3 मई 1913 को भारत की पहली फ़ीचर फ़िल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ रिलीज हुई थी. पिछले 108 सालों में इंडियन सिनेमा पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है. पिछले कई दशकों से भारतीय फ़िल्में ऑस्कर में देश का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. दुनियाभर में रहने वाले भारतीय मूल के लोग बॉलीवुड फ़िल्मों को काफ़ी पसंद करते हैं. आज बॉलीवुड फ़िल्में भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी काफ़ी लोकप्रिय हो रही हैं.
आइये इन पुरानी तस्वीरों के ज़रिए जानिए देश की पहली फ़ीचर फ़िल्म से जुड़ी कुछ ख़ास बातें-
1- इस फ़िल्म का निर्देशक बॉलीवुड के दिग्गज फ़िल्मकार दादासाहेब फाल्के ने किया था.
2- ये फ़िल्म क़रीब 40 मिनट लंबी है. इसकी कहानी ‘राजा हरिश्चंद्र’ पर आधारित है.
3- ये एक मूक फ़िल्म है, लेकिन इसमें दृश्यों के भीतर अंग्रेज़ी और हिन्दी में कथन लिखकर समझाया गया है.
4- ये फ़िल्म सबसे पहले 3 मई, 1913 को मुंबई के ‘कोरोनेशन सिनेमा’ हाल में रिलीज़ हुई थी.
5- ‘राजा हरिश्चन्द्र’ फ़िल्म को मराठी भाषा की श्रेणी में रखा जाता है, क्योंकि इसमें सभी कलाकार मराठी थे.
6- इस फ़िल्म को बनाने में कुल 7 महीने और 21 दिन लगे थे. इसका बजट उस समय क़रीब 20000 रुपये था.
7- दादा साहेब को इस फ़िल्म में महारानी ‘तारामती’ के किरदार के लिए कोई हीरोइन नहीं मिली तो एक मेल एक्टर ने ये रोल किया था.
8- दादा साहेब फाल्के ने होटल में चाय परोसने वाले लड़के अण्णा सालुंके को अच्छे मेहनताने का लालच देकर महारानी तारामती बनाया था.
9- सन 1912 में दादर इलाक़े में इस फ़िल्म का सेट बनाया गया था. कलाकार खोजने के लिए दादा साहेब ने इश्तिहार दिया था.
10- इस फ़िल्म की शूटिंग विलियमसन कैमरा पर होती थी व तस्वीरें कोडेक रॉ फुटेज रील में क़ैद होती थीं. शूटिंग केवल सूरज की रोशनी में ही होती थी.
11- ये फ़िल्म जब सभी सिनेमाहॉलों में लगी तो 2 दिन तक कोई देखने नहीं गया. इसके बाद नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए फ़िल्म का प्रमोशन किया गया.
12- इस फ़िल्म का प्रचार उन दिनों ‘57,000 तस्वीरों से तैयार परफ़ॉर्मेंस, 2 मील लंबी पिक्चर. सब कुछ 3 आना में’ वाले विज्ञापन के ज़रिए किया गया था.
13- दादा साहेब फाल्के की पत्नी सरस्वती देवी को फ़िल्म में महारानी का रोल ऑफर हुआ था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. सरस्वती देवी के योगदान के बिना ‘राजा हरिश्चन्द्र’ फ़िल्म बन ही नहीं सकती थी.
14- सरस्वती देवी शूटिंग के दौरान धूप में रिफ्लेक्टर के तौर पर सफ़ेद चादर लेकर खड़े रहना और शॉट्स को जोड़ने का काम करती थीं. इसके अलावा वो 60-70 लोगों की यूनिट के लिए खाना पकाती थीं.
15- इस फ़िल्म में दत्तात्र्य दामोदर डाबके, अन्ना सलुंके, दत्तात्रेय क्षीरसागर, दत्तात्रेय तेलंग और गणपत जी शिंदे जैसे कलाकारों ने काम किया था.
इस फ़िल्म के बारे में आपको सबसे अच्छी बात कौन सी लगती है?