बॉलीवुड फ़िल्मों के ये 8 फ़ीमेल कैरेक्टर्स बता रहे हैं कि सही लाइफ़ पार्टनर चुनना कोई खेल नहीं है

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ये कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा कि फ़िल्में समाज की सोच बदलने में अहम भूमिका निभाती हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि बॉलीवुड (Bollywood) ने अपनी इस बड़ी ज़िम्मेदारी को काफ़ी हल्के में ले रखा है. साथ ही फ़ीमेल कैरेक्टर्स को एक अबला नारी की तरह शोकेस करना तो जैसे फ़िल्ममेकर्स का पर्सनल इन्ट्रेस्ट बन चुका है. हालांकि, हर फ़िल्म की यही कहानी नहीं है. बॉलीवुड में ऐसी कई मूवीज़ बनी हैं जिसकी एंडिंग में मेकर्स ने फ़िल्म की हीरोइन को उस हीरो के साथ मिलवा दिया जो उसको डिजर्व भी नहीं करता था. 

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चलिए उन फ़िल्मों पर एक बार नज़र डाल लेते हैं-

1. कुछ कुछ होता है (1998)

इस मूवी के लव ट्रायंगल ने हमारा दिल छू लिया था, लेकिन क्या आपने नोटिस किया कि अंजलि (काजोल) जोकि अपने बेस्ट फ्रेंड राहुल (शाहरुख़ ख़ान) के प्यार में थी, उसे इस बात का कभी एहसास नहीं हुआ कि उसका बेस्ट फ्रेंड न ही अच्छा दोस्त था और न ही अच्छा आशिक़. राहुल ने कभी अंजलि की फीलिंग्स समझीं ही नहीं. यहां तक कि कैंपस में आई नई लड़की टीना (रानी मुख़र्जी) को अंजलि की फीलिंग्स पता चल गईं, लेकिन राहुल से ये न हो पाया. एक दिन अचानक जब वो अंजलि को इंडियन आउटफ़िट में देखता है, तो उसके मन में अपनी बेस्ट फ्रेंड के लिए कुछ-कुछ होने लगता है.

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2. हम दिल दे चुके सनम (1999)

संजय लीला भंसाली के डायरेक्शन में बनी ये रोमांटिक-ड्रामा फ़िल्म अपने समय की ब्लॉकबस्टर फ़िल्मों में से एक थी. हालांकि, हमें लगता है कि इसकी परफ़ेक्ट एंडिंग कुछ और हो सकती थी. नंदिनी (ऐश्वर्या राय) को अकेले ही रहना चाहिए था. अगर वो समीर (सलमान ख़ान) से बाद में प्यार नहीं करती थी, तो कोई बात नहीं. मगर वो वनराज (अजय देवगन) के साथ रहने का फ़ैसला कैसे कर सकती है, जिसके साथ उसकी ज़बरदस्ती शादी करवाई गई थी.

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3. सलाम नमस्ते (2005)

सलाम नमस्ते वो मूवी है जिसने लिव-इन रिलेशनशिप के कॉन्सेप्ट से तब परिचय करवाया जब समाज के कई लोग इसका मतलब तक नहीं जानते थे. फ़िल्म में हमने अंबर (प्रीति ज़िंटा) को निक (सैफ़ अली ख़ान) के प्यार में पड़ते देखा. जब अंबर, निक के बच्चे के साथ प्रेग्नेंट हुई, तब निक ने उसे बच्चा गिराने के लिए कहा. इसके लिए निक ने इंकार कर दिया और अंबर ने अकेले ही अपने बच्चे की देखभाल की. हालांकि, अंत में निक को अपनी ग़लती का एहसास हो जाता है. लेकिन अंबर ने ऐसे व्यक्ति से शादी करने का फ़ैसला क्यों किया जो अपने रिश्ते में अचानक से आए मोड़ को संभालने के लिए मैच्योर नहीं था? एक गैर-ज़िम्मेदार पिता के साथ बच्चे की परवरिश करने के बजाय अंबर ने अकेले बच्चे की परवरिश क्यों नहीं की?

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4. रहना है तेरे दिल में (2001)

हमें लगता है कि इस मूवी को रोमांटिक कहना ही पाप है. मैडी (आर माधवन) देखा जाए तो एक स्टॉकर था जो रीना (दीया मिर्ज़ा) के पीछे तब से लगा हुआ था जब से उसने रीना को देखा था. उसने पूरी फ़िल्म में एक दूसरा इंसान बनने का नाटक किया और रीना से झूठ बोलता रहा. गुंडागर्दी की पराकाष्ठा तो तब पार हो गई जब उसका झूठ पकड़े जाने के बाद उसने रीना के मंगेतर को धमकियां देनी शुरू कर दीं. फ़िल्म के आख़िर में हमने रीना को मैडी के प्यार में पड़ते हुए देखा. ये दुखद है कि कैसे हमारे फ़िल्ममेकर्स ने लीडिंग लेडी को उसके स्टॉकर से प्यार करने के लिए मजबूर कर दिया.

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5. ये जवानी है दीवानी (2013)

ये जवानी है दीवानी फ़िल्म में ‘बनी’ (रणबीर कपूर) अपने सपनों का पीछा करने के लिए सबको छोड़ देता है. उसने नैना (दीपिका पादुकोण) और उसके प्यार के बारे में कभी नहीं सोचा. वो अपनी दोस्त की शादी अटेंड करने भारत वापस आया और वहां वो नैना से मिला. नैना को उससे दोबारा प्यार हो गया और दोनों न्यू ईयर के मौके पर एक हो गए. नैना ने उस व्यक्ति को क्यों चुना जो इतना स्वार्थी था? नैना ने कुछ घंटों की बातचीत में कैसे फ़ैसला कर लिया कि बनी बदल गया है? हमने ऐसा रियल लाइफ़ में तो होते हुए नहीं देखा.

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6. कॉकटेल (2012)

इस फ़िल्म में हमने दो लड़कियों को देखा, जो एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा थीं. एक थी मीरा (डायना पेंटी) जिसने कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया. सही मायने में शुद्ध संस्कारी भारतीय नारी. वहीं दूसरी तरफ़ वेरोनिका (दीपिका पादुकोण) थी, जो पार्टी करती थी. दारू पीती थी और लड़कों के साथ मस्ती करती थी. गौतम (सैफ़ अली ख़ान) वेरोनिका के साथ रिलेशनशिप में है. लेकिन उसे मीरा की तरफ़ आकर्षण होने लगता है. गौतम अपनी गर्लफ्रेंड और मीरा अपनी बेस्ट फ्रेंड को धोखा देती है. आदर्श रूप से गौतम को दोनों लड़कियों द्वारा छोड़ दिया जाना चाहिए था. क्योंकि वो दोनों में से किसी के लायक नहीं था.

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7. तमाशा (2015)

तमाशा फ़िल्म में जहां वेद (रणबीर कपूर) एक कंफ्यूज लड़का था. वहीं फ़िल्म की लीडिंग लेडी तारा (दीपिका पादुकोण) एक महत्वाकांक्षी लड़की थी. जब वेद और तारा ने एक रेस्टोरेंट में अपने रास्ते अलग कर लिए, तब तारा पूरी तरह टूटी हुई दिखाई दी. फ़िर भी जब वो वेद से टोक्यो में मिली तो उसने सब कुछ भुला दिया और वेद के साथ फ़िर रिलेशनशिप में आ गई. देखा जाए तो तारा जैसी एक आत्मनिर्भर महिला को वेद को दो टूक बोल देना चाहिए था कि वो अब उसमें दिलचस्पी नहीं रखती है. 

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8. हैप्पी न्यू ईयर (2014)

पूरी मूवी में हमने चार्ली (शाहरुख़ ख़ान) को मोहिनी (दीपिका पादुकोण) की बेइज्ज़ती करते हुए देखा. वो उसे चीप भी बोलता रहा. इसके बावजूद मोहिनी ने ग्रुप की डांस कॉम्पिटीशन को जीतने में मदद की. चार्ली ने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया. मोहिनी, चार्ली की इंग्लिश से इम्प्रेस थी. मोहिनी जैसी एक मल्टी-टैलेंटेड महिला चार्ली जैसे आदमी की तरफ़ कैसे आकर्षित हो सकती है. वो आदमी जिसने मोहिनी की कभी वैल्यू तक नहीं की.   

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