क्या था ‘छप्पनिया अकाल’, जिसकी वजह से आज भी राजस्थान में 56 नंबर को माना जाता है अशुभ?

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सन 1899 में उत्तर भारत में भयंकर अकाल पड़ा था. इनमें सबसे प्रमुख राजस्थान था. राजस्थान के जयपुर, जोधपुर और बीकानेर इलाक़े भयंकर तरीक़े से सूखे की चपेट में आये थे. ये अकाल विक्रम संवत 1956 में होने के कारण इसे स्थानीय भाषा में ‘छप्पनिया अकाल’ भी कहा जाता है. अंग्रेज़ों के गज़ेटियर में ये अकाल ‘द ग्रेट इंडियन फ़ैमिन 1899’ के नाम से दर्ज है.

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आज से 122 साल पहले राजस्थान के अधिकांश भूभाग में साल भर बारिश की एक बूंद तक नहीं गिरी. वर्षा ऋतू की खेती पर निर्भर राजस्थान में बारिश ना होने के कारण किसान अपनी फसल भी नहीं बो सके. इस दौरान न तो अनाज का एक दाना पैदा हुआ, न ही पशुओं के लिए चारा उपलब्ध हो पाया. जो इलाक़े पीने के लिए वर्षा जल संचय पर निर्भर रहते थे वहां पीने के पानी की घोर कमी के चलते लोग पलायन करने लगे.  

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बच्चों को बेचने के लिए मजबूर 

इस दौरान अनाज सबसे क़ीमती चीज़ बन गई थी. हांडियों में छुपा कर रखे अनाज की चोरियां होने लगीं. अनाज के बदले लोग अपने बच्चों को तक बेचने के लिए मजबूर हो गए. इस बीच अकाल ने हर जगह, हर स्तर पर अपना तांडव मचाना शुरू कर दिया. हर घर में भूख पसरने लगी, हर तरफ़ भूख से बिलखते व तड़पते बच्चे, बुज़ुर्ग और जवान नज़र आते. राजस्थान के हर इलाक़े में ऐसा ही दिल दहलाने वाला मंज़र था. रात-दिन की भूख ने बच्चे, बुज़ुर्ग और जवान सबको एकदम कमज़ोर बना दिया था.  

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घास की रोटी, सांप-नेवलों का शिकार

पीने का पानी नहीं होने के कारण डिहाईड्रेशन के चलते लोगों की मौत होने लगी. मरुस्थल के 50-52 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भूख व प्यास से पलायन करते लोग व पशु रास्तों में ही मरने लगे. भूख प्यास के चलते लोग घास की रोटी, सांप-नेवलों का शिकार और पेड़ों की सूखी छाल पीसकर खाने को मजबूर हो गए. इस दौरान कुछ लोग भूख से नरभक्षी तक बन गए थे.  

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इस संकट ने राजपुताना गढ़ में हाहाकार मचा दिया. मेवाड़ के राजा महाराजा भी इस संकट से जूझते नज़र आये. इसके बाद मेवाड़ के राजाओं ने अकाल राहत के कई कार्य किये, जिनमें मुफ़्त खाने का प्रबन्ध सबसे महत्वपूर्ण था. राजाओं ने अपनी प्रजा के लिए जगह जगह आश्रय खोले ताकि भूखे लोग वहां पर खाना खाकर अपनी जान बचा सके, लेकिन उस दौर में यातायात के सीमित साधन व संचार माध्यमों की कमी के चलते लोगों तक पूरी तरह से मदद नहीं पहुंच सकी.  

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जनता के लिए मुफ़्त भोजन की व्यवस्था करने के चलते कई शासकों के खजाने खाली हो गए और वो भारी कर्ज में डूब गए, राजाओं के आदेश से सेठो ने भी अपने अन्नाज के भंडार खोल दिए, लेकिन भयंकर अकाल के सामने सब नाकाफ़ी साबित हुआ. इस दौरान सालभर के अंदर भूख और प्यास से लाखों लोगों की मौत हो गई.

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सन 1899 में ही लार्ड कर्ज़न की भारत में वायसराय पद पर नियुक्ति हुई. इस दौरान में ब्रिटिश सरकार के अधीन आने वाले प्रदेशों में अकाल से प्रभावित लोगों के लिए कुछ राहत शिविर खोले गए, लेकिन उनमें लगभग 25 प्रतिशत लोगों को ही सीमित राहत मिली. भारत के लिए ‘छप्पनिया अकाल’ व्यापक रूप से जनसंहारक साबित हुआ.  

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क़रीब 40-45 लाख लोगों की हुई मौत

सन 1908 में भारत के ‘इम्पीरियल गज़ेटियर’ में छपे एक अनुमान के मुताबिक़, इस अकाल से अकेले ब्रिटिश भारत अर्थात सीधे अंग्रेज़ी हुक़ूमत द्वारा शासित प्रदेशों में 10 लाख लोग भुखमरी और उससे जुड़ी बीमारियों से मौत के मुंह में समा गए थे. इतिहासकारों के मुताबिक़ ये आंकड़ा 40-45 लाख के क़रीब था. इसमें उस समय के रजवाड़ों/रियासतों में इस अकाल की वजह से हुई जनहानि की संख्या शामिल नहीं है.

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ये अकाल सन 1899 में (विक्रम संवत 1956) में पड़ा था. इसलिए आज भी राजस्थान के कई इलाक़ों में 56 नंबर को अशुभ माना जाता है.

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