Happy Diwali: जग फिर से जगमग है और रास्ते रौशनी से गुलज़ार . क्या करें, दिवाली है ही ऐसा भारतीय त्यौहार. फ़ेस्टिवल (Indian Festivals) के आते ही हम भारतीयों के चेहरे खिल उठते हैं और ये लाज़मी भी है. साल के कुछ ही दिन तो ऐसे होते हैं, जब हम लोग लाइफ़ को सेलिब्रेट करते हैं. है न?#JagFirSeJagmag
हां, तो ज्ञान बहुत पेल लिए, अब मुद्दे पर आते हैं. काहे कि नासपीटे कोरोना के चक्कर में पहले ही बहुत टाइम ख़राब हो चुका है. पिछले दो साल से खुलकर न सांस ली है और न ही दिवाली मनाई है. लेकिन इस बार जमकर उधम काटी जाएगी. क्योंकि, इस दिवाली हम वापस से वो सब कर पाएंगे, जो कोविड और लॉकडाउन के चक्कर में नहीं कर पा रहे थे.
Happy Diwali-
1. हर घर पहुंचाएंगे सोन पापड़ी
गालियां और सोनपापड़ी का डब्बा, ये दो ऐसी चीज़ें हैं, जिन्हें देना सब चाहते हैं मगर खाना कोई नहीं! हम भी पिछले दो साल से चार ठोर पुराने डब्बे सेटल करने को उतावले थे, लेकिन मौक़ा ही नहीं मिल रहा था. मगर इस बार अपन धड़ल्ले से सोन पापड़ी के डब्बों को घर-घर पहुंचाएंगे.
2. धकापेल शॉपिंग की जाएगी
ऑनलाइन शॉपिंग कितनी ही सुविधाजनक क्यों न हो, लेकिन असली मज़ा तो दुकानदार के कपड़े दिखाने के बाद ही आता है. ‘दीदी ये देखिए शिफ़ॉन में एकदम नया आइटम है, अभी पन्नी तक नहीं नोची. रेट भी मार्केट में सबसे कम. इससे सस्ता कोई दे तो बाखुदा इसी को पहनकर मैं ताउम्र सेल्समैनी करूंगा’
आह! ये सब सुनने को तो हमारे कान तरस गए हैं यार.
3. फ़ैमिली संग ताशपार्टी
पिछले दो साल से अपन इस अमृतपान के सुख से वंचित थे. लेकिन इस बार हाथ की खुजली मिटेगी. चाची-मामी से लेकर 80 साल की दादी तक, गुलाम-बादशाह करेंगी. मम्मी, पापा के चार रुपये जीतकर ख़ुश होंगी और चाची, बुआ के तीन रपये उधारी होकर खिसियाएंगी. अठन्नी-चवन्नी जैसे भाई-बहन भी 100-100 की पत्ती लेकर महफ़िल लूटने को बैठेंगे.
4. पतंगबाज़ी होगी रेलम-पेल
लट्ठेदार से लेकर पट्टेदार तक और तौखल से लेकर मानदार तक, इस बार जमकर छत से पतंगे पार होंगी. किलो भर छेने की शर्त लगाकर लौंडे हज़ारों रुपयों के कनकउए उड़ा डालेंगे.
5. थियेटर में देखेंगे फ़िल्म
दिवाली की रात जितनी मस्त होती है, दोपहर उतनी ही बोरिंग. मतलब, कुत्ते तक करवट नहीं लेते. ऐसे पकाऊ वक़्त में सिनेमा का ही सहारा रहता है, लेकिन मनहूस कोरोना के चलते दो साल से पॉसिबल ही नहीं था. लेकिन इस बार ये कुत्ता करवट लेगा.
6. अपने ही नहीं, दोस्तों के भी पटाखे फोड़ेंगे
हमें पर्यावरण की चिंता बहुत है, बस दिल है कि मानता नहीं… अब पटाखे फोड़ने की चुल्ल चार फुलझड़ी और दुई ठोर अनार जलाकर शांत होगी नहीं. अपने को चाहिए जखीरा, जो अलग-अलग दोस्तों के घर जाकर ही नसीब होता है. अब आंटी अपने लड़के को बड़े बम दगाने देती नहीं और मुझे बेटा-बेटा बोलकर आगे कर देतीं. दो साल बाद फिर से ये अवसर आएगा. ख़ैर, उनकी इस भोली और ममता भरी इच्छा को पूरा करने के लिए अपन फ़ुल रेडी हैं.
7. रात 2 बजे वाली घुमक्कड़ी
ताश खेल लिए, पटाखे फोड़ लिए और खाना भी ठूस लिया, लेकिन फिर भी थोड़ी कसर तो बाकी रह जाती है. इस कसर को ही पूरा करने के लिए हमारे जैसे लफ़ंटर रात 2 बजे सड़कें चाटने निकलते हैं. घंटा पता नहीं होता कि जाना कहां है. कुछ समझ नहीं आता तो चौराहों पर जली चटाई से बचे मिर्चे ही ढूंढ निकालते. हो सकता है ये बात बहुतों को अजीब लगें, मगर लौंडापा इसे ही कहते हैं भइया!
तो गुरू! दो साल बाद वापस से ये सारी चीज़ें करना का मौक़ा मिल रहा है. हाथ से मत निकलने दीजिएगा.