फ़िल्म ‘दिल चाहता है’ में सुबोध के कैरेक्टर पर हंसने वालों, जान लो उससे तुम्हें सीख क्यों लेनी चाहिए

Vidushi

Dil Chahta Hai Subodh : साल 2001 में जब फ़िल्म दिल चाहता है (Dil Chahta Hai) रिलीज़ हुई थी, तब इसने हमें दिए थे वो कैरेक्टर्स जिनमें हमने ख़ुद को देखा था, वो जोक्स जिन्होंने हमें ख़ूब हंसाया था और गोवा और रोड ट्रिप्स के लिए कभी ना ख़त्म होने वाला प्यार.

हालांकि, इसने हमें एक ऐसा सपोर्टिंग कैरेक्टर भी दिया जो सालों से मज़ाक और बेइज्ज़ती का सामना कर रहा है, जबकि वास्तव में वो हमारे प्यार और तारीफ़ का हक़दार है. मैं ‘टाइम टेबल’ यानि सुबोध की बात कर रही हूं. (असद दादराकर)

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सुबोध को हमेशा तीसरे पहिए की तरह ट्रीट किया जाता है, हालांकि टेक्नीकली वो और पूजा (सोनाली कुलकर्णी) एक लविंग और कमिटेड रिलेशनशिप में थे, जब समीर (सैफ़ अली ख़ान) तस्वीर में आए.

अगर आप इसके बारे में सोचें, तो रियल में समीर तीसरा पहिया था, जिसने पूजा और सुबोध को लंच डेट और ड्राइव पर जॉइन किया. इसके बाद भी सुबोध ने कभी भी इस बात का विरोध नहीं किया कि उनकी डेट्स पूजा का दोस्त बाधित कर रहा है.

2000 के दशक की शुरुआत की फिल्मों के एक मेल कैरेक्टर के लिए, वो भी एक बॉयफ्रेंड के लिए, अपनी गर्लफ्रेंड के मेल दोस्त को स्वीकार करना कितना रेयर था? सुबोध प्रोग्रेसिव था और इमोशनली सेक्योर था. वाह!

दूसरी बात हम सभी सुबोध को समीर के पॉइंट ऑफ़ व्यू से जानते हैं. तो इसलिए ये कहना पर्याप्त होगा कि ये एक पक्षपाती दृष्टिकोण है. अगर आप वास्तव में सुबोध को समीर की लव स्टोरी से हट कर देखेंगे, तो आपको एहसास होगा कि सुबोध एक अच्छा लड़का था.

शुरुआत से बताती हूं, वो पूजा के लिए अपने प्यार का इज़हार करने में शर्माता नहीं था और वो छोटी बातों की भी पर्याप्त देखभाल करता था- जैसे कि अपनी गर्लफ्रेंड के लिए हर दिन एक गुब्बारा ख़रीदना.

*मेरा मतलब है अगर वो गुलाब होते, तो हम सब अभी ख़ुशी से बेहोश हो रहे होते, तो गुब्बारों के लिए क्यूं नहीं?*

सुबोध एक अमेज़िंग बॉयफ्रेंड था, जो पूजा के लिए डेट्स प्लान करता था. हां, वो थोड़े नीरस हो सकते हैं, लेकिन कम से कम उसने पूजा के लिए समय तो निकाला.

अगर फ़ेयर होकर बात की जाएं, तो वो समीर का सुबोध के प्रति असभ्य रवैया था, जिसने पूजा को ये सोचने पर मजबूर किया कि उसके पास ऐसा कोई है, जिसके लिए उसे शर्मिंदगी महसूस होनी चाहिए.

और समीर के विपरीत, सुबोध को पूजा का दिल जीतने के लिए चालाकी की ज़रूरत नहीं थी. उसने पूजा को अपने कार्यों (और अच्छी मेमोरी) के माध्यम से जीत लिया.

ईमानदारी से, समीर की ईर्ष्या, और निश्चित रूप से, कॉमिक के रूप में सुबोध की शुरूआत ने हमें इस फैक्ट से अंधा कर दिया कि सुबोध एक बहुत ही अद्भुत प्रेमी था.

सुबोध अपने व्यक्तित्व में काफ़ी सुरक्षित था और उसे बाहरी वैलिडेशन की आवश्यकता नहीं थी. यहां तक ​​कि समीर द्वारा उनका मज़ाक उड़ाने की स्पष्ट कोशिश का भी उसने सीधा जवाब दिया.

क्योंकि सुबोध को अपनी हरकतों में कुछ भी गलत या मज़ाकिया नहीं लगा, और वो समीर के व्यवहार की निंदा करने के लिए पर्याप्त लॉजिक नहीं सोच सकता था.

इसके अलावा, मेरी ईमानदार राय में, वो वास्तव में आसानी से महामारी को मैनेज करने वाली उन दुर्लभ आत्माओं में से एक रहा होगा. क्योंकि, वो एक शेड्यूल बनाता था, और वास्तव में उस पर टिका रहता था.

हो सकता है कि ये मैं काफ़ी समय बाद कह रही हूं, लेकिन मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम सुबोध को एक प्रगतिशील, प्यार करने वाले बॉयफ्रेंड के रूप में सेलिब्रेट करें और उसे समीर के ईर्ष्यालु नज़रिए से देखना बंद कर दें.

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