी बन चुके थे. साल 1978 में इन दोनों ने अपहरण व हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया था, जिससे देश के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी टेंशन में आ गए थे. इस दौरान विदेशों में भी इनके अपराधों की चर्चा होने लगी.

aajtak

ये दोनों इतने कुख्यात क्यों थे? 

रंगा और बिल्ला ने 26 अगस्त 1978 को भारतीय नौसेना अधिकारी मदन मोहन चोपड़ा के बच्चों गीता (16) और संजय (14) का फ़िरौती के लिए अपहरण कर लिया था, लेकिन जब रंगा-बिल्ला को पता चला कि बच्चों के पिता नेवी के अधिकारी हैं तो उन्होंने रेप के बाद दोनों बच्चों की हत्या कर दी. अपहरण के 2 दिन बाद 28 अगस्त 1978 को दोनों बच्चों के शव मिले थे.  

aajtak

इस हत्याकांड ने दिल्ली सहित पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. उस दौर में इस घटना की चर्चा विदेशों तक हुई थी. इसके बाद लोगों के बीच रंगा-बिल्ला के जुर्म की दहशत बढ़ने लगी. इस दौरान देशभर में आक्रोश का माहौल बन गया था. सड़क से लेकर संसद तक मोरारजी देसाई सरकार की कड़ी आलोचना हुई. इसके बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने ख़ुद इस मामले में जांच के आदेश दिए थे.

kidnapping

ये भी पढ़ें- भारत के ये पांच शातिर अपराधी थे जेल से भागने में माहिर, पर कैसे तोड़ते थे ये सुरक्षा की दीवार?

राजनेताओं और मीडिया के बढ़ते दबाव के बीच दिल्ली पुलिस ने आख़िरकार कड़ी मशक्क़त के बाद 8 सितंबर 1978 को रंगा और बिल्ला को आगरा से गिरफ़्तार कर लिया. ये दोनों आगरा में ‘कालका मेल’ के उस डिब्बे में चढ़ गए थे जो सैनिकों के लिए आरक्षित था. एक सैनिक ने अखबार में छपी उनकी तस्वीर से उन्हें पहचान लिया था. इसके बाद उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया.  

aajtak

इस मामले में 4 साल तक सुनवाई चली. इसके बाद साल 1982 में ‘रंगा और बिल्ला’ को फांसी दे दी गई.  

aajtak

दिल्ली की ‘तिहाड़ जेल’ के सुपरिटेंडेंट रहे सुनील गुप्ता ने अपनी किताब ‘Black Warrant: Confessions of a Tihar Jailerमें रंगा और बिल्ला की फांसी का ज़िक्र किया है. उन्होंने लिखा ‘सन 1982 में जब रंगा और बिल्ला को फांसी के तख्ते पर लटकाया गया तो फंदे पर लटकाने के 2 घंटे बाद चिकित्सक फांसी घर में ये जांच करने गई कि दोनों की मौत हुई या नहीं तो पाया कि ‘रंगा’ की नाड़ी (पल्स) चल रही थी’.

2 घंटे तक ज़िंदा रहा रंगा  

aajtak

‘बिल्ला’ तो फंदे पर लटकने के बाद मर गया, लेकिन 2 घंटे बाद भी ‘रंगा’ की सांसें चल रही थीं. इसके बाद रंगा के फंदे को नीचे से खींचा गया जब जाकर इस शातिर अपराधी की मौत हुई. अधिकांश मामलों में फंदे से गर्दन व सांस की नली दबने या दोनों के एक साथ दबने से मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह बंद हो जाता है और 2 से 3 मिनट में इंसान की मौत हो जाती है.

आपको ये भी पसंद आएगा
बदलने जा रहा है ‘इंडियन एयरफ़ोर्स’ का नाम! क्या होगा नया नाम? जानिए इसके पीछे की असल वजह
जानते हो ‘महाभारत’ में पांडवों ने कौरवों से जो 5 गांव मांगे थे, वो आज कहां हैं व किस नाम से जाने जाते हैं
Ganesh Chaturthi 2023: भारत में गणपति बप्पा का इकलौता मंदिर, जहां उनके इंसानी रूप की होती है पूजा
ये हैं पाकिस्तान के 5 कृष्ण मंदिर, जहां धूमधाम से मनाई जाती है जन्माष्टमी, लगती है भक्तों की भीड़
क्या आप इस ‘चुटकी गर्ल’ को जानते हैं? जानिए कैसे माउथ फ़्रेशनर की पहचान बनी ये मॉडल
लेह हादसा: शादी के जोड़े में पत्नी ने दी शहीद पति को विदाई, मां बोलीं- ‘पोतों को भी सेना में भेजूंगी’