कारगिल शहीदों से जुड़ी ऐसी 7 कहानियां जो उनके परिवारवालों ने सुनाई, पढ़ कर आंखें हो जाएंगी नम

Kratika Nigam

True Stories Of Kargil Martyrs: कारगिल युद्ध भले ही आज से 24 साल पहले सरहद पर छिड़ा था. इसके निशान आज भी ज़िंदा हैं. आज भी एक घाव, एक टीस हर मां, हर पिता, हर भाई, बहन, पत्नी के दिल में चुभती है. क्योंकि 1999 में मई-जुलाई के महीने में छिड़े इस युद्ध में सरहद के इस पार हो या उस पार दोनों ही तरफ़ हर किसी ने किसी न किसी अपने को खोया था, जिनसे शायद उनकी आख़िरी बार बात भी न हुई. कितने ही सैनिकों ने तो अपने नवजात बच्चों को गोद में भी नहीं लिया था. मगर भारत मां के इन बेटों ने किसी भी बात की परवाह न करते हुए बस अपने तिरंगे को दुश्मन की ज़मीन पर गाड़ा और फ़तेह हासिल की.

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शहीद हुए सैनिकों के माता-पिता को अपने बेटे खोने का ग़म तो था, साथ-साथ एक गर्व भी था कि भारत मां के लिए उनके लाल ने अपने प्राण गंवाए. इन्हीं शहीदों के कुछ क़िस्से और उनसे जुड़ी कुछ बातें (True Stories Of Kargil Martyrs) जो उनके अपनों ने शेयर की थीं आप तक लाए है, जिसे सुनने के बाद आपका सीना भी गर्व से फूल जाएगा और आंखें नम हो जाएंगी.

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1. कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra)

कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा के अतुल्य योगदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उनके निडर रवैये के लिए उन्हें शेरशाह भी कहा जाता था. इन्होंने ज़रूरत के समय अद्वितीय साहस का परिचय दिया. कैप्टन बत्रा वापस आने के बाद अपनी प्रेमिका डिंपल से शादी करने वाले थे.

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Quint को दिए एक इंटरव्यू में डिंपल ने उस शख्स के लिए अपने प्यार का इज़हार किया, जिन्होंने उनकी ज़िंदगी पूरी की.

पिछले 17 सालों में एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ जब मैंने ख़ुद को आपसे अलग महसूस किया हो. ऐसा लगता है जैसे आप किसी पोस्टिंग पर दूर हैं. मुझे बहुत गर्व महसूस होता है जब लोग आपकी उपलब्धियों के बारे में बात करते हैं पर उसके साथ-साथ दिल के कोने में कुछ अफ़सोस भी है. आपको यहां होना चाहिए था, अपने बहादुरी के क़िस्से साझा करते हुए, सुनते हुए कि कैसे आप आज के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं. मुझे अपने दिल में पता है कि हम फिर से मिलने जा रहे हैं, बस कुछ ही समय की बात है.

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2. कैप्टन अनुज नैय्यर (Captain Anuj Nayyar)

कैप्टन अनुज नैय्यर केवल 24 साल के थे जब उन्होंने हमारे देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. ये उनके मिशन की सफलता थी जिसके कारण टाइगर हिल पर कब्ज़ा कर पाए. इन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उनके पिता, प्रोफ़ेसर नैय्यर ने कुछ साल पहले Deccan Herald के साथ अपने बेटे के बारे में ये क़िस्सा साझा किया था.

जब अनुज 10th क्लास में था तो वो एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हुआ, जहां उसके पैर की मांसपेशियां घुटने से लेकर पैर की उंगली तक पूरी तरह से फट गई थीं. 16 साल की उम्र में बिना एनेस्थीसिया के उसे 22 टांके लगे. उन्होंने मुझे बताया कि ‘दर्द पैर में नहीं दिमाग़ में होता है.

3. कैप्टन विजयंत थापर (Captain Vijayant Thapar)

कैप्टन विजयंत थापर ने मात्र 22 साल की छोटी उम्र में कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राण त्याग दिये. कैप्टन थापर की तीन पीढ़ियों से भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं इसी परंपरा को इन्होंने भी आगे बढ़ाया और पूरे देश को गौरवान्वित किया. 2016 में, उनके पिता, कर्नल (सेवानिवृत्त) विजेंद्र थापर ने पहाड़ की चट्टान पर बैठने की अपनी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए 16,000 फ़ीट की चढ़ाई की, जहां उनका बेटा पाकिस्तानी घुसपैठियों के ख़िलाफ़ निडर होकर लड़ते हुए शहीद हो गया था. उनके पिता को अपने बेटे पर गर्व है और उनका मानना ​​है कि उनका बेटा बहुतों के लिए प्रेरणा बनेगा.

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विजयंत जैसे युवकों ने वही किया जिसकी राष्ट्र उनसे अपेक्षा करता था, जो उनका कर्तव्य था. दरअसल, कारगिल का युद्ध भारतीय राष्ट्र में सर्वश्रेष्ठ है, जिसमें कैप्टन विजयंत जैसे कई बहादुर जवान बहादुरी से लड़े और भारत माता की पवित्रता को बरक़रार रखा. उसे सम्मानपूर्वक वापस लेकर आए. देशवासियों ने बहादुर दिलों के लिए अपने प्यार और समर्थन की बौछार की. बेशक़, उन्होंने जो किया है, उस पर हम गर्व महसूस करते हैं, लेकिन एक युवा बेटे को खोना दर्दनाक है और हम अपने जीवन के हर दिन इससे गुज़रते हैं.

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4. मेजर पद्मपाणि आचार्य (Major Padmapani Acharya)

जब मेजर आचार्य की शहादत की ख़बर आई तो उनकी पत्नी प्रेगनेंट थीं. इन्होंने आख़िरी बार अपने माता-पिता से 21 जून को बात की थी, जिस दिन उनका जन्मदिन था. उन्हें क्या पता था कि ये आख़िरी बार था जब वे अपने बेटे की आवाज़ सुन रहे थे. राजपुताना राइफ़ल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

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विमला आचार्य, उनकी मां, प्यार से अपने बेटे को याद करती हैं:

एक मां के रूप में, मैं निश्चित रूप से दुखी और आहत हूं लेकिन एक देशभक्त के रूप में, मुझे अपने बेटे पर गर्व है.

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5. लांस नायक निर्मल सिंह (Lance Naik Nirmal Singh)

उनके पास केवल उनके पति की सेना की वर्दी बची है. लांस नायक निर्मल सिंह की पत्नी, जसविंदर कौर की शादी को केवल 5 साल हुए थे जब उनके पति टाइगर हिल पर शहीद हो गए थे. उनका बेटा उस समय सिर्फ़ 3 साल का था.

जसविंदर कौर को अभी भी अपने दिवंगत पति की वर्दी से उम्मीद है.

ये (उनकी वर्दी) उनका सम्मान था और अब मेरी निरंतर साथी है. मैं इसे नियमित रूप से धोती और इस्त्री करती हूं और जब भी मैं कहीं उलझती हूं या कोई दिशा लेना चाहती हूं तो मैं उनकी वर्दी को अपने हाथों में पकड़ लेती हूं. एक सच्चे सैनिक की वर्दी मेरे लिए एक लाइटहाउस की तरह होती है. मैं अपने बेटे को एक सच्चे सैनिक का बेटा बनाने की राह पर चल पड़ी हूं.

6. मेजर मरियप्पन सरवनन (Major Mariappan Saravanan)

मेजर मरियप्पन सरवनन कारगिल युद्ध में बटालिक की चोटियों की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. उनका शरीर एक महीने से अधिक समय तक नो मैन्स लैंड में बर्फ़ में फंसा रहा. हर बार जब भारतीय सैनिकों ने उसके शरीर को बरामद करने की कोशिश की, तो पाकिस्तानियों ने गोलियां चला दीं. तो वहीं जब पाकिस्तानियों ने उनके शरीर को हड़पना चाहा तो भारतीयों ने गोलियां चला दीं. इनकी मृत्यु के 41 दिन बाद आख़िरकार उनका शव बरामद किया गया. उनकी मां, अमितावल्ली मरियप्पन याद करती हैं कि वो अपने बेटे से आख़िरी बार कब मिली थीं.

वो कारगिल युद्ध से पहले घर आया था उसे एक दोस्त की शादी में शामिल होना था और डेढ़ महीने हमारे साथ रहा. आख़िरी बार उसने हमें ये बताने के लिए फ़ोन किया था कि उनकी यूनिट शिफ़्ट हो रही है. उसने हमें कभी नहीं बताया कि वो कारगिल जा रहा है, हमने सोचा कि ये नियमित पोस्टिंग में से एक है.

7. मेजर राजेश सिंह अधिकारी (Major Rajesh Singh Adhikari)

मेजर अधिकारी की शादी को अभी 10 महीने ही हुए थे जब उन्हें अपने देश की सेवा के लिए कारगिल भेजा गया था और उन्होंने इस अवसर पर बहुत गर्व महसूस किया. अपनी पत्नी को लिखे आख़िरी पत्रों में से एक में उन्होंने कहा था कि उन्हें यक़ीन नहीं है कि वो वापस आने वाले हैं. उस समय उनकी पत्नी किरण प्रेगनेंट थीं. इस पत्र को उन्होंने तब लिखा था जब वो अपने मिशन में सफल हुए थे. इनके पत्र के जवाब में इनकी पत्नी ने भी एक पत्र लिखा था जो वो पढ़ ही नहीं पाए उसमें लिखा था:

इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मैं एक बच्ची को जन्म देती हूं या एक लड़के को, अगर आप वापस आते हैं तो मुझे ख़ुशी होगी और अगर आप नहीं आते हैं तो मुझे शहीद की पत्नी होने पर गर्व होगा, लेकिन एक बात मैं आपसे वादा करना चाहती हूं. इस ख़त के ज़रिये मैं आपसे एक वादा करती हूं कि मैं अपने बच्चे को न केवल कारगिल दिखाऊंगी बल्कि उसे आपकी तरह एक सोल्जर बनाऊंगी.

जय हिंद!

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