अब तक ये 15 फ़िल्में नहीं देखी, तो देख लो. सिर्फ़ यही फ़िल्में भारत की तरफ़ से कान्स जा पाई हैं

Kundan Kumar

फ्रांस का एक छोटा और ख़ूबसूरत शहर- कांन्स. दुनिया में इस नाम को अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फे़स्टिवल के लिए जाना जाता है. आज कांन्स की ख़्याति इतनी बढ़ चुकी है कि ये शहर सिनेमा का पर्यायवाची बन चुका है. बड़े-बड़े निर्देश्कों और कलाकारों का सपना होता है कि उनकी फ़िल्म कांन्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिखाई जाए. इस फ़िल्म फ़ेस्टिवल की बुलंदी लगभग Oscars के बराबर पहुंच चुकी है.

8 मई को शुरू हुआ ये फ़िल्म फ़ेस्टिवल 19 मई तक चलेगा. इस बीच कई फ़िल्में प्रदर्शित की जाती हैं, फ़िल्मों से जुड़े अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. इस साल नंदिता दास की ‘मंटो’ भारतीय सिनेमा को Represent कर रही है. इससे पहले भी कई भारतीय फ़िल्मों ने इस महत्वपूर्ण फ़िल्म फ़ेस्टिवल में हिन्दी सिनेमा को सम्मान दिलाया.

देखते हैं कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में भारतीय फ़िल्मों के अब तक के सफ़र को…

नीचा नगर(1946)- चेतन आनंद

कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में जाने वाली ये पहली भारतीय फ़िल्म थी. नीचा नगर को बेस्ट फ़िल्म का अवॉर्ड भी मिला था. ये फ़िल्म मेक्सिम गोर्की की The Lower Depths नाटक पर आधारित थी.

अवारा(1951)- राज कपूर

राज कपूर की ये फ़िल्म एक गऱीब लड़के और अमीर लड़की की कहानी है. फ़िल्म में ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव को बख़ूबी दिखाया गया है. इस फ़िल्म को Palme d’Or सम्मान के लिए शॉर्ट लिस्ट किया गया था.

दो बीघा ज़मीन(1953)- बिमल रॉय

1948 में बनी Bicycle Thieves ने बिमल रॉय को दो बीघा ज़मीन बनाने के लिए प्रेरित किया. भारतीय सिनेमा के इतिहास में ये फ़िल्म मील का पत्थर साबित हुई. इसे कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में Prix International अवॉर्ड मिला था.

बूट पॉलिश (1954)- प्रकाश अरोड़ा

ये फ़िल्म एक भाई-बहन की कहानी है. उनका पिता उन्हें भीख मांगने के लिए छोड़ देता है लेकिन वो दोनों भीख मांगने की जगह बूट पॉलिश करना चुनते हैं. इस फ़िल्म को कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में काफ़ी सराहा गया था.

पाथेर पांचाली (1955)- सत्यजित रे

पाथेर पांचाली भारत के छोटे से गांव के कहानी है. इस फ़िल्म ने भारतीय सिनेमा में एक नई प्रथा की शुरुआत की. कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में इसे Best Human Document Award दिया गया था.

गाइड(1965)- विजय आनंद, Tad Danielewski

https://www.youtube.com/watch?v=kfA9jjIjJu0

अंतर्राष्ट्रीय टीम के साथ मिल कर बनाई गई ये भारत की पहली फ़िल्म थी. देवा आनंद और वहीदा रहमान इस फ़िल्म की वजह से भारत में स्टार बन गए. हालांकि इस फ़िल्म का अंग्रज़ी वर्ज़न फ़्लॉप हो गया था. रिलीज़ होने के 42 साल बाद इसे कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल की Classics श्रेणी में दिखाया गया था.

ख़ारिज(1982)- मृणाल सेन

मृणाल सेन की ये बांग्ल फ़िल्म एक बाल मज़दूर की मौत के इर्द-गिर्द घूमती है. ये फ़िल्म गोल्डन पाम अवॉर्ड के लिए नामंकित हुई थी और इसे जूरी प्राइज़ भी दिया गया था.

सलाम बॉम्बे(1988)- मीरा नायर

मीरा नायर की ये फ़िल्म तब के बॉम्बे शहर में सड़कों की ज़िंदगी को बहुत बारीकी से दिखाती है. इस फ़िल्म को ढेर सारे अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले थे. कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में इसे गोल्डन कैमरा और ऑडियंस अवॉर्ड से नवाज़ा गया था.

उड़ान(2010)- विक्रमादित्य मोटवाने

नए ज़माने की कहानी कहती इस फ़िल्म को Un Certain Regard श्रेणी में रख कर प्रदर्शित किया गया था. फ़ेस्टिवल में अच्छी तारिफ़ मिलने की वजह से इस फ़िल्म को भारत में भी सफ़लता मिली और लोगों ने सराहा.

Miss Lovely(2012)- अशीम आहलुवालिया

ये दो निर्माता भाईयों की कहानी है, जो बी-ग्रेड हिन्दी फ़िल्में बनाते हैं और एक-दूसरे को बर्बाद भी करना चाहते हैं. फ़ेस्टिवल में Miss Lovely को आलोचकों से काफ़ी सराहना मिली थी.इसका प्रदर्शन Un Certain Regard श्रेणी में हुआ था.

गैंग्स ऑफ़ वासेपुर (2012), Ugly (2013), रमन राघव 2.0 (2016) – अनुराग कश्यप

गैंग्स ऑफ़ वासेपुर ने भारतीय सिनेमा पर अलग छाप छोड़ी है. बस 6 साल पहले रिलीज़ हुई ये फ़िल्म कल्ट बन चुकी है. इस फ़िल्म को कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में Directors’ Fortnight श्रेणी में रख कर दिखाया गया था. दो पार्ट में बनी ये फ़िल्म फ़ेस्टिवल में एक बार में ही लगातार पांच घंटे तक दिखाई गयी. ये अनुराग कश्यप का जादू ही था जो दर्शकों को पांच घंटे तक कुर्सी पर बिठाए रखा. 

इसके बाद Ugly और रमन राघव को भी साल 2013 और 2016 में क्रमश: Directors Fortnight श्रेणी में दिखाया गया.

The Lunchbox(2013)- रितेश बत्रा

रितेश बत्रा की ये पहली फ़ीचर फ़िल्म थी. इसकी कहानी में मुंबई के डब्बावाला हैं, जो ग़लती से एक डब्बा ग़लत पते पर भेज देता है, जिससे एक रिश्ते की शुरुआत होती है. फ़िल्म फ़ेस्टिवल में ये मूवी International Critics’ Week में दिखाई गयी थी और फ़िल्म को Viewer’s Choice अवॉर्ड भी मिला था.

तितली(2014)- कानू बहल

दिल्ली के एक ऐसे परिवार की कहानी जो गाड़ियां लूटता है. परिवार का एक लड़का अपनी नई पत्नी के साथ मिलकर परिवार के काम को छोड़ कर भागने की कोशिश में लगा रहता है. भारत में रिलीज़ होने से पहले ये फ़िल्म कान्स के लिए गई थी. Camera d’Or अवॉर्ड जीतने के काफ़ी करीब पहुंच गई थी.

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