एक दौर था जब बॉलीवुड की अधिकतर फ़िल्मों में पुरुषों को सुपरहीरो की तरह दिखाया जाता था. समय बदला और फ़िल्मों में महिलाओं की मजबूत छवि दिखाई जाने लगी. बीते कुछ सालों में फ़िल्मों में महत्वाकांक्षी महिलाओं की भूमिकाओं को गढ़ा गया और अंत में वो चैंपियन बन कर दर्शकों के सामने आयीं. पुरुषप्रधान देश में ऐसी फ़िल्में बनाना समाज की नई सोच को दर्शाता है. जिन्हें देख कर घर बैठी महिलाओं को आगे बढ़ने और कुछ करने हौसला मिलता है.
चलिये आज थोड़ी सी बात इन बेहतरीन फ़िल्मों पर भी हो जाये:
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1. ‘हिचकी’
फ़िल्म की कहानी Tourette Syndrome से जूझती नैना माथुर नामक महिला पर आधारित होती है. नैना टैलेंटेड होती है, लेकिन Tourette की वजह से कई बार शिक्षक की नौकरी के लिये रिजेक्ट कर दी जाती है. रिजेक्शन मिलने के बावजूद समाज नैना को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाता और वो वंचित बच्चों को पढ़ाना शुरु कर देती है.
2. ‘बैंड बाजा बारात’
अनुष्का शर्मा और रणवीर सिंह स्टारर फ़िल्म के ज़रिये श्रुति नामक एक मजबूत कैरेक्टर को दर्शकों के सामने रखा गया. श्रुति करियर में आगे बढ़ना चाहती है. इसलिये वो अपने काम को कभी हल्के में नहीं लेती है. वो एक पुरुष के प्यार में ज़रूर पड़ती है, लेकिन उसके लिये अपना सब कुछ दांव पर लगाना ठीक नहीं समझती.
3. ‘लव आज कल’
बहुत सारे लोग इस फ़िल्म को एक लव स्टोरी की तरह देखते होंगे. पर असल में ऐसा नहीं है. फ़िल्म में आप मीरा के कैरेक्टर से बहुत कुछ सीख सकते हैं. जिसका ख़ुद के करियर के साथ एक ख़ास रिश्ता होता है. मीरा की सबसे अच्छी बात ये होती है कि वो इस रिश्ते के बीच में किसी को नहीं आने देना चाहती.
4. ‘पेज 3’
‘पेज 3’ बॉलीवुड की क्रांतिकारी फ़िल्मों में से एक है. माधवी शर्मा के कैरेक्टर में कोंकणा सेन एक मंझी हुई पत्रकार के रूप में दिखाई दीं. वो दमदार पत्रकार जिसके जुनून ने उसे ग्लैमर वर्ल्ड में चल रही धांधली को उजागर करने के लिये प्रेरित किया.
5. ‘मर्दानी’
रानी मुखर्जी स्टारर ये फ़िल्म एक जांबाज़ महिला इंस्पेक्टर की ज़िंदगी पर आधारित है, जिसे न गुंडों से डर लगता है और न आने वाली मुश्किलों से. इंस्पेक्टर शिवानी शिवाजी रॉय भूमिका में रानी मुखर्जी भी कैरेक्टर के साथ न्याय करती हुई दिखीं.
6. ‘राज़ी’
मेघना गुलज़ार की इस फ़िल्म ने आलिया भट्ट के करियर को नई ऊंचाईयां दीं. फ़िल्म में आलिया ने एक जासूस का रोल अदा किया, जिसके लिये देशभक्ति से बढ़ कर कुछ नहीं होता.
7. ‘गुंजन सक्सेना – द कारगिल गर्ल’
फ़िल्म की कहानी युद्ध में के मैदान में उतरने वाली पहली भारतीय महिला वायुसेना पायलट गुंजन सक्सेना की ज़िंदगी पर आधारित होती है. गुंजन सक्सेना का किरदार जाह्नवी कपूर ने निभाया था.
8. ‘तुम्हारी सुलू’
घर संभाल रही महिला बेवकूफ़ नहीं होती है. बस वो परिवार के चक्कर में ख़ुद के सपनों को जीना भूल जाती है. ‘तुम्हारी सुलू‘ देखने के बाद लगेगा कि महिलाएं किचन से निकल कर रेडियो स्टेशन तक पहुंच सकती हैं. बस उन्हें एक मौक़ा मिलना चाहिये.
ये ज़रुरी नहीं है कि हर महिला घर से बाहर निकल कर काम करना चाहे. ये भी ज़रूरी नहीं है कि अगर महिला घर पर है, तो वो कुछ कर नहीं सकती है. जिस दिन हमने इस बात को समझ लिया. समाज में महिला और पुरुष के मुद्दे पर बहस होना बंद हो जायेगी.