पढ़िए उस ग़ुमनाम अफ़्रीकी महिला की कहानी, जिसने 1857 की क्रांति में हिन्दुस्तानियों की मदद की थी

Sanchita Pathak

1857 में हिन्दुस्तानियों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह किया. देशभर के कई जगहों पर अंग्रेज़ों को भारत से खदेड़ने के लिए भारतीय क्रांतिकारी भिड़ गये. इस क्रांति में महिलाओं का भी अभूतपूर्व योगदान रहा.  

1857 की क्रांति की बात करते हैं तो रानी लक्ष्मीबाई, बेग़म हज़रत महल, झलकारी बाई जैसी महिलाओं का नाम ज़ेहन में आता है. Times of India की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया लेकिन उनकी वीरगाथा इतिहास में ही ग़ुम हो गई. 

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इतिहासकार और लेखिका Dr. Rosie Llewellyn Jones के मुताबिक़, सिकंदर बाग़ में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़, भारतीय क्रांतिकारियों के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी थी एक अफ़्रिकी महिला. Jones ने लखनऊ और उसके इतिहास पर शोध किया है और लिखा है. सनतकदा फे़स्टिवल में Jones अपनी क़िताब पर बात कर रही थीं और वहीं उन्होंने ये इतिहास में लगभग ग़ुम हो चुका तथ्य सबको बताया. Dr. Jones की 1857 की क्रांति में अवध और लखनऊ में हुई घटनाओं पर एक किताब पब्लिश करने वाली हैं. 

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1910 में William Forbes-Mitchell की किताब Reminiscences of The Great Mutiny 1857-59 में इस महिला का ज़िक्र किया गया है. Mitchell के अनुसार, लखनऊ के सिकंदर बाग़ की लड़ाई ख़त्म होने के बाद कुछ अंग्रेज़ी सैनिकों ने एक बड़े से पीपल के पेड़ के नीचे पनाह ली. इन सैनिकों के आस-पास अंग्रेज़ी सैनिकों के कई मृत शरीर थे. कैप्टन डॉसन के मुताबिक़ इन मृतकों के शरीर को देखकर लग रहा था कि किसी ने ऊपर से गोली चलाई है.  

कैप्टन डॉसन ने अपने सिपाहियों को पेड़ की डालियों को चेक करने को कहा कि कहीं उस पर कोई छिपा हुआ तो नहीं है. एक सैनिक को वो हमलावर दिख गया. सैनिक ने अपनी बंदूक चला दी और एक मृत शरीर ऊपर से गिरा. Mitchell ने अपनी क़िताब में आगे लिखा कि मृतक ने ‘टाइट फ़िटेड लाल जैकेट’ और ‘गुलाब के रंग की पतलून’ पहनी थी. जब जैकेट खोला गया तो अंग्रेज़ों को पता चला कि वो किसी महिला का शरीर था. गोली चलाने वाले सैनिक ने भी शोक़ ज़ाहिर किया कि अगर उसे पता होता वो एक महिला है तो वो ख़ुद हज़ार मौतें मर जाता पर उसे नहीं मारता.  

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Dr. Jones ने The Better India से बात-चीत में बताया कि उस महिला क्रांतिकारी के बारे में सिर्फ़ Mitchell की किताब से ही पता चलता है. वो महिला सिकंदर बाग़ के युद्ध में आख़िरी सांस तक लड़ी और कई अग्रेज़ी सैनिकों को मौत के घाट उतारा.  

अरब स्लैव ट्रेडर्स अपने साथ हज़ारों ग़ुलाम भारत लेकर आये थे. अरब के स्लैव ट्रेडर्स और भारत के स्लैव ट्रेडर्स के बीच गु़लामों की ख़रीद-फ़रोख़्त होती थी. कई सदियों तक आदमी, औरत, बच्चे पूर्व अफ़्रिका से भारत लाये गये. Dr. Jones के अनुसार इसकी पूरी संभावना है कि Mitchell ने जिस अफ़्रीकी महिला सिपाही का ज़िक्र किया वो या तो अफ़्रिका से आई थी या फिर उसका जन्म भारत में ही हुआ.  

Varnam

नवाब वाजिद अली शाह अफ़्रीकी महिलाओं को और अफ़्रीकी, भारतीय मिक्स की महिलाओं को पसंद करते थे. बेग़म हज़रत महल, अफ़्रीकी ग़ुलाम की ही बेटी थीं. नवाब वाजिद अली शाह की सेना में एक ‘हब्शीयन पलटन’ भी थी, इसमें अफ़्रीकी सिपाही थे. Dr.Jones ने बताया कि इस पलटन में महिला सिपाही नहीं होंगी लेकिन नवाब शाह के पास महिला बॉडीगार्ड्स थे. अंग्रेज़ों ने इन महिला बॉडीगार्ड्स को ‘Amazons’ बताया. Dr. Jones के मुताबिक़ इसकी पूरी संभावना है कि वो अफ़्रीकी महिला सिपाही भी इसी दल का हिस्सा थी. नवाब शाल के पास एक ‘गुलाबी पलटन’ थी और हो सकता है बॉडीगार्ड का भी वही नाम हो. उस महिला ने जो कपड़े पहने थे उससे इस बात की पुष्टि होती है कि वो इस पल्टन का हिस्सा थी.  


Dr. Jones का मानना है कि अंग्रेज़ों के पास अच्छे हथियार थे और भारतीयों के पास हथियार की कमी थी, ये बहुत बड़ी वजह थी कि ये जंग भारतीय हार गये. 

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