चटनी म्यूज़िक: यूपी बिहार की गलियों से निकला ये म्यूज़िक आज विदेश में अपने कई Fans बना चुका है

Komal

जब भारत की ढोलक के साथ Caribbean Tassa Drums और Soca Beats का मेल हुआ, तो बना एक चटपटा संगीत, जिसकी जड़ें भारत की हैं, लेकिन पनपा है विदेशी धरती पर. इस अनोखे संगीत को लोग चटनी म्यूज़िक कहते हैं. ये फ्यूज़न म्यूज़िक किसी को भी थिरकने पर मजबूर कर सकता है. इन गानों के ज़्यादातर बोल तो हिंदी में होते हैं, लेकिन इन्हें गया जाता है Creole एक्सेंट में.

कहां-कहां हैं चटनी के दीवाने 

ये संगीत कई साल पहले भारतीय मज़दूरों के साथ West Indies आया था और फिर ये वहीं का होकर रह गया. ये संगीत Trinidad,Tobago, Guyana, Suriname, Jamaica, Fiji, Mauritius और South Africa में काफ़ी लोकप्रिय है. इसे Indo-Caribbean लोग आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन इसे शुरू करने वाले हिंदी बेल्ट के ही लोग थे. ब्रिटिश, भारतीय श्रमिकों को चीनी के बागानों में काम कराने ले गए थे. उस वक़्त ये संगीत उनके साथ इन देशों में आ गया था.

कैसे बढ़ा क्रेज़ 

1990s में कई रिकॉर्डिंग कंपनियों ने चटनी क्रेज़ को बढ़ाने के लिए पैसे लगाए, कई चटनी आर्टिस्ट्स से गाने रिकॉर्ड करवाए गए. Gaiutra Bahadur ने अपनी किताब ‘Coolie Woman’ में बताया है कि कैसे उनकी दादी श्रमिक के रूप में भारत से Guyana आयी थीं और ये संगीत उनके साथ रह गया था. ये संगीत भोजपुरी गीतों से ही बना है. ये उदाहरण है कि कैसे दो देशों की संस्कृतियां मिल कर एक संगीत को सींच सकती हैं. कहा जा सकता है कि ये एक हाइब्रिड संगीत है.

ये संगीत कुछ लोगों को अश्लील भी लग सकता है, क्योंकि इसके बोल द्विअर्थी होते हैं. शादी ब्याह में ये गाने भारतीय महिलाएं रस्म के तौर पर गाती हैं.

चटनी माइग्रेशन का संगीत है. ये बिलकुल आज़ाद है, न इस पर संस्कारों का बोझ है, न ही संस्कृति को पवित्र बनाये रखने की ज़िम्मेदारी. ये संस्कृति का रंग तो लिए है, लेकिन इसे दूसरी संस्कृतियों से ऐतराज़ भी नहीं है.

भारत में बना है आपत्ति का विषय 

चटनी म्यूज़िक इतना मज़ेदार है कि इसके ‘नॉनसेन्स’ बोलों से जल्दी कोई आहत नहीं होता, लेकिन जैसा कि आप सब जानते हैं कि भारतीय इस मामले में ज़रा टची होते हैं, कुछ लोगों को इसमें बाद आपत्ति भी हुई. ज़्यादातर भारतीय इसके नए रूप को नहीं अपना पाए, कुछ लोगों को ये भारतीय संस्कृति के लिए ख़तरा तक लगा. चटनी म्यूज़िक के कई गाने भारत में बैन भी हो चुके हैं.

कब हुई शुरुआत

1834 से 1917 के बीच अवध और बिहार के हज़ारों श्रमिक जब अपना देश हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ कर जा रहे थे, तब वो अपनी मिट्टी की याद के रूप में पोटलियों में बांध कर इसे साथ ले गए थे. उन्हें विदेश लाया गया तो बस सस्ते मज़दूरों के रूप में था, लकिन वो विदेशी धरती पर अपने साथ संस्कृति का प्यारा-सा उपहार भी लाये थे.

ये हैं चटनी म्यूज़िक के कुछ फ़ेमस नमूने:

https://www.youtube.com/watch?v=VhYMFQeQT-c

दिन भर खून-पसीना बहाने के बाद ये गाने शाम को उन्हें ज़रा राहत दिया करते थे. इन पर थिरकते हुए वो सारा दुःख भुला देते. धीरे-धीरे वो यहीं बस गए और चटनी संगीत भी उनके साथ यहीं रह गया.

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