ये है भारत का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज, जो 174 सालों से आज भी देश के Top 5 Colleges में है शुमार

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India’s First Engineering College: भारत आज साइंस एंड टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफ़ी आगे निकल चुका है. आज भारतीय छात्र गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट समेत दुनिया की बड़ी-बड़ी आईटी कंपनियों में शीर्ष पदों पर कार्यरत हैं. सुंदर पिचई, संजय झा, संजय मल्होत्रा, निकेश अरोड़ा, सजीव सूरी, अभी तलवलकर, पद्मश्री वॉरियर वो नाम हैं जो दुनिया की टॉप 20 आईटी कंपनियों में प्रेसिडेंट, वाइस-प्रेसिडेंट और सीईओ हैं. इन सब की सबसे ख़ास बात ये है कि ये देश के IIT’s से पढ़े हैं. आज भारत में एक से बढ़कर एक इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं भारत का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज कौन सा है और ये कहां स्थित है? 

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भारत के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज के बारे में जानने से पहले इसके बनने की असल कहानी भी जान लीजिए-

बात सन 1837-38 की है. देश उस वक़्त गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा था. इसी दौरान आगरा में ‘अकाल’ के कारण लाखों लोगों की जान चली गई थी. तब ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ को मेरठ-इलाहाबाद ज़ोन (तत्कालीन दोआब क्षेत्र) में सिंचाई व्यवस्था की ज़रूरत महसूस हुई. ऐसे में कर्नल कॉटले को कैनाल बनाने का जिम्मा सौंपा गया. इस दौरान उन्होंने उत्तर पश्चिमी राज्यों के लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स थॉमसन को सलाह दी कि स्थानीय लोगों को सिविल इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग देनी चाहिए.

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इसी दौरान कोलकाता से दिल्ली के लिए बन रही ग्रैंड ट्रंक रोड (GT Road) के निर्माण के लिए भी कुशल इंजीनियरों की ज़रूरत आन पड़ी. इस दौरान अंग्रेज़ों को एक ऐसे संस्थान की ज़रूरत महसूस हुई, जहां ऐसे भारतीय छात्रों को इंजीनियरिंग की हर ब्रांच की ट्रेनिंग दी जा सके जिन्हें स्थानीय भाषा के साथ-साथ अंग्रेज़ी भी आती हो और वो स्थानीय मौसम से भी परिचित हों.

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सन 1845 में ‘गंगा कैनाल’ का निर्माणकार्य तेज़ी से चल रहा था. ऐसे में कुशल इंजीनियरों की ज़रूरत पूरी करने के लिए सन 1846 में सहारनपुर में टेंट लगाकर 20 भारतीय छात्रों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दाखिला दिया गया. इस दौरान अधिकारियों को समझ आया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उचित इंफ़्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत भी है. इसी ज़रूरत ने देश के पहले इंजीनियरिंग संस्थान की नींव रखी थी.  

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इसके बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स थॉमसन ने तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी को प्रस्ताव दिया कि छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए रुड़की में एक इंजीनियरिंग संस्थान बनाया जाना चाहिए. लॉर्ड डलहौजी की सहमति के बाद 23 सितंबर 1847 को ‘रुड़की कॉलेज’ के तौर पर देश के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज की नींव रखी गई.

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सन 1954 में इसका नाम बदलकर थॉमसन कॉलेज ऑफ़ सिविल इंजीनियरिंग कर दिया गया. सन 1948 में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) ने अधिनियम संख्या IX के द्वारा कॉलेज के प्रदर्शन और स्वतंत्रता के बाद के भारत निर्माण के कार्य में इसकी क्षमता को ध्यान में रखते हुए इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया. इसके बाद 1949 में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चार्टर पेश कर इसे स्वतंत्र भारत का पहला ‘इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय’ घोषित किया था.

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21 सितंबर 2001 को संसद में एक विधेयक पारित करके इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया था. इस दौरान इसका नाम ‘रुड़की विश्वविद्यालय’ से बदलकर ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-रुड़की’ कर दिया गया. आज इसे पूरी दुनिया इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रुड़की (IIT Roorkee) के नाम से जानती है. आईआईटी रुड़की का नाम आज देश के टॉप 5 IIT’s में शुमार है.

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