3 नवंबर 1988 को श्रीलंकन अलगाववादी संगठन पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम (PLOTE) के हथियारबंद उग्रवादी पर्यटकों के भेष में स्पीडबोट्स के ज़रिये मालदीव पहुंचे. इस दौरान श्रीलंका में कारोबार करने वाले मालदीव के अब्दुल्लाह लथुफी ने ‘पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम’ की मदद से मालदीव की अब्दुल गयूम सरकार के तख्ता पलट की साजिश रची.
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मालदीव पहुंचे हथियारबंद उग्रवादियों ने जल्द ही राजधानी माले की प्रमुख सरकारी इमारतों, एयरपोर्ट, बंदरगाह और टेलिविजन स्टेशन को अपने कब्ज़े में ले लिया. इसके बाद उग्रवादी तत्कालीन राष्ट्रपति मामून अब्दुल गय्यूम तक पहुंचना चाहते थे. इस दौरान ‘पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम’ के 80 लड़ाकों ने हिंद महासागर के ज़रिए मालदीव में घुसकर बमबारी भी की थी.
इस बीच अब्दुल गयूम ने श्रीलंका, पाकिस्तान और अमेरिका से मदद की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने भी साथ नहीं दिया. इसके बाद गयूम ने भारत की राजीव गांधी सरकार से तत्काल मदद की मांग की. प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आदेश 3 नवंबर की रात को ही आगरा छावनी से भारतीय सेना की ‘पैराशूट ब्रिगेड’ के क़रीब 300 जवान माले के लिए रवाना हुए. गय्यूम की दरख्वास्त के 9 घंटे के भीतर ही नॉन स्टॉप उड़ान भरते हुए भारतीय सेना माले के हुलहुले एयरपोर्ट पर पहुंची.
मालदीव पहुंचने के बाद भारतीय सेना ने ‘पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम’ के ख़िलाफ़ एक सैन्य ऑपरेशन किया, जिसे ऑपरेशन कैक्टस (Operation Cactus) नाम दिया था. इस बीच कोच्चि से भारत ने और सेना भेजी. माले के ऊपर भारतीय वायुसेना के मिराज विमान उड़ान भरने लगे. भारतीय सेना की इस मौजूदगी ने उग्रवादियों के मनोबल पर चोट की. इसी दौरान भारतीय सेना ने सबसे पहले माले के एयरपोर्ट को अपने नियंत्रण में लिया और राष्ट्रपति गय्यूम को सिक्योर किया.
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इस बीच भारतीय नौसेना के युद्धपोत गोदावरी और बेतवा भी हरकत में आ चुके थे. उन्होंने माले और श्रीलंका के बीच उग्रवादियों की सप्लाई लाइन काट दी. कुछ ही घंटों के भीतर भारतीय सेना माले से उग्रवादियों को खदेड़ने लगी. इस दौरान तमिल लड़ाकों ने एक जहाज को अगवा कर लिया. अगवा जहाज को अमेरिकी नौसेना ने इंटरसेप्ट कर इसकी जानकारी भारतीय नौसेना को दी और ‘आईएनएस गोदावरी’ हरकत में आया. इस दौरान गोदावरी से एक हेलिकॉप्टर ने उड़ान भरी और उसने अगवा जहाज पर भारत के मरीन कमांडो उतार दिये. कमांडो कार्रवाई में 19 लोग मारे गए. इनमें ज्यादातर उग्रवादी थे.
आज़ादी के बाद विदेशी धरती पर ये भारत का पहला सैन्य अभियान था. इस अभियान को ‘ऑपरेशन कैक्टस’ नाम दिया गया था, जिसकी अगुवाई पैराशूट ब्रिगेड के ब्रिगेडियर फ़ारुख बुलसारा ने की थी. केवल 2 दिन के भीतर पूरा अभियान खत्म हो गया. गय्यूम के तख्तापलट की कोशिश नाकाम हो गई. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने भारतीय कार्रवाई की तारीफ़ की, लेकिन श्रीलंका ने इसका कड़ा विरोध किया था.
भारतीय सेना द्वारा माले में किया गया ‘ऑपरेशन कैक्टस’ को आज भी दुनिया के सबसे सफ़ल कमांडो ऑपरेशनों में गिना जाता है. इस ऑपरेशन के बाद भारत और मालदीव के बीच बेहतर संबध हो गए थे.
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