सन 1987 में भारत सरकार और श्रीलंका सरकार के बीच एक हस्ताक्षरित समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने भारतीय सेना को ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ (IPKF) का गठन करने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी. इसके बाद भारतीय शांति रक्षा सेना (IPKF) ने सन 1987 से 1990 के मध्य श्रीलंका में शांति स्थापित करने के लिए एक ऑपरेशन को अंजाम दिया था. इसे ही ‘ऑपरेशन चेकमेट’ कहा जाता था.
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‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ का गठन भारत-श्रीलंका संधि के अधिदेश के अंतर्गत किया गया था. इस सेना का उद्देश्य ‘श्रीलंकाई सेना’ और ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) के बीच जारी श्रीलंकाई गृहयुद्ध को समाप्त करना था. ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ का उद्देश्य केवल ‘LTTE’ ही नहीं, बल्कि विभिन्न उग्रवादी संगठनों का ख़ात्मा करना था.
भारत-श्रीलंका के बीच हुए इस समझौते के शीघ्र बाद एक अंतरिम प्रशासनिक परिषद का गठन किया जाना था. लेकिन श्रीलंका में लगातार बढ़ते गृहयुद्ध और भारत में शरणार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ने से राजीव गांधी ने इस समझौते को बढ़ाने के लिए निर्णायक कदम उठाया. इस बीच श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जे.आर. जयवर्धने के अनुरोध पर भारत-श्रीलंका समझौते की शर्तों के अंतर्गत ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ को श्रीलंका में तैनात कर दिया गया.
इस दौरान ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ ने ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम’ को शांति का प्रस्ताव भेजा, लेकिन LTTE ने इससे इंकार कर दिया. इस बीच IPKF ने कई बार LTTE से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन वो नाकाम रही. इन दोनों के बीच संबंध बनने के बजाय और बिगड़ गए. इन्हीं मतभेदों के परिणामस्वरूप LTTE ने IPKF पर आक्रमण कर दिया. ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ को इसका ज़रा सा भी अंदेशा नहीं था.
इसके बाद IPKF ने LTTE उग्रवादियों को निःशस्त्र करने और आवश्यकता पड़ने पर बल-प्रयोग करने का निर्णय लिया. इस दौरान ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ ने 2 साल तक उत्तरी श्रीलंका में LTTE के नेतृत्व को ख़त्म करने के उद्देश्य से कई ऑपरेशन किये. ‘गुरिल्ला युद्ध प्रणाली’ में LTTE की रणनीतियों और युद्ध लड़ने के लिये महिलाओं एवं बाल सैनिकों के प्रयोग को देखते हुए IPKF ने LTTE के ख़िलाफ़ ऑपरेशन तेज़ कर दिए.
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‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ में 80,000 सैनिकों को शामिल किया गया था. इन ऑपरेशंस में करीब 1,255 भारतीय सैनिकों शहीद हो गए थे. जबकि हज़ारों घायल हुए थे. इस दौरान IPKF ने LTTE के 7000 आतंकियों को मार गिराया था. इन ऑपरेशंस के दौरान भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियां सटीक जानकारी प्रदान करने में असफ़ल रहीं रही थीं, जिस कारण LTTE ने श्रीलंका में कई नरसंहार किये. इनमें से एक जाफ़ना (श्रीलंका) के फुटबॉल मैदान का नरसंहार भी है.
इस दौरान ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ ने LTTE के ख़िलाफ़ कई ऑपरेशन किए इनमें से अधिकतर में उसे सफ़लता मिली, लेकिन IPKF को जिस मकसद के साथ श्रीलंका भेजा गया था उसमें वो सफ़ल नहीं हो पाई.
सन 1989 सेना वापस बुलाई
श्रीलंका में ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ भेजने का निर्णय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का था. सन 1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस (I) सरकार का निष्कासन हुआ और देश में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी. इसके बाद वीपी सिंह सरकार और नवनिर्वाचित श्रीलंकाई राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदास के अनुरोध पर IPKF 1989 में श्रीलंका से वापस लौट आई. ‘भारतीय शांति रक्षा सेना’ के आख़िरी दल ने भी मार्च 1990 में श्रीलंका छोड़ दिया.
21 मई 1991 को LTTE ने राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) द्वारा श्रीलंका में IPKF को भेजे जाने के बदले उनकी हत्या कर दी. राजीव गांधी 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरुंबुदुर में एक रैली में शामिल हुए थे. इस दौरान धनु नामक एक आत्मघाती हमलावर, जो LTTE का एक सदस्य था, ने राजीव गांधी की हत्या कर दी.
इसके बाद LTTE ने धीरे-धीरे पांव जमाने शुरू कर दिए और करीब 2 दशकों तक श्रीलंका और भारत के लिए सिर दर्द बना रहा. 18 मई 2009 को श्रीलंकाई सेना द्वारा LTTE चीफ़ Velupillai Prabhakaran की मौत के साथ ही ये संगठन भी हमेशा के लिए ख़त्म हो गया.